माघी पूर्णिमा के साथ ही माघ मेले में कल्पवास का होगा समापन

कल्पवासियों ने भी शुरू कर दी घर लौटने की तैयारी

prayagraj@inext.co.in

PRAYAGRAJ: न कभी पहले मिले थे, न किसी प्रकार की जान पहचान। कोई रिश्तेदारी नहीं, किसी से खून का रिश्ता भी नहीं। फिर भी एक माह में मानवीय रिश्ता ऐसा बना कि एक दूसरे से बिछड़ने की सोच कर ही आंखे भर आती है। माघ मेला में इन दिनों ऐसा नजारा कल्पवासियों के शिविर में आम हो गया है। कल तक जहां एक दूसरे का काम बटाने में साथ रहते थे, अब उनसे बिछड़ने का समय नजदीक आने लगा है। तो यहां भी मानवीय रिश्ते की झलक दिख रही है।

खुद के साथ दूसरों की भी कर रहे हेल्प

संत महात्माओं के शिविर में कल्पवास करने वाले लोग माघी पूर्णिमा के बाद जाने की तैयारी में जुट गए है। घर लौटने की तैयारी के लिए सामान को बांधने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। ऐसे में अपने साथ ही दूसरे कल्पवासियों की भी सामान बांधने में लोग एक दूसरे की हेल्प करते नजर आ रहे है। गाजीपुर से कल्पवास करने आए देवी प्रसाद चौबे ने बताया कि वह कई सालों से कल्पवास करते आ रहे है। लेकिन हर बार जब जाने का समय होता है, तो आस-पास के शिविरों में रहने वाले कल्पवासियों से अलग सा रिश्ता बनने के लिए कारण उनसे बिछड़ने का दुख होता है। हालांकि यहां से जाने के बाद भी फोन आदि के जरिए एक दूसरे से संपर्क में भी रहते है। लेकिन एक महीना तक साथ रहना, खाना पीना सब होता है, तो हर कोई परिवार का हिस्सा बन जाता है।

माघ पूर्णिमा स्नान के बाद होगी रवानगी

संगम की रेती पर लगने वाले माघ मेले में कल्पवास की शुरुआत पौष पूर्णिमा से होती है। जो पूरे एक माह तक चलता है और माघी पूर्णिमा को खत्म होता है। उसके बाद कल्पवासी अगले साल आने के वादे के साथ विदा होते है। इस दौरान पूरे एक माह तक कल्पवासी तुलसी की पूजा करते है। ऐसे में प्रयागराज से लौटते समय वह अपने साथ गंगा जल के साथ ही तुलसी का पौधा भी ले जाते है। मान्यता है कि तुलसी का पौधा ले जाकर उसकी सेवा व पूजा करने से मनोकामना पूर्ण होती है।

- कल्पवास का एक महीना माघ पूर्णिमा को पूरा होगा। उसके बाद जाने की तैयारी रहेगी। इसलिए अभी से तैयारी शुरू कर दी है।

गायत्री देवी

- मां गंगा के तट कल्पवास के एक महीने में कई लोगों से आत्मीय संबंध बन जाता है। ऐसे में उनसे विदा लेने में तक्लीफ तो होती है।

देवी प्रसाद चौबे

- कल्पवास के दौरान अनजान लोगों से भी परिवार का रिश्ता बन जाता है। एक साल बाद फिर से मिलने की उम्मीद रहती है।

कृष्ण मोहन मिश्रा

- कल्पवास के बाद जाने की तैयारी का समय नहीं मिलता। इसलिए अभी से तैयारी शुरू कर दी। जिससे बाद में कोई दिक्कत ना हो।

विजय लक्ष्मी

Posted By: Inextlive