मरने के लिए नहीं छोड़ सकते एचआईवी पीडि़त को : हाईकोर्ट
कोर्ट ने सचिव गृह मंत्रालय को अन्य विभाग में नियुक्ति का दिया निर्देश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि एचआईवी पीडि़त कर्मचारी को मरने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता। ऐसे कर्मी को चिकित्सीय मदद की जरूरत है। पैसे की कमी के चलते ऐसा नहीं हो सकता। कोर्ट ने सीआरपीएफ कांस्टेबल एचआईवी पीडि़ता याची को अन्य विभाग में अन्य सेवा में नियुक्ति पर विचार करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने सचिव गृह भारत सरकार से कहा है कि वह याची की अर्जी पर 6 हफ्ते में नियुक्ति के सम्मन्ध में निर्णय ले। सेवा से कर दिया बर्खास्तयह आदेश जस्टिस सुनीता अग्रवाल ने श्रीमती शोभा सिंह की याचिका पर दिया है। याचिका पर सिद्धार्थ खरे व भारत सरकार के अपर सालीसिटर जनरल एसपी सिंह व भारत सरकार के अधिवक्ता अरविन्छ गोस्वामी ने बहस की। याचिका में एचआईवी पीडि़त होने के कारण सेवा बर्खास्तगी की चुनौती दी गयी थी। याची का कहना था कि उसे अन्य सेवाओं में रखा जा सकता है। बिना धन के वह अपना इलाज नहीं करा सकती। मेडिकल बोर्ड ने कांस्टेबल के पद याची को अयोग्य करार दिया है। ऐसे में अन्य कार्यालयीय पद पर नियुक्ति की जा सकती है। भारत सरकार का कहना था कि सुरक्षा बल में किसी भी पद पर शारीरिक क्षमता होनी जरूरी है। इसलिए उसे सीआरपीएफ में नहीं रखा जा सकता। इस पर कोर्ट ने कहा गृह मंत्रालय के अन्य कार्यालयों में किसी पद पर नियुक्ति की जा सकती है।