आज के टाइम में हर किसी को लाइफ में स्पेस चाहिए. सेपरेट स्पेस की चाह में आज किसी को भी लाइफ में किसी दूसरे का इंटरफियरेंस करना बिल्कुल पसंद नहीं है फिर चाहे वे उनके खुद के पेरेंट्स ही क्यों न हो. हर पेरेंट अपने बच्चों को प्यार करते हैं.

बरेली (ब्यूरो)। आज के टाइम में हर किसी को लाइफ में स्पेस चाहिए। सेपरेट स्पेस की चाह में आज किसी को भी लाइफ में किसी दूसरे का इंटरफियरेंस करना बिल्कुल पसंद नहीं है फिर चाहे वे उनके खुद के पेरेंट्स ही क्यों न हो। हर पेरेंट अपने बच्चों को प्यार करते हैं। वे लाइफ में उन्हें कुछ बनते हुए देखना चाहते हैं। यह कि कारण है कि वे अक्सर उन्हें डांटते-फटकारते भी रहते हैं, लेकिन इस डांट-फटकार का अर्थ कई बार कुछ बच्चे गलत निकाल लेते हैं। उन्हें लगने लगता है कि उनके मम्मी-पापा उन्हें प्यार नहीं करते, उनकी केयर नहीं करते, पर वास्तविकता यह नहीं है। दरअसल पेरेंट्स की टोका-टाकी बस बस कारण से होती है कि हीं उनके बच्चे के साथ कुछ गलत न हो जाए। वहीं कई बच्चे इसे अपने ऊपर लगाई गई बंदिश मानने लगते हैं। कई बार उनकी यह ही सोच उन्हें चिड़चिड़ा बना देती है। प्रस्तुत है विशेषज्ञ से बातचीत के आधार पर एक रिपोर्ट।

पेरेंट्स लगते हैं दुश्मन
साइकोलॉजिस्ट डॉ। खुशअदा ने बताया कि आज के टाइम में उनके पास कई ऐसे केस आते हैं, जिनमें माता-पिता यह शिकायत करते हैं कि उनका बच्चा उनसे कटा-कटा रहता है, छोटी-छोटी बातों पर वह गुस्सा हो जाता है। कई बार पेरेंट्स का यह भी कहना होता है कि उनका बच्चा उन्हें अपना दुश्मन मान बैठा है।

हेलीकॉप्टर पेरेंटिंग से बनाएं दूरी
साइकोलॉजिस्ट्स के अनुसार जब पेरेंट्स हेलिकॉप्टर पेरेंटिंग करनी शुरू कर देते हैं तब से ही प्रॉब्लम शुरू हो जाती है। यानि हर समय सिर पर चढ़े रहना, बात-बात पर टोका-टाकी करना, इससे बच्चे उकता जाते हैं। पेरेंट्स को लगता है कि वे उन्हें गलत रास्ते पर जाने से रोक रहे हैैं, लेकिन कई बार हर चीज में बार-बार रोक-टोक बच्चों को बंदिश लगने लगती है। ऐसे में पेरेंट्स को उन्हें समझाने के लिए नया तरीका इस्तेमाल करना चाहिए, जिससे बच्चों तक बात भी पहुंच जाए और उन्हेंं गलत भी न लगे।

हो रहे हार्मोनल चेंज
टीनएज आते-आते बॉडी में कई तरह के चेंजेज हो रहे होते हैैं। इनमें से ही एक होता है हार्मोनल चेंज। पहले जहां 12 से 13 साल के बीच बच्चे ये सब महसूस करते थे। वहीं अब नौ से 10 साल के बीच में ही यह महसूस होने लगता है। अब तो नौ से दस साल की उम्र में ही कई सारे चेंजिज मेहसूस करने लगते हैैं। इसके अलावा कई सारे इमोशनल चेंजिज भी हो रहे होते है। 11 से 19 की उम्र टीन की लाइफ में कई चेंज लाती है। इस एज में टीन्स चाइल्डहुड से एडल्टहुड की ओर बढ़ रहे होते हैैं। इस दौरान कई बदलाव दिखते हैैं जैसे कि किसी को देखकर अच्छा लगना यानी किसी अपोजिट सेक्स के प्रति अट्रैक्ट होना आदि, जो की एक नॉर्मल बात है। हर किसी ने इस चीज को महसूस किया होगा फिर चाहे वो पेरेंट्स खुद ही क्यों न हो, लेकिन पेरेंट बनने के बाद अपने बच्चे के लिए लोगों की फीलिंग बदल जाती हैैं, जो कई बार बच्चों को अपने साथ हो रहे चीजों की वजह से गलत लगती हैं। ऐसे में पेरेंट्स को अपने बच्चों को समझाना चाहिए न ही मार और डांट कर खुद को बदलने के लिए प्रेशराइज करना चाहिए।

पेसेंस लेवल हुआ कम
सोशल मीडिया ने भी लोगों की लाइफ में बहुत सारे चेंजेज लाए हैं। उस में से ही एक है पेशेंस लेवल। बच्चों में पेशेंस लेवल बहुत ही कम हो गया है। इसके अलावा बच्चों में अभी से एक हैबिट देखी जा रही है, वह है वर्चुअल वल्र्ड में रहना। आजकल बच्चे प्रजेंट लाइफ से ज्यादा वर्चुअल वल्र्ड में रहना ज्यादा पसंद करते हैैं। टेनोलॉजी ने भले ही चीजें आसान बना दी हैं। इसका एक्सेस यूज काफी खतरनाक है।

ओपन माइंडेड बनें
साइकेट्रिस्ट डॉ। अभिलाषा ने बताया कि पेरेंट्स को थोड़ा सा ओपन माइंडेड होना चाहिए। अपने बच्चे के साथ फ्रेंडली नेचर रखना चाहिए, जिससे वे अपने साथ हो रही चीजों को आपके साथ शेयर करें न कि हिचकिचाएं कि अगर पता चल गया तो क्या होगा। कहीं घर में डांट या मार न पड़ जाए। ऐसे में बच्चों को अपने कॉन्फीडेंस में रखें और उनकी सारी परेशानी सुनें उसके बाद ही कोई सॉल्यूशन दें।

अपनी बातों को न थोपें
डॉ। अभिलाषा के अनुसार कई बार छोटी सी बात को समझाना भी बहस लगने लगता है। ऐसे में बच्चों पर नजर रखें, लेकिन अगर आप का बच्चा कुछ उल्टा कर रहा है और आपने देख लिया तो ऐसे टाइम पर बड़े होने के नाते हमें समझदारी के साथ अपने बच्चे को समझाना चाहिए। इससे वे कभी भी आपसे झूठ नहीं बोलेंगे और कहीं न कहीं आप कि की हुई बातों पर बच्चा एक बार सोच विचार भी करेगा। कई बार पेरेंट्स बच्चों में हो रहे बदलाव को देख रहे होते हैैं, लेकिन इस बारे में उनसे बात नहीं करते हैैं। वहीं कई बार पेरेंट्स खुद की लाइफ में ही इतने व्यस्त होते हैैं कि बच्चों को टाइम ही नहीं दे पाते हैैं। ऐसे में कई बच्चे समझ ही नहीं पाते की अपनी बात किससे करें। टीनएज बच्चों की पेरेंटिंग, टॉडलर बच्चे की पेरेंटिंग की तरह हो जाती है। जहां बच्चे डेवलपमेंट की एक ऊंची छलांग लगा रहे होते हैं। टॉडलर जमीन पर पैर मारता है, तो वहीं टीनएज उल्टे जवाब देता है। अगर आप लिमिट बनाकर रखें और बच्चे की तरह ही गुस्सा ना दिखाएंगे तो आपका बच्चे के साथ रिश्ता सही दिशा में जा सकता है।

केस- 1
डिस्ट्रिक हॉस्पिटल की साइकोलॉजिस्ट खुशअदा कहती हैं कि राजेंद्र नगर का एक केस डॉक्टर के पास आया, जिसमें पेरेंट्स का मानना था कि उनका बच्चा घर में किसी से बात ही नहीं करता है और पहले की मुकाबले बहुत चुप-चुप सा हो गया है। ऐसे में जब उस बच्चे की काउंसलिंग की गई तो पता चला कि वह पेरेंट्स के बिहेवियर से बहुत फ्रस्ट्रेटेड था। उसके पेरेंट्स उसे हर चीज के लिए टोकते हैैं। जब इस बात को पेरेंट्स से कंफर्म किया गया तो पता चला कि यह बिलकुल सच था। ऐसे में दोनो को अपने नेचर में बदलाव लाने की सलाह दी गई।

केस-2
इंद्रा नगर के एक केस की काउंसिलिंग अस्पताल में चल रही है। उसमें यह पता चला कि उनकी बेटी काफी चिड़चिड़ी हो गयी है। उसे हर छोटी-छोटी बात पर गुस्सा आ जाता है। ऐसे में जब काउंसलिंग की तो पता चला कि पेरेंट बच्चे को पूरी तरह कंट्रोल किए हुए थे। ऐसे में वह अपनी बातें किसी के आगे रख ही नहीं पा रही थी, इसलिए उसने घर वालों से थोड़ा अलग या फिर कहें की कटे रहने का फैसला कर लिया था।

टीनएज एक ऐसी एज होती है, जिसमें बच्चे का ओवरऑल डवलेपमेंट हो रहा होता है। ऐसे में जब उन्हें हद से ज्यादा रोका या टोका जाए तो बच्चे आउट ऑफ कंट्रोल हो जाते हैैं। ऐसे में उन्हें माता-पिता की कंसर्न के साथ-साथ उनके सपोर्ट की भी जरूरत होती है।
डॉ। खुशअदा, साइकोलॉजिस्ट

आज के टाइम पर फैमली न्यूक्लियर होती जा रही हैैं। इसकी वजह से बच्चों का जो ओवरऑल डवलपमेंट होता था, जहां वे अपनी बातें सब तक पहुंचा पाते थे, वह भी खत्म हो गया है। टाइम के साथ पेरेंट्स को भी अपने अंदर बदलाव लाने होंगे। अपने बच्चों को सुनें और समझें तब जाकर ही सॉल्यूशन मिल सकेगा।
डॉ.अभिलाषा गुप्ता, साइकेट्रिस्ट

Posted By: Inextlive