शिया और सुन्नी में अलग-अलग बताए गए हैं तलाक के रास्ते

देश की सर्वोच्च अदालत में चल रही है 'तलाक तलाक तलाक' पर बहस

ALLAHABAD: ऐसे समय जब पूरी दुनिया में महिलाओं के हक की बात की जा रही है और मुसलमानों पर औरतों को उनका हक देने का दबाव बढ़ रहा है, तभी सुप्रीम कोर्ट में 'तलाक तलाक तलाक' पर चल रही बहस ने पूरे देश का ध्यान इस मुद्दे की ओर मोड़ दिया है। यह इसलिए भी बहस का विषय बना है कि ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड लखनऊ ने एक कदम आगे बढ़ते हुए तलाक पर रोक के लिए निकाह का एक प्रगतिशील मॉडल पेश किया है। इस सनद-ए-निकाह में तलाक का अधिकार महिलाओं को दिया गया है और पुरुषों के वर्चस्व को सीमित करने की कोशिश की गई है।

आम आदमी का एजेंडा

अभी तक जो मसला पुरुषों के लिहाज से गैरजरुरी था, वह सुप्रीम कोर्ट में चल रही बहस के चलते आम आदमी के एजेंडे में शामिल हो गया है। वह भी ऐसे समय जब विश्व पटल पर उभरती भारत की तस्वीर का अहम हिस्सा मुस्लिम महिलाएं भी हैं। जाहिर है बिना इनके आगे बढ़े विकाससील भारत विकसित राष्ट्र की श्रेणी में शामिल नहीं हो पाएगा। इससे पहले की राष्ट्र की सर्वोच्च अदालत धर्म में बताए गए तलाक के रास्तों पर अपनी अंतिम राय दे, आई नेक्स्ट सिटी के लोगों की अदालत में उनकी राय जानने के लिए पहुंचा। इस बहस में जो बात निकलकर सामने आई। उससे इस बात के साफ संकेत मिले कि हजारों साल से चली आ रही बहस पर एकमत हो पाना फिर कांटों भरा कदम साबित होगा।

दोनो वर्गो के अपने तर्क

आई नेक्स्ट की पड़ताल में एक बात खुलकर सामने आई कि इस मसले पर शिया और सुन्नी वर्ग के अलग-अलग मत हैं। दोनों ही अपने लिए बनाए गए नियम और कायदों को सही ठहरा रहे हैं। हालांकि वे भी इस बात से इंकार नहीं कर रहे कि इस्लामिक परिवेश को आधुनिक दौर के हिसाब से आगे कदम बढ़ाना होगा। ऐसा नहीं किया गया तो दूसरे धर्मो की तुलना में मुस्लिम युवा पीढ़ी होड़ में पीछे रह जाएगी। इस बातचीत में बुद्धिजिवियों ने छेड़ी गई बहस से पहले सभी से यह अपील की कि टॉपिक कोई भी हो। कुरआन और शरियत में कही गई बातों का अच्छे से ज्ञान होना चाहिए। बिना जानकारी के बहस का हिस्सा न बनें। क्योंकि यह भविष्य से जुड़ा अत्यंत ही गंभीर विषय है और यह हिन्दुस्तान की एक बड़ी आबादी को प्रभावित करेगा।

हम अल्लाह के बनाए कानून पर चलते हैं। शिया और सुन्नी वर्ग में तलाक के तरीके अलग-अलग हैं। महिलाओं को उनका हक देने से कोई इंकार नहीं कर सकता। उन्हें पीछे धकेलकर कोई आगे नहीं बढ़ पाएगा।

बाकर नकवी, संयोजक, मुहाफिजे अजा अमारी कमेटी

युवाओं को इस्लामिक परिवेश से उम्मीद है कि वह आधुनिक परिवेश में जिएं, जो भी इससे कटने की कोशिश करेगा, वह मुख्य धारा से बाहर हो जाएगा। हमें समय की मांग के अनुसार निर्णय लेने होंगे।

हैदर अब्बास

तलाक के मसले पर कौन सही है और कौन गलत यह बहस का विषय नहीं होना चाहिए और न ही इस इश्यू को धर्म से जोड़कर देखा जाना चाहिए। बात सुधार की हो रही है। ऐसे में बुद्धिजीवी लोग मिलकर कोई न कोई आमराय बनाएंगे।

सैय्यद अजादार हुसैन, अध्यक्ष दरगाह मौला अली प्रबंध समिति

शिया उदारवादी विचारधारा के होते हैं। हमारे यहां तलाक निकाह से भी ज्यादा सख्त है। शिया पुरुष और महिलाओं में कोई विभेद नहीं करने में यकीन करता है।

तूफाने इलाहाबादी, शायर

तलाक का मसला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। हमें पूरी उम्मीद है कि शीर्ष अदालत मसले का सर्वमान्य हल निकालेगी। आज के प्रतिस्पर्धा भरे दौर में स्वस्थ्य संवाद से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है।

मंजर अब्बास नकवी

पुरुषों के बराबर महिलाओं को भी बराबरी का हक मिलना चाहिए। किसी भी धर्म में किसी को ज्यादा और किसी को कम अधिकार नहीं दिया गया है।

अकबर अब्बास

विकास की दौड़ में आगे बढ़ना और परिवार की अनिवार्यता दोनों अलग-अलग चीजें हैं। पुरुषों और महिलाओं की भूमिका पारिवारिक कड़ी में अलग-अलग है। यह बात सही है कि सुन्नी वर्ग में तलाक के नियम को समझे बिना पुरुष 'तलाक तलाक तलाक' बोल देते हैं। यह इतना आसान नहीं है कि ऐसे ही बोल दिया जाए।

आमिर उस्मानी, सदस्य जमात ए इस्लामी हिन्द

न पुरुषों को असीमित और न ही महिलाओं को इतने सीमित अधिकार दिये गए हैं कि किसी के अधिकारों का हनन हो। कोई भी सुन्नी वर्ग का पुरुष अगर बताए गए रास्तों का शत प्रतिशत अनुपालन करेगा तो मर्यादा अपनी जगह कायम रहेगी और औरत का भी सम्मान बना रहेगा।

मो। कलीम उस्मानी

Posted By: Inextlive