कोरोना को दे चुके थे मात, फिर भी सुधर नहीं रही थी तबियत

शुक्रवार को ही दिल्ली से एयर एंबुलेंस से लाए गए थे प्रयागराज, चंद घंटे बाद हुआ निधन

न्याय मार्ग स्थित आवास पर करीबियों शुभचिंतकों का लगा तांता

PRAYAGRAJ: उर्दू-अंग्रेजी साहित्य के प्रसिद्ध आलोचक कवि व लेखक शम्सुर्रहमान फारूकी का 85 की उम्र में शुक्रवार को निधन हो गया। अपने हौसले से कोरोना को उन्होंने मात दे दी थी। लेकिन, बीमारियों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। दिल्ली में इलाज करने वाले डॉक्टर्स ने उन्हें घर ले जाने की सलाह दी थी। शुक्रवार को ही उन्हें एयर एंबुलेंस से प्रयागराज लाया गया था। बड़ी बेटी वर्जीनिया में प्रोफेसर मेहर अफशां उनके साथ ही यहां आयी थीं। घर पहुंचने के चंद घंटे बाद ही सुबह 11.30 बजे उनकी सांसें थम गईं। उनके इंतकाल की खबर सुनकर न्याय मार्ग स्थित आवास पर करीबियों शुभचिंतकों में शोक की लहर दौड़ गयी। शोक व्यक्त करने के लिए तमाम लोग उनके आवास तक पहुंचे। उनको शाम में अशोक नगर स्थित कब्रिस्तान में सुपुर्दे खाक किया गया। अनेक पुरस्कारों से सम्मानित पद्मश्री फारूकी का जाना अदब की दुनिया का बहुत बड़ा नुकसान समझा जा रहा है।

साहित्य अकादमी सम्मान से भी नवाजे जा चुके थे

शम्सुर्रहमान का जन्म 15 जनवरी 1935 को हुआ था। उदार परिवेश में पले शम्सुर्रहमान ने पढ़ाई के बाद कई जगह नौकरी की। इसके बाद वह इलाहाबाद में शबखूं पत्रिका के संपादक रहे। उन्होंने उर्दू साहित्य को कई चांद और थे सरे आसमां, गालिब अफसाने के हिमायत में, उर्दू का इब्तिदाई जमाना आदि दिए हैं। शम्सुर्रहमान को उर्दू आलोचना के टीएस इलियट के रूप में माना जाता है। सरस्वती सम्मान के अलावा उन्हें 1986 में उर्दू के लिए साहित्य अकादमी सम्मान भी दिया गया था्र। शम्सुर्रहमान फारूकी को इलाहबाद के अशोकनगर नेवादा कब्रिस्तान में दफन किया गया। फारूकी साहब को उनकी पत्नी जमीला फारूकी की कब्र के करीब ही सुपुर्द-ए-खाक किया गया। उनकी पत्नी जमीला फारूकी की मौत 2007 में हो गई थी।

कौन थे शम्सुर्रहमान फारूकी?

फारूकी को कहानी कहने की कला दास्तानगोई को दोबारा जिंदा करने का श्रेय दिया जाता है। दास्तानगोई 16वीं शताब्दी की उर्दू में दास्तान सुनाने की कला है। इलाहबाद यूनिवíसटी से पोस्ट-ग्रेजुएशन करने के बाद फारूकी ने लिखना शुरू कर दिया था। 1986 में फारूकी को साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था। 2009 में भारत सरकार ने फारूकी साहब को पद्मश्री से सम्मानित किया था।

मशहूर हैं कई किस्से

शम्सुर्रहमान फारूकी की मशहूर रचनाओं में कई चांद थे सरे-आसमां शामिल है। इसका अंग्रेजी में अनुवाद मिरर ऑफ ब्यूटी भी काफी प्रसिद्ध हुआ था। फारूकी के निधन पर लेखकों-साहित्यकारों ने शोक जताते हुए कहा कि वो उर्दू साहित्य जगत के आखिरी बादशाहों में से एक हैं।

Posted By: Inextlive