ALLAHABAD: पुरस्कार लेखक के लिए चुनौती है उपलब्धि नहीं. ट्यूजडे को भारतीय ज्ञानपीठ अवार्ड ग्रहण करने के बाद कथाकार अमरकांत ने यह कहा. उन्होंने कहा कि पुरस्कार मिलने के बाद लेखक की जिम्मेदारी और बेहतर लिखने की हो जाती है. इस समय मैं उस चुनौती का अनुभव कर रहा हूं. हिंदी के उत्कृष्ट कथाकार अमरकांत को इलाहाबाद म्यूजियम में आयोजित एक प्रोग्राम में ज्ञानपीठ न्यास ने यह सम्मान दिया.


वर्ष 2009 के लिए ज्ञानपीठ अवार्डसाहित्य के इस सर्वोच्च सम्मान से अमरकांत को दिग्गज आलोचक डॉ। नामवर सिंह ने नवाजा। वर्ष 2009 के लिए ज्ञानपीठ अवार्ड अमरकांत व श्री लाल शुक्ला को संयुक्त रूप से दिया गया है। प्रोग्राम में रवींद्र कालिया, ममता कालिया, दूधनाथ सिंह, जस्टिस प्रेम शंकर गुप्त, शमशूल रहमान फारुखी जैसे दिग्गज साहित्यकार व एक्टर तनवीर जैदी भी मौजूद रहे। अनुभव पुराना, पर गौरव नया
इलाहाबाद को ज्ञानपीठ अवार्ड मिलने की खुशी का पुराना अनुभव है। साहित्यकारों की इस उर्वरा भूमि की झेाली में पांचवीं बार ज्ञानपीठ अवार्ड आया है। लेकिन इस पांचवें ज्ञानपीठ के मायने इसलिए बढ़ जाते हैं कि ज्ञानपीठ अवार्ड के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब रचनाकार को सम्मानित करने के लिए खुद ज्ञानपीठ न्यास उसके शहर में पहुंचा है। ज्ञानपीठ के 45 वें अवार्ड के दौरान ही ज्ञानपीठ न्यास ने इस नई परम्परा की नींव रखी है। यहां के पांच साहित्यकारों को ज्ञानपीठ सम्मान से नवाजा जा चुका है। इससे पहले 1968 में सुमित्रा नंदन पंत, 1969 में फिराक गोरखपुरी, 1982 में महादेवी वर्मा और 1962 में नरेश मेहता को ज्ञानपीठ अवार्ड मिल चुका है। हाईस्कूल के टीचर की आई याद


ज्ञानपीठ अवार्ड ग्रहण करने के बाद अमरकांत ने कहा, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझको ज्ञानपीठ अवार्ड मिलेगा। लेकिन आज जब इसको अपने हाथों में देख रहा हूं तो बेहद खुशी हो रही है। शब्दों के महारथी अमरकांत ने कहा कि खुशी बयां करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। इस मौके पर उन्हें अपने हाईस्कूल के टीचर की याद आ गई। अमरकांत ने कहा कि उन्हीं की बदौलत मेरा साहित्य में रूझान हुआ और मैं कहानी लेखन की तरफ बढ़ा हूं। हालांकि वर्तमान में जिस तरह से हिंदी की उपेक्षा की जा रही है उस पर उन्होंने दुख भी प्रकट किया। अमरकांत की कहानी पर रिसर्च की जरूरत प्रख्यात आलोचक डॉ। नामवर सिंह ने कहा कि अमरकांत ने जिस विधा से कहानी को गढ़ा है वह अद्वितीय है। उन्होंने कहा कि उनकी कहानी पर रिसर्च की जरूरत है। साहित्यकार रवींद्र कालिया ने कहा कि कथा की दुनिया में अमरकांत का स्थान मंटो के समानांतर है। ममता कालिया ने प्रशस्ति पत्र का वाचन किया। ज्ञानपीठ पुरस्कार के तौर पर अमरकांत को पांच लाख रुपए का चेक, एक शॉल, श्री फल, वाद्यदेवी सरस्वती की प्रतिमा व प्रशस्ति पत्र दिया गया। इस दौरान जस्टिस प्रेमशंकर गुप्त ने उन दिनों को याद किया जब अमरकांत व वह यूनिवर्सिटी में साथ पढ़ाई करते थे।

Posted By: Inextlive