PRAYAGRAJ: हालात सबका इम्तिहान लेता है। कुछ टूटकर बिखर जाते हैं। वहीं कुछ चैलेंजेस के सामने निखर जाते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है सिकंदरा के नसीर की। लॉकडाउन में जब रोजगार छिना तो मुंबई से घर आ गए। यहां ठिकाना तो मिला, लेकिन पेट भरने के लिए रोजी-रोटी का इंतजाम नहीं हो सका। ऐसे में नसीर ने अपने हुनर को अपना पेशा बनाने की ठानी। वो कहते हैं फिलहाल कमाई बहुत ज्यादा तो नहीं है। लेकिन अब वापस लौटने का इरादा भी नहीं है।

टूटती उम्मीदों को मिली रोशनी

मुंबई से लौटने के बाद मैंने जॉब के लिए काफी हाथ-पैर मारे। हर रोज कुछ उम्मीदों के साथ शहर जाता। सोचता किसी मॉल या कपड़े की दुकान पर शायद कोई काम मिल जाए। लेकिन सब जगह तो ताला जड़ा था। धीरे-धीरे उम्मीदें टूटने लगीं। फिर एक दिन शांतिपुरम में टहल रहा था। यहां किसी को सड़क किनारे कपड़ों का काम करते देखा। वहां से ख्याल आया कि कपड़ों का काम मुझे भी तो अच्छा आता है। आखिर मुंबई में हम बुशर्ट की मरम्मत ही तो किया करते थे। बस यहीं से मन बना लिया कि अब अपना कुछ काम शुरू करना है।

साथी हाथ बढ़ाना

मेरे बेरोजगारी के बोझ और टूटती उम्मीदों का सहारा बने मेरे साथी। इन लोगों ने न सिर्फ अपने दुकान के पास मुझे बैठने की जगह दी। बल्कि मेरे लिए मशीन वगैरह का भी इंतजाम किया। लोग धर्म, जाति, मजहब की दकियानूसी बातें करते हैं। मैं कहता हूं कि इंसानियत से बड़ा कोई मजहब नहीं है। अगर मेरे ये साथी न होते तो मेरे लिए सर्वाइव कर पाना बेहद मुश्किल होता। आज इस कपड़ा सिलने की मशीन से मास्क बनाकर। लोगों के कपड़ों की मरम्मत करके मैं कम से कम इतना तो कमा ही लेता हूं कि अपने बच्चों का पेट भर सकूं। हां, जिंदगी में बहुत ठाठ नहीं हैं, लेकिन घर वापस जाता हूं तो बूढ़ी मां, बच्चे और बीवी का चेहरा देखकर सुकून मिलता है। यह प्राइसलेस है।

अभी और बढ़ाना है काम

अभी तो यह शुरुआत भर है। एक बार काम रफ्तार पकड़ ले तो बड़े पैमाने पर बिजनेस जमाना है। शर्ट मेकिंग का काम मैं जानता ही हूं। इसी को लेकर कुछ प्लान किया है। हालांकि बड़े सेटअप के लिए फाइनेंशियल दिक्कतें भी आएंगी। लेकिन अगर ऊपरवाले ने इतना रास्ता बनाया है तो आगे भी वो रास्ता बनाएगा ही। फिर अपने एरिया के लोगों की रोजी-रोजगार की प्रॉब्लम कुछ हद तक सॉल्व करने की कोशिश करूंगा।

अल्लाह वो दिन किसी को न दिखाएं

कोरोना ने हम सभी का किसी ने किसी ढंग से इम्तिहान लिया है। लॉकडाउन के बाद हालात जिस तरह से बदले और जो मेरे ऊपर गुजरी, दुआ करता हूं अल्लाह, वो दिन किसी को न दिखाएं। अचानक से लॉकडाउन हुआ तो जैसे चलती-फिरती जिंदगी डिरेल हो गई। फैक्ट्री बंद, काम बंद। कुछ दिन किसी तरह से काटे, लेकिन आखिर कब तक। लौटने का भी कोई इंतजाम नहीं था। किसी तरह से हौसला जुटाया और पैदल ही निकल पड़ा। रास्ते में एक ट्रक मिला, जिसने सुल्तानपुर तक छोड़ा। तीन दिन, दो रातों का वो सफर जिंदगी भर के लिए पीठदर्द देकर गया। सुल्तानपुर से कुछ पैदल, कुछ लिफ्ट लेकर मैं घर आ गया। यहां पहुंचा तो अपनों का चेहरा देख सारी थकान गायब हो गई। तभी ठान लिया था कि अब वापस नहीं जाना है।

Posted By: Inextlive