सार्वजनिक होंगे 1857 की लड़ाई के योद्धाओं के कानूनी दस्तावेज

प्रशासन ने क्षेत्रीय अभिलेखागार को सौंपे गए कई साल पुराने कानूनी दस्तावेज

ALLAHABAD: आजादी की पहली लड़ाई में कूदे भारत मां के सपूतों को अंग्रेजों ने अपराधी मानकर उनके खिलाफ विभिन्न थानों में मुकदमा दर्ज कराया था। इनमें से कईयों को आजीवन कारावास तो कई क्रांतिकारियों को फांसी की सजा दी गई थी। इन हीरोज की दास्तां आज तक गुमनामी के अंधेरे में थी। लेकिन, जल्द ही इनकी गाथा आप भी जान सकेंगे। प्रशासन ने गुरुवार को 1857 की आजादी की लड़ाई के लगभग पांच सौ गोपनीय दस्तावेज क्षेत्रीय अभिलेखागार को सौंपे हैं, जो जल्द ही जनता के लिए उपलब्ध होंगी।

कलक्ट्रेट में सुरक्षित रखे थे दस्तावेज

वीर सेनानियों से जुड़े ये गोपनीय दस्तावेज कई सालों से कलेक्ट्रेट में सुरक्षित रखे थे। गुरुवार को डीएम संजय कुमार ने इनका लोकार्पण करते हुए क्षेत्रीय अभिलेखागार को सौंपा। इन दस्तावेजों में वह हकीकत मौजूद है जो अंग्रेजों के अत्याचार की कहानी बयान करने के लिए काफी है। इनमें ऐसे कई मुकदमों के दस्तावेज हैं जो बताते हैं कि 1857 का स्वतंत्रता आंदोलन अंग्रेजी हुकूमत के जुल्म के खिलाफ पनपा था। बहुत से लोगों की जमीन-जायदाद छीनकर अंग्रेजों ने अपने समर्थकों को सौंप दी थी, जिससे लगातार असंतोष फैल रहा था।

एक दर्जन को दे दी थी फांसी

दस्तावेज बताते हैं कि उस समय हंडिया के खैरागढ़ थाना क्षेत्र के सरबदन सिंह, बंधु सिंह, गिरधारी, देवश्री मिश्रा, भवानी प्रसाद समेत एक दर्जन लोगों को अंग्रेजी अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी। इनके खिलाफ 1857 में परगना केवई के जमीदारों श्रीदत्त उर्फ दत्तीलाल और मोहनलाल के यहां लूटपाट का मामला दर्ज हुआ था। अभिलेखों में पाया गया कि अंग्रेजी हुकूमत ने इनकी जमींदारी जब्त कर ली थी। अपना हक पाने के लिए ये बागी क्रांतिकारी बन गए और स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बने। पकड़े जाने पर आजीवन कारावास की सजा मिली। इसी बीच एक अन्य जमींदार दीनदयाल के कारिंदे ने इन पर फिर से लूट का मामला दर्ज कराया तो अंग्रेजी हुकूमत ने वर्ष 1958 में एक दर्जन लोगों को फांसी की सजा सुना दी।

गुमनाम क्रांतिकारियों की बनेगी लिस्ट

संगम सभागार में अभिलेखों के लोकार्पण के दौरान डीएम संजय कुमार ने कहा कि 1857 के ऐसे अभिलेखों का अध्ययन कर उनमें गुमनाम क्रांतिकारियों की सूची तैयार की जाए, जिससे जनता इनके योगदान को जान सके। इससे इतिहास में अपराधियों की तरह दर्ज इन क्रांतिकारियों का योगदान सामने आ सकेगा। अभिलेखागार अधिकारी अमित अग्निहोत्री ने कहा कि अभिलेखों की सुरक्षा का बंदोबस्त कर इनका गहन अध्ययन कर अलग-अलग तथ्यों का पता लगाया जाएगा।

फैक्ट फाइल

सौंपे गए अभिलेखों (फाइलों) की कुल संख्या 510 हैं।

यह फ‌र्स्ट फेज है, नेक्स्ट फेज में अन्य गोपनीय दस्तावेज भी लोकार्पित होंगे

इनमें पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और जवाहर लाल नेहरू पर चलाए गए मुकदमों और बयानों का दस्तावेज भी है।

1954 से 1968 के बीच आयोजित माघ और कुंभ मेलों के तैयारियों से जुड़े ब्लू प्रिंट भी मौजूद हैं।

1954 में हुए कुंभ मेला भगदड़ में मारे गए लोगों की शिनाख्त से जुड़े दस्तावेज भी इनमें शामिल हैं।

वर्ष 1930 से 1945 के बीच स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर चले मूवमेंट और दर्ज किए मुकदमों के रिकार्ड भी सौंपे गए हैं। ऐसे मुकदमों की संख्या 470 है।

इन मुकदमों की लिखा पढ़ी उर्दू, फारसी और अंग्रेजी भाषा में की गई है। कहीं कहीं हिंदी का भी प्रयोग किया गया है।

अभिलेखों में यह भी खास

1. पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री पर थाना सराय ममरेज में 18 क्रिमिनल ला एमेंडमेंट एक्ट के तहत पंजीकृत अभियोग के ट्रायल की पत्रावली भी सम्मिलित है।

2. इलाहाबाद नगर क्षेत्र के कोतवाली, जीआरपी, कैनिंगटन, कर्नलगंज, दारागंज, कीडगंज आदि के साथ-साथ ग्रामीण में नवाबगंज, शंकरगढ़, सराय अकिल, हंडिया, सैनी, फूलपुर आदि थानों में डीआईआर, सीएलए, आईपीसी, प्रेस एक्ट आदि की विभिन्न धाराओं में पंजीकृत स्वतंत्रता सेनानियों के मुकदमों से संबंधित पत्रावलियां भी सम्मिलित हैं।

Posted By: Inextlive