Allahabad: खुद तो बड़ी मुश्किलों और संघर्ष से एजूकेशन हासिल की. इतने पैसे नहीं थे कि पढ़ाई के लिए किताबें भी खरीद सकें लेकिन फिर भी अपनी लगन व मेहनत की बदौलत पढ़ाई पूरी की और सीएमपी डिग्री कालेज से बीएससी में टॉप भी किया. घर की हालत इतनी खराब था कि तत्काल जॉब की जरूरत आन पड़ी. ऐसे में टीचिंग लाइन को चुना. उसके बाद शुरू हुई बच्चों को शिक्षा देने और उन्हें बेहतर इंसान बनाने का सिलसिला. 1970 में शुरू हुई यह दास्तान चालीस साल पूरा होने के बाद भी आज तक जारी है. कालेज से तो रिटायर हो गए लेकिन बच्चों को पढ़ाने के शौक ने उन्हें आज भी स्टूडेंट्स का फेवरेटी टीचर बना रखा है.

 

12वीं तक नहीं लगता था पढऩे में मनमूलरूप से हरियाणा के रहने वाले रमेश कुमार अग्रवाल के पिता के सीओडी में काम करते थे। पिता की डेथ के बाद घर की जिम्मेदारी उनके बड़े भाई पर आ गई। बकौल रमेश कुमार 12वीं तक तो उनका मन पढ़ाई में नहीं लगता था। यहां तक की इंटरमीडिएट भी उन्होंने फिजिक्स में ग्रेस मार्क के साथ पास किया। उसके बाद सीएमपी डिग्री कालेज में बीएससी में एडमिशन लिया। उसी समय उन्हें शिक्षा का महत्व पता चला। क्योकि पूरी पढ़ाई लगभग इंग्लिश में थी। फिर उन्होंने जो रफ्तार पकड़ी, कि उसे रोकना लोगों के बस में नही था। बीएससी में उन्होंने सीएमपी डिग्री कालेज में टॉप किया. 

जब पूरी किताब कर ली कॉपी

सीएमपी से बीएससी करते समय उनके पास पैसे नहीं होते थे। पैदल वह चौक मालवीय नगर से सीएमपी कालेज जाते थे। उस समय उन्हें एट्रेक्शन प्रोटेन्स नाम की एक किताब की जरूरत थी। उस समय उसका रेट एक रुपए था। लेकिन पैसा ना होने के कारण उन्होंने अपने फ्रेंड से बुक को रात भर के लिए मांगी व पूरी रात में जगकर उसे कॉपी कर लिया। इसी तरह कई बार प्राब्लम को झेलते हुए उन्होंने बीएससी पूरी की। इसके बाद एमएनएनआईटी में बीटेक में एडमिशन लेने के पैसे ना होने के कारण उन्होंने टीचिंग करने की सोची। फिर वहीं से शुरू हुआ टीचिंग का सिलसिला. 

1970 में पूरी की एलटी

बीएससी की पढ़ाई पूरी करते समय ही उन्होंने प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। इसके लिए उन्हें मंथ में 11 रुपए मिलते थे। इसमें वह ऐसे बच्चों से फीस नहीं लेते थे, जिनके पास पैसे नहीं होते थे। इस दौरान उन्होंने एलटी कंप्लीट करने के बाद सीएवी इंटर कालेज में टीचर की जॉब शुरू की। जो 2007 तक चलती रही। इस दौरान उन्होंने मैथ्स व फिजिक्स की कई बुक्स भी लिखी, जो पब्लिश हुई और स्टूडेंट्स के लिए बेहद लाभदायक रहीं. 

डेढ़ साल तक रहे depression में

सीएवी से 2007 में रिटायर होने के बाद उन्होंने पढ़ाना छोड़ दिया। देखते ही देखते वह डिप्रेशन में चले गए। डेढ़ सालों तक वह गहरे डिप्रेशन में रहे। उन्होंने निश्चय किया कि वह फिर से पढ़ाना शुरू करेंगे। इसके लिए उन्होंने कई लोगों से बातचीत की और फिर से पढ़ाने का सिलसिला शुरू कर दिया। जो आज भी जारी है. 

बच्चों को करें प्रोत्साहित

रमेश कुमार अग्रवाल का मानना है कि बच्चों को हर अच्छे काम के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। उनके साथ गलत व्यवहार नहीं करना चाहिए और ना ही उनके लिए भविष्यवाणी करनी चाहिए। इसका असर बच्चों पर गलत पड़ता है। जबकि कई बार देखा गया है कि कुछ टीचर्स इस तरह का व्यवहार अपने स्टूडेंट्स के साथ करते हैं. 


 

Posted By: Inextlive