'जीएसटी' ने व्यापारियों को बाबू बना दिया
प्रधानमंत्री ने जीएसटी को कहा था गुड एंड सरल टैक्स
ALLAHABAD: जीएसटी लागू हुए एक साल पूरे हो चुके हैं। एक देश एक कर व्यवस्था के फॉर्मूले पर आधारित व्यवस्था से एक साल बाद बिजनेस और उसके संचालक का क्या हाल है इसे दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने डिबेट कराकर जाना। व्यापारियों ने जीएसटी को राहत कम आफत अधिक बताया। कई सुझाव भी दिए। 10000 रुपये महीने बढ़ गया है खर्च व्यापारियों का कहना है कि लिखा-पढ़ी, स्टॉक मेंटेन करने के साथ रिटर्न भरने के लिए सीए, अधिवक्ता व एकाउंटेंट का सहारा लेना पड़ता है। इनका खर्च जीएसटी में काफी बढ़ गया है। जीएसटी में दस हजार रुपया एक्स्ट्रा हर महीने अपने इनकम में से सीए और अधिवक्ता को देना पड़ रहा है। 52 पेज की ऑडिट रिपोर्ट के लिए सीए की फीस 15000 रुपये के करीब है। पूरा टैक्स देकर भी झेल रहे परेशानीव्यापारियों के लिए नो इंट्री की वजह से जाम सबसे बड़ी समस्या बन गया है। शहर में इंट्री से 30 किलोमीटर पहले ट्रक रोक दिया जाता है। जिसे रात में 11 बजे के बाद नो इंट्री खुलने पर शहर के अंदर आने में चार से पांच घंटा लग जा रहा है। व्यापारियों को पूरी रात जागना पड़ता है।
जीएसटी व्यापारियों के लिए राहत कम, आफत अधिक साबित हुआ है। एक देश एक कर की बात हुई थी, यहां अलग-अलग राज्यों में ई-वे बिल का अलग-अलग नियम है। प्रदेश सरकार को इंट्रा स्टेट ई-वे बिल को ही खत्म कर देना चाहिए।
संतोष पनामा संयोजक, उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार कल्याण समिति सरकार सिंगल प्वाइंट पर टैक्स की व्यवस्था क्यों नहीं करती है। मैन्यूफैक्चरर और ट्रेडर के लिए एक ही कानून क्यों? अफसरशाही से छोटा व्यापारी परेशान है। सतीश चंद्र केसरवानी अध्यक्ष, गल्ला एवं तिलहन संघ एक जुलाई 2017 को जीएसटी लागू करते समय प्रधानमंत्री ने कहा था कि जीएसटी मतलब गुड एंड सिंपल टैक्स। आज स्थिति ये है कि जीएसटी व्यापारियों के लिए गुड तो है, लेकिन सिंपल और सरल बिल्कुल नहीं है। कैलाश बिहारी अग्रवाल कागज व्यापारी गल्ले पर टैक्स नहीं है तो फिर मंडी शुल्क क्यों? बंगाल, महाराष्ट्र बिहार में मंडी शुल्क की व्यवस्था नहीं है। ललित चंद्र जायसवाल कोषाध्यक्ष, गल्ला एवं तिलहन संघ जीएसटी ने तो व्यापारियों को बाबू बना दिया है। व्यापारी का व्यक्तिगत जीवन खत्म हो गया है। पूरा दिन व्यापार और जीएसटी के उलझन में ही बीत जा रहा है। सुशील केसरवानी इलाहाबाद तेल एसोसिएशनअधिकारी नियम-कानून की धज्जी उड़ा रहे हैं। 90 प्रतिशत व्यापारी पोर्टल के काम न करने से परेशान हैं। सर्वर डाउन रहता है। व्यापारी समस्या बताता है तो उस पर पेनाल्टी दिया जाता है।
दिलीप केसरवानी अध्यक्ष, जनरल मर्चेट एसोसिएशन कंपोजीशन स्कीम में शामिल होना चाहता हूं। चाह कर भी शामिल नहीं हो पा रहा हूं। पोर्टल ही ओपेन नहीं हो रहा है। तीन महीने से व्यापार प्रभावित है। अरुण अग्रवाल, कागज व्यापारी एजेंसी व्यापारियों को क्रेडिट नोट देती है जिसकी लायबिल्टी व्यापारी पर आ रही है। परचेज पर क्रेडिट नोट बंद होना चाहिए। अतुल अग्रवाल जीएसटी में स्टॉक रजिस्टर रखना आवश्यक कर दिया गया है, नहीं तो माल सीज भी किया जा सकता है। मेरा स्टेशनरी का बिजनेस है, जिसमें एक हजार आइटम हैं। अब हर छोटे-छोटे सामान का स्टॉक मेंटेन कैसे रखें। सुशील अग्रवाल स्टेशनरी व्यापारी 750 रुपये के भाड़े पर व्यापारी को पांच प्रतिशत टैक्स देना पड़ता है। भाड़े पर टैक्स से व्यापारी परेशान है। ट्रेडर पर आरसीएम लगना ही नहीं चाहिए। संदीप बजाज जीएसटी में सबसे बड़ी दिक्कत व्यापारियों को भूल सुधार की सुविधा न होने से हो रही है। टैक्स और रिटर्न भरने में व्यापारी से कोई भूल हो जाती है तो वह उसमें सुधार नहीं कर पाता है। श्याम जी अग्रवाल खाद्य तेल व्यापारीसुचारू व्यवसाय में बाधक जीएसटी
एक जुलाई 2017 को लागू किया गया
रजिस्ट्रेशन की सुविधा सबसे सरल है अन्य प्रक्रियाएं और एक्ट व्यापारियों के लिए समस्या से भरी पड़ी हैं जीएसटी पोर्टल पर जीएसटीआर-3बी रिटर्न भरने की व्यवस्था है, लेकिन ऑटोपापुलेटेड जीएसटीआर-2, जीएसटीआर-3 व एनुअल रिटर्न भरने का आप्शन ओपेन नहीं किया गया है कंपाउंडिंग स्कीम में शामिल होने का पोर्टल पर ऑप्शन ही नहीं व्यापारियों पर क्रिमिनल एक्ट की तरह धाराएं लगा दी गई हैं। स्टॉक रजिस्टर नहीं दिखा पाया तो माल जब्त किया जाएगा। माल पर टैक्स और पेनाल्टी दोनों लगाया जाएगा। रिटर्न जमा न कर पाए तो पेनाल्टी, जवाब न दे पाएं तो पेनाल्टी सीए के ऑडिट को जीएसटी में दुबारा ऑडिट की व्यवस्था क्यों? ट्रेडर और निर्माता पर एक जैसे नियम और कानून क्यों?