अब धूमिल हो चुकी है वापसी की उम्मीद
-पांच साल के दौरान 42 बच्चियों को खोज नहीं सकी पुलिस
-नाबालिग लड़कियों के गायब होने की संख्या में इजाफा KAUSHAMBI: जिले से नाबालिग बेटियों के लापता होने की संख्या में हर साल इजाफा हो रहा है। पिछले पांच साल के दौरान लापता हुई 42 बेटियों को पुलिस खोज नहीं सकी। खोजबीन की दिशा में पुलिस की सारी कवायद फाइलों तक की सिमटी रहती है। ऐसे में बेटियों के घरवाले भी लाडली के वापस लौटने की उम्मीद खो चुके हैं। कुछ को घरवालों ने खोजाजनवरी 2015 से लेकर जुलाई तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो 39 बच्चियां लापता हुई, जिसमें 28 को तो घरवालों ने खोज निकाला लेकिन 11 का अब तक पता नहीं चला। यह वह लड़कियां है, जिनकी उम्र 18 साल से कम है। 18 साल से ऊपर उम्र वाली लड़कियों संख्या पर नजर डाले तो उनकी संख्या 32 है। पुलिस ने तीन को खोज निकाला लेकिन 29 अभी भी लापता हैं।
आंकड़ों की जुबानी वर्ष कुल लापता शेष -2010 25 05 -2011 55 05-2012 38 04
-2013 31 10 -2014 28 07 -2015 39 11 किसी गैंग की हाथ तो नहीं जिले में लड़कियों को अगवा कर बेचे जाने के कई मामले प्रकाश में आ चुके हैं। ऐसे में कयास लगाए जा रहे है कि लापता होने वाली बेटियां किसी गैंग के पास तो नहीं। इस बाबत पुलिस के अफसर कुछ बोलने को राजी नहीं है। यह है खोजबीन के नियम मिसिंग चाइल्ड टै्रकिंग सिस्टम नाम से पोर्टल है, जिसमें लापता बच्चे का फोटो सहित पूरा ब्योरा अपडेट किया जाता है। किसी भी जिले की पुलिस अपने यहां मिलने वाले बच्चे का इसी पोर्टल से मिलान कराती है, लेकिन मानीटरिंग के अभाव में सिस्टम सक्रिय नहीं हो सका। निठारी कांड के बाद बदले नियमनोएडा के निठारी कांड के बाद लापता बच्चों की खोजबीन को लेकर शासन ने सख्त रुख अख्तियार किया था। कहा गया था कि अगर बच्चा काफी दिन तक नहीं मिले तो उसके अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर मुकदमे की तरह विवेचना की जाए। रेलवे स्टेशन और बस स्टाफ पर लापता के पोस्टर लगाए जाए। अखबार और टीवी चैनल में विज्ञापन कराया जाए, लेकिन पुलिस बजट का रोना-रोकर हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती है।