सड़कों के नवीनीकरण व चौड़ीकरण में हुआ बड़े पैमाने पर गोलमाल

सीएजी की ऑडिट में हुआ खुलासा

ALLAHABAD: यूपी की सड़को का हाल किसी से छिपा नही है। कल बनी सड़के आज उखड़ गई और जो आज बनी हैं उनका भविष्य सबको पता है। पीडब्ल्यूडी ने वर्ष 2011 से लेकर 2016 के बीच पूरे प्रदेश में सड़कों का नवीनीकरण और चौड़ीकरण कराने में ऐसी ही अनियमितताएं बरतीं। जिसका खुलासा सीएजी की आडिट रिपोर्ट में किया गया। शुक्रवार को प्रधान महालेखाकार पीके कटारिया ने बताया कि करोड़ों रुपए के टेंडर बिना प्रशासकीय अनुमोदन और वित्तीय स्वीकृति के कर दिए गए। सड़कों के निर्माण में नियमों का पालन भी नही किया गया।

जैसा चाहा वैसा खर्च किया पैसा

प्रधान महालेखाकार ने बताया कि कोई भी निविदा तब तक आमंत्रित नही की जा सकती जब तक कि कार्य का क्षेत्र निर्धारित न हो और कार्य की लागत शासन ने स्वीकृत न कर दी हो

इसके अलावा प्रशासकीय अनुमोदन, वित्तीय स्वीकृति और तकनीकी स्वीकृति भी जरूरी होती है

ऑडिट के दौरान पाया गया कि 3071.45 करोड़ के 56 फीसदी कार्यो के टेंडर अधीक्षण अभियंताओं ने शासन प्रशासकीय अनुमोदन व वित्तीय स्वीकृति के पहले ही आमंत्रित कर दिए

4184.74 करोड़ लागत के 156 कार्यो के टेंडर नोटिस तकनीकी स्वीकृति के पूर्व निर्गत किए गए

पुन: 3333.61 करोड़ लागत के 62 फीसदी वित्तीय निविदाएं तकनीकी स्वीकृति के पूर्व खोली गई

इंजीनियर्स ने टेंडरिंग के मूल नियमों का कतई पालन नही किया।

वापस हो गए दो हजार करोड़

पांच साल में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना को छोड़कर सड़कों के नाम पर भारी निवेश किया गया

इस दौरान 40 हजार 854 करोड़ 63 लाख करोड़ रुपए नवीनीकरण और चौड़ीकरण के लिए दिए गए

मनमाने कार्यो के आवंटन के चलते न तो समय से काम हुआ और न ही पूरे पैसे खर्च किए जा सके

इसके चलते 2 हजार 76 करोड़ रुपए समर्पित करने पड़े

इसके अलावा डिजायन बनाने और निर्माण में इंडियन रोड कांग्रेस के मानकों का पालन भी नही किया गया

2350.52 करोड़ के 78 कार्यो (88 फीसद) की मिट्टी की जांच तक नही की गई

51 कार्यो जिनकी लागत 970.95 करोड़ रुपए थी, बिना ट्रैफिक गणना के चौड़ीकरण कर दिया गया

सर्वे टीम ने पाया कि इस अवधि में अधिशाषी अभियंताओं ने अपने प्राधिकार क्षमता 40 लाख रुपये से अधिक के 14 नमूनों की जांच की

जिसमें जनपदों में 215 कार्यो जिनकी लागत 217.23 करोड़ रुपये थी, की तकनीकी स्वीकृति प्रदान की

इनमें से प्रत्येक कार्य की लागत 40.22 लाख से 4.48 करोड़ के मध्य थी

यहां भी हुआ नियमों का उल्लंघन

टेंडर में प्रतिस्पर्धा का ध्यान नही दिया गया। जिसके चलते ऐसी निविदाएं पांच सालों में 63 से बढ़कर 77 फीसदी हो गई।

लेखा परीक्षा में पाया गया कि प्रत्येक जनपद में पंजीकृत ठेकेदारों के बावजूद 3300.79 करोड़ लागत के 598 अनुबंध (75 फीसद) एक या दो निविदाओं के आधार पर गठित किए गए। यह निविदाएं दोबारा नही बुलाई गई।

लेखा परीक्षा में पाया गया है कि नमूना जांच किए 331 अनुबंधों में 3886.87 करोड़ रुपये के 234 अनुबंधों में निगोसिएशन किया गया

नियमानुसार यह असाधारण मामलों में किया जाता है। जिससे संकेत मिला कि यह अपवाद के बजाए नियम बन गया और टेंडर प्रक्रिया पूरी तरह से भ्रष्ट हो गई।

-बड़ी संख्या में संदिग्ध निविदा प्रक्रिया के माध्यम से अनुबंध गठन के प्रकरण पाए गए

अधीक्षण अभियंता गोरखपुर वृत्त के द्वारा 2011-16 की अवधि में 101.70 करोड़ के 128 अनुबंधों में केवल दो निविदादाताओं द्वारा भाग लिया गया था, और समान दरों को निविदा में मोलभाव के बाद अंकित किया गया

Posted By: Inextlive