Allahabad : अल्लापुर के रहने वाले शुभम ने हाल ही में यूपी बोर्ड से ट्वेल्थ का एग्जाम दिया था. रिजल्ट डिक्लेयर होते ही वह टेंशन में आ गया. वह हिंदी सब्जेक्ट में फेल है जबकि मैथ्स में उसके 80 परसेंट माक्र्स हैं. यह कैसे पॉसिबल है कि वह हिंदी तक में फेल हो गया. हालांकि उसके पास दो ऑप्शंस हैं. एक स्क्रूटनी तो दूसरा आरटीआई. स्क्रूटनी के लिए एक महीने का समय निर्धारित है. जबकि वह आरटीआई की हेल्प लेता है तो एक महीने का समय निकल जाने के बाद स्क्रूटनी नहीं करा सकता. इसको लेकर वह ज्यादा परेशान है. दरअसल स्क्रूटनी के लिए रिजल्ट डिक्लेयर होने के एक महीने तक फॉर्म सबमिट किए जा सकते हैं जबकि आरटीआई प्रॉसेस में एक महीने से ज्यादा का समय लगेगा. इसके बाद स्क्रूटनी होना पॉसिबल नहीं है. ऐसे कई स्टूडेंट्स हैं जो आरटीआई के बाद स्क्रूटनी की क्वेरीज को लेकर काफी परेशान हैं जबकि बोर्ड की ओर से पहले से ही स्क्रूटनी की समय सीमा तय है.

कंफ्यूजन ही कंफ्यूजन
स्क्रूटनी और आरटीआई को लेकर ऑफिसर्स में भी कंफ्यूजन है। उन्होंने स्क्रूटनी के लिए पहले से ही समय सीमा डिसाइड कर रखी है। ऐसे में बाद में अगर आरटीआई के तहत अप्लीकेशंस आती हैं तो उनका क्या होगा? स्टूडेंट्स का कहना है कि अगर आरटीआई के तहत कॉपी देखने में कोई क्वेश्चंस चेक नहीं है या मॉर्किंग में गड़बड़ी है तो माक्र्स कैसे मिलेंगे? क्या उसके लिए बाद में स्क्रूटनी होगी? या फिर उसके माक्र्स आरटीआई के तहत कॉपी देखने के दौरान ही करेक्शन कर दिए जाएंगे? इस पर ऑफिसर्स के पास भी कोई जवाब नहीं है।
तो आरटीआई ही बेस्ट है
शुभम तो मात्र एक एग्जाम्प्ल है। ऐसे कई ऐसे स्टूडेंट्स हैं जो एक सब्जेक्ट या एक से ज्यादा सब्जेक्ट में कम माक्र्स होने की वजह से परेशान हैं। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा है कि इतने कम माक्र्स उन्हें कैसे मिल सकते हैं? ऐसे में वह कंफ्यूज्ड हैं कि अगर चार सब्जेक्ट की स्क्रूटनी कराते हैं तो उन्हे चार सौ रुपए लगेंगे जबकि आरटीआई में दस रुपए के पोस्टल ऑर्डर की जरूरत होती है। इसमें खर्च भी कम होगा और उन्हें असलियत भी पता चल जाएगा क्योंकि स्क्रूटनी में तो कॉपी भी देखने को नहीं मिलेगी।

दोनों दोराहे पर

यूपी बोर्ड पहले ही डिसीजन ले चुका है कि रिजल्ट डिक्लेयर होने के एक महीने तक ही स्क्रूटनी के लिए आवेदन लिए जाएंगे। यानि इंटरमीडिएट का रिजल्ट पांच जून को डिक्लेयर हुआ था और स्क्रूटनी फॉर्म पांच जुलाई तक जमा होंगे। स्क्रूटनी और आरटीआई का प्रॉसेस भी बिल्कुल साफ है। इसके बावजूद ऑफिसर्स और स्टूडेंट्स दोनों दोराहे पर हैं। ऑफिसर्स की मानें तो स्क्रूटनी के लिए पहले से ही समय सीमा निर्धारित कर दी गई है। इसके बाद अगर आरटीआई में कॉपी देखने के बाद कोई स्क्रूटनी कराना चाहता है तो यह पॉसिबल नहीं है। ऐसे में फिर आरटीआई से कॉपी देखने को मतलब क्या रह जाएगा?

जब बोर्ड की ओर से पहले ही स्क्रूटनी की तिथि निर्धारित है तो बाद में स्क्रूटनी का कोई प्रावधान नहीं है। अगर आरटीआई के तहत ऐसे केस आते हैं तो उसमें संशोधन हो या न हो ये बोर्ड के ऊपर डिपेंड है।
-प्रदीप कुमार, अपर सचिव, रीजनल ऑफिस इलाहाबाद

अगर माक्र्स को लेकर कोई कंफ्यूजन है तो स्टूडेंट्स स्क्रूटनी करा लें ये बेहतर ऑप्शन है। लाखों की संख्या में कॉपियां होती हैं ऐसे में एक एक को अलग-अलग संज्ञान में नहीं लिया जा सकता है। कंफ्यूजन हो तो आरटीआई के तहत कॉपी देख लें।
-उपेंद्र गंगवार, सचिव, यूपी बोर्ड

Posted By: Inextlive