UP assembly elections में नाम मात्र सीटों पर महिलाओं को दिया टिकट मुद्दे को लेकर हुई दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की परिचर्चा में youth ने रखी बेबाक राय

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ALLAHABAD: महिला अधिकारों, उनके हक और उन्हें आरक्षण की बात को लेकर अक्सर राजनीतिक दलों के नेता दावे करते रहते हैं, लेकिन जब वाजिब हक देने की बात आती है तो ज्यादातर पार्टियां अपने कदम पीछे खींच लेती हैं। ऐसा करने के लिए उनके पास कई तरह के तर्क भी होते हैं। कुछ ऐसा ही इस बार यूपी विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिल रहा है। सभी राजनीतिक दलों ने महिलाओं को चुनाव लड़ने के लिए नाममात्र की सीटों पर टिकट दिया है। इससे महिलाओं के अधिकारों को लेकर राजनीतिक पार्टियों के नेताओं की कथनी व करनी में अंतर का साफ नजर आता है।

खुद भी हैं जिम्मेदार

'आई नेक्स्ट' ने चुनावी सीजन में इस इश्यू पर युवाओं से बात की तो कई तरह की बातें सामने आई। कुछ ने सीधे तौर पर व्यवस्था को दोषी ठहराया, तो कुछ ऐसे भी रहे जो बहुत हद तक महिलाओं को ही इसके लिए जिम्मेदार ठहराते नजर आए। परिचर्चा में शामिल युवतियों ने कहा कि इससे राजनीतिक दलों की सोच उजागर होती है। पार्टियां बड़ी-बड़ी बातें तो करती हैं, पर जब उन पर अमल का वक्त आता है तो वे परंपरागत तरीकों से ऊपर नहीं उठ पातीं। इसके लिए वे महिलाएं भी दोषी हैं जो मंच मिलने के बाद भी महिलाओं के हक की बात नहीं करतीं।

रह जाती हैं showpiece बनकर

युवतियों का मानना है कि महिला अधिकारों की बात जितने पुरजोर तरीके से कही जाती है। उसे उतनी ही ताकत से अमल में भी लाना होगा। परिचर्चा में युवाओं ने एक ठोस मुद्दे को उठाया। कहा कि ज्यादातर स्थानों पर देखा जाता है कि महिलाओं को जिन सीटों पर कब्जा मिला है, वहां उनका सारा काम पुरुष ही करते हैं। महिलाएं केवल शो पीस बनकर रह जाती हैं। जब तक वे कुर्सी पर काबिज रहती हैं, तब तक उन्हें अपने जिले के अधिकारियों और कार्य संस्कृति का ही पता नहीं चलता। बदलाव लाना है तो खुद आत्मनिर्भर तरीके से उन्हें आगे आना होगा।

महिलाएं राजनीति में काबिज भ्रष्टाचार, धन और बाहुबल के वैभव को कम कर सकती हैं। उनकी पुरुष प्रधान राजनीति में जितनी भूमिका बढ़ेगी। उतना ही इन चीजों का असर कम होगा।

सिमरन अंसारी

महिलाएं स्वच्छ राजनीति का प्रतीक बन सकती हैं। मायावती के बारे में कहा जाता है कि उनकी सरकार में गुंडाराज नहीं होता। ऐसे में महिलाएं ज्यादा से ज्यादा राजनीति में आएं।

प्रियंका राय

महिलाओं को न केवल अपनी सोच बदलनी होगी। बल्कि उन्हें इसके लिए पुरुषों पर निर्भर रहने की भावना भी छोड़नी होगी। तभी वे मजबूती से अपने हक के लिए लड़ सकेंगी।

अर्चना सिंह

राजनीतिक दल महिलाओं के आरक्षण की बात करते हैं, लेकिन जब उन्हें ज्यादा से ज्यादा चुनाव लड़वाने के लिये आगे लाना चाहिये तब कोई भी उतनी हिम्मत नहीं दिखा पाता है।

खुशबू जायसवाल

महिलाओं को आत्मनिर्भर तरीके से आगे आना होगा। उनके पास भी लोगों का बाकायदा एजेंडा होना चाहिए। उन्हें पहले से पता होना चाहिए कि उन्हें क्या करना है, और क्या नहीं करना?

शैलजा सोनकर

कहीं न कहीं महिला ही महिला की दुश्मन भी है। जिन राज्यों में सीएम महिला हैं, वहां भी उन्हें उतनी तवज्जो नहीं मिलती। इसपर सभी को आगे आकर गंभीरता से सोचना चाहिए।

विवेक प्रताप सिंह

सिर्फ महिला ही क्यों युवा लड़कियों को भी चुनाव में आगे आना चाहिए। उन्हें टिकट की लड़ाई लड़नी चाहिए। मतदान में भी इनका प्रतिशत बहुत कम होता है। यह भी एक बड़ा मसला है।

अखिलेश

Posted By: Inextlive