55 हजार शिक्षकों के पास शिक्षक बनने की अनिवार्य योग्यता ही नहीं

सीएजी की रिपोर्ट ने खोली सरकारी कामकाज की पोल

सेहत से खिलवाड़, छह खाद्य प्रयोगशाला में पांच बगैर मान्यता के

ALLAHABAD: वायरिंग एवं विद्युत कनेक्शन पर राज्य सरकार ने 64.22 करोड़ रूपये खर्च कर दिए इसके बाद भी प्रदेश के 34,098 विद्यालयों में आज भी बिजली का अकाल है। यह खुलासा किया है एकांउटेंट जनरल की रिपोर्ट ने। विधानसभा में प्रस्तुत की जा चुकी इस रिपोर्ट की डिटेल प्रधान महालेखाकार पीके कटारिया ने खुद पत्रकारों को दी। उन्होंने शासकीय धन के अपव्यय समेत विभागों द्वारा घोर अनियमितता को उजागर किया और तत्कालीन राज्य सरकार की मंशा पर भी सवालिया निशान भी खड़ा कर दिया।

1.79 लाख बच्चे विद्यालय से महरूम

इलाहाबाद स्थित प्रधान महालेखाकार (जनरल एंड सोशल सेक्टर ऑडिट) सत्यनिष्ठा भवन में पत्रकारों को सम्बोधित करते हुये श्री कटारिया ने बताया कि नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 अप्रैल 2010 से प्रभावी हुआ। वर्ष 2010 से 2016 की अवधि में यूपी में सर्व शिक्षा अभियान के माध्यम से 47,403.24 करोड़ रूपये का खर्च किया गया। लेकिन हाल यह रहा कि 1.79 लाख बच्चों को पड़ोस का विद्यालय ही नसीब नहीं हो सका। यही नहीं जिला शिक्षा सूचना प्रणाली के आंकड़ों के विश्लेषण से स्पष्ट हुआ है कि औसतन प्रतिवर्ष 20 लाख ड्रापआउट बच्चे थे।

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जिला स्तर पर कोई तंत्र ही नहीं

प्रधान महालेखाकार ने समस्त विभागों के प्रदर्शन की रिपोर्ट को पढ़ते हुये कहा कि रूरल एम्पलायमेंट की किसी भी स्कीम पर कोई पैसा ही खर्च नहीं किया गया। पब्लिक व‌र्क्स और एरिगेशन जैसे डिपार्टमेंट में भारी पैमाने पर अनियमितता पायी गयी है। सरकार की जवाबदेही तय होनी जरूरी है। खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 के कार्यान्वयन पर खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग ने वर्ष 2012-16 के दौरान कुल 202.60 करोड़ रूपये खर्च किये। लेकिन नमूना जांच में 10 जनपदों की जांच में पाया गया कि ऐसे खाद्य कारोबारकर्ता जो बिना पंजीकरण व लाइसेंस के व्यापार कर रहे हैं। उन्हें चिन्हित करने का कोई काम ही नहीं किया गया। जिला स्तर पर ऐसा कोई तंत्र भी उपलब्ध नहीं है, जिससे ऐसे कारोबारियों की संख्या का पता लगाया जा सके।

जोखिम में जनता की जान

आपको जानकार हैरानी होगी कि राज्य में जिले के खाद्य सुरक्षा अधिकारियों द्वारा लिये गये नमूनों की जांच के लिये छह प्रयोगशालायें कार्यशील थी। इनमें से पांच राज्य प्रयोगशालायें आगरा, मेरठ, गोरखपुर, वाराणसी और झांसी को नेशनल एक्रिडिटेशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशनल लेबोरेट्रीज या दूसरी एजेंसियों से मान्यता ही नहीं प्राप्त थी। इनमें से झांसी को तो भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण से भी मान्यता हासिल नहीं थी। बताया गया है कि प्रयोगशालाओं में खाद्य पदार्थो की जांच में सूक्ष्म जीव विज्ञानी परीक्षण, भारी धातु एवं कीटनाशी जांच हेतु आवश्यक उपकरण ही उपलब्ध नहीं थे। ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि लोगों को असुरक्षित खाद्य पदार्थो की आपूर्ति के लिये हरी झंडी न दी गई हो।

रिपोर्ट का सच

वर्ष 2011-16 के बीच बच्चों का औसत ड्राप आउट 0.63 लाख प्रतिवर्ष

कक्षा पांच व छह में सर्वाधिक ड्रापआउट

राज्य के कुल 1.60 लाख विद्यालयों में 1734 विद्यालयों में बालक एवं बालिकाओं के लिये शौचालय नहीं

वायरिंग एवं विद्युत पर 64.22 करोड़ रूपये खर्च किये गये

फिर भी 34,098 विद्यालयों में विद्युत संयोजन है ही नहीं

2012-16 की अवधि में 6.22 लाख बच्चों को नि:शुल्क पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध ही नहीं करवाई गई

इस समयावधि में 97 लाख बच्चों को राज्य सरकार द्वारा यूनिफार्म नहीं दिया गया

अधिनियम के प्रवृत्त होने के 06 वर्ष बाद भी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में नियुक्त क्रमश: 18,119 एवं 30,730 शिक्षकों के पास आवश्यक शैक्षिक योग्यता ही नहीं थी

Posted By: Inextlive