-फुटबाल के ग्राउंड पर सपनों को तराश रही हैं जिले की 95 बेटियां

-अपने खेल से देश को मुकाम दिलाने की जिद में सुबह शाम बहा रही हैं पसीना

ALLAHABAD: फुटबाल उनकी जिंदगी बन चुकी है। कुछ कर गुजरने का जुनून सिर चढ़कर बोल रहा है। चट्टान से मजबूत उनके हौसले आसमान छू रहे हैं। मकसद, बस इस खेल से देश का नाम रोशन करने का है। मौका मिलते ही विपक्ष की टीम के दांत खट्टे करने का उनमें माद्दा है। जी हां, हम बात कर रहे हैं फुटबाल के मैदान पर सुबह -शाम प्रैक्टिस में जुटी बेटियों की। इस खेल के दांव पेंच में उनकी कोई सानी नहीं है। अपनी इसी काबिलियत के बूते कई मर्तबा वह प्रतियोगिताओं में दमदार इंट्री दे चुकी हैं।

बेटों से कम नहीं हैं बेटियां

जो लोग बेटियों को बेटों से कम आंकते हैं, उन्हें सदर बाजार गड्ढा ग्राउंड व एंग्लो बंगाली जैसे कॉलेजों में स्थित फुटबॉल के मैदान से सबक लेनी चाहिए। फुटबाल के ग्राउंड पर सुबह व शाम के वक्त जिले की करीब 95 बेटियां रोज प्रैक्टिस करती हैं। इंटर कॉलेजों व एकेडमीज एवं गड्ढा ग्राउंड पर कोच उन्हें फुटबाल के दांव सिखाते हुए देखे जा सकते हैं। इन खिलाडि़यों में लड़कियों से कहीं ज्यादा हौसले व जुनून हैं। उनमें इसी जुनून और हौसले को देखते हुए कोच भी उन्हें ट्रेनिंग देने में तनिक भी कोताही नहीं बरत रहे। बस वे मात खाती हैं तो सरकार व जिला प्रशासन की उपेक्षा से। इस बात को लेकर इन महिला खिलाडि़यों में टीस है। वह फुटबाल के जरिए देश का नाम रोशन करने का ख्वाब संजोए हुए हैं। लेकिन, उनके इस ख्वाब में अव्यवस्थाएं रोड़ा बनी हुई हैं।

बॉक्स

इन्होंने किया नाम रोशन

-अंशिका कुमारी का स्कूल इंडिया कैंप में सेलेक्शन

-हिमांशी का जूनियर ग‌र्ल्स बालिका नेशनल कटक में प्रदर्शन

-कंचन सोनकर ने नेशनल स्कूल प्रतियोगिता में हिस्सा लिया

-मानसी कुमारी नेशनल स्कूल प्रतियोगिता में हिस्सा लिया

-रौनक जहां सब-जूनियर नेशनल व स्कूल नेशनल में हिस्सा लिया

-अनीता यादव ने स्कूल नेशनल गेम्स में हिस्सा लिया

कॉलिंग

मेरी इच्छा है कि मैं अपने खेल से देश का नाम रोशन करूं। लेकिन सरकार कोई सुविधा देती नहीं। हमें अपने से ही सारे किट वगैरह खरीदने पड़ते हैं। कई बार मैं प्रदेशीय व मंडलीय स्तर पर खेल चुकी हूं।

पूजा सिंह

फुटबॉल में नाम कमाना मेरा ख्वाब है। इस ख्वाब के पूरा होने तक मैं प्रैक्टिस करती रहूंगी। मेरी फेमिली मेरा सपोर्ट करती है। उन्हें भी यकीन है कि एक दिन मैं जरूर कामयाब होऊंगी।

-कुं। दीपांजली

मैं कानपुर यूनिर्सिटी की तरफ से खेल चुकी हूं। मेरा मकसद देश को विश्व विजेता बनाने का है। मैं कर्म कर रही हूं, फल ईश्वर के हाथ में है। बाकी सरकारी सुविधा कुछ नहीं मिलती।

प्रियंका कुमारी

यदि सरकार थोड़ा हम खिलाडि़यों का सपोर्ट कर दे तो सीन बदला हुआ दिखेगा। चूंकि सपने मेरे हैं, लिहाजा पूरा करने के लिए जी जान से जूझ रही हूं।

-कुं। डाली

वर्जन

फुटबाल खेलने वाली सारी बच्चियां कहीं न कहीं पढ़ती तो हैं ही। फिर वह फुटबॉल एकेडमी में प्रैक्टिस करें या स्कूल में या स्टेडियम में क्या फर्क पड़ता है। कई बच्चियों का प्रदर्शन बेहतर है। वे एक दिन कामयाब जरूर होंगी।

-अरविंद्र श्रीवास्तव, फुटबाल कोच स्टेडियम सदर बाजार गड्ढा ग्राउंड

Posted By: Inextlive