-व्रतियों ने खरना का प्रसाद ग्रहण कर शुरू किया व्रत

-छठ पूजा के लिए घाट पर व्यवस्थाओं को किया दुरुस्त

बरेली:

आस्था का सबसे बड़ा पर्व छठ कल से नहाए खाए के साथ शुरू और आज खरना है। आज के दिन गुड़ की खीर, पूड़ी, ठेकुआ, मालपूआ, खजूर, चावल का लड्डू और सूजी का हलवा आदि का प्रसाद बनाकर छठी माता का भोग लगाया जाता है। पुजा के लिए मौसमी फल और कुछ सब्जियों का भी प्रयोग किया जाता है। इसी दिन व्रत रखने वाला व्यक्ति इस प्रसाद को छठी मैया को अर्पित करता है और खरना के दिन प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रत रखा जाता है। छठ पुजा का प्रसाद बनाते समय ऐसी मान्यता है कि चूल्हे में आग के लिए केवल आम की लकडि़यों का ही प्रयोग किया जाता है।

दूसरा दिन खरना के रूप में मनाया जाता है

पहले दिन की पूजा के बाद परवैतिन का नमक खाना वर्जित रहता है। पर्व का दूसरा दिन खरना के रूप में मनाया जाता है। पूरे दिन उपवास रहने के बाद शाम को महिलाएं गन्ने के रस से बनी खीर का प्रसाद ग्रहण करती हैं। इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद निर्जल व्रत की शुरूआत होती है। तीसरी शाम को अस्ताचलगामी सूर्य को दूध एवं जल से अ‌र्घ्य देकर मौसमी फल एवं ठोकवा आदि का चढ़ाया जाएगा। अगली सुबह उगते सूर्य को अंतिम अ‌र्घ्य देने के बाद कच्चा दूध और प्रसाद खाकर व्रत का समापन किया जाता है।

पौराणिक मान्यता

छठ पुजा सबसे पुराना त्योहार है यह प्राचीन वेदों से भी पहले हो सकता है क्योंकि ऋग्वेद में सूर्य की इस पुजा के भजन और इसी तरह के कुछ अनुष्ठान शामिल है जैसे इस त्योहार में होते है। इस अनुष्ठानों का उल्लेख महाभारत में भी है जहां द्रौपदी इस प्रकार के अनुष्ठान करती है। चतुर धौम्य की सलाह पर, पांडवों और द्रौपदी द्वारा छठ का अनूष्ठान किया गया था। सूर्य की इस पुजा ने द्रौपदी की कई समस्याओं का हल कर दिया और बाद में पाण्डवों को अपना राज्य वापस करने में भी मदद मिली। छठ त्योहार के अनुष्ठान बहुत कठिन होते है। छठ त्योहार चार दिनों की अवधि में मनाया जाता है, पवित्र स्नान, परहेज करना साथ ही साथ इस व्रत में पाक सफाई का खासा ध्यान देना होता है। यह व्रत 36 घण्टों का निर्जला होता है।

व्रत की कथा

प्रचलित पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए भगवान राम ने राजसूय यज्ञ किया। इस यज्ञ में पधारे मुग्दल ऋषि ने देवी सीता को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने की सलाह दी। इसके बाद वह उन्हीं के आश्रम में रहकर आदिदेव सूर्य की उपासना की। महाभारत काल में द्रोपदी ने भी सूर्योपासना कर कर्ण जैसे प्रतापी पुत्र को जन्म दिया था। तभी से यह पर्व मनाया जाता है। व्रत के पीछे राजा प्रियंवद की कहानी भी प्रचलित है।

छठ का महत्व

कार्तिक मास में सूर्य नीच राशि में होता है। इसलिए उनकी विशेष उपासना की जाती है। इससे लोगों का स्वास्थ्य ठीक रहता है। षष्ठी तिथि का संबंध संतान की आयु से होने के कारण सूर्य देव और षष्ठी की पूजा से संतान प्राप्ति के साथ ही उसकी आयु, यश एवं कीर्ति में उत्तरोतर वृद्धि होती है। उक्त तिथियों में सूर्योपासना कर वैज्ञानिक रूप से हम अपनी ऊर्जा और स्वास्थ्य को बेहतर कर सकते हैं। सूर्य की शक्तियों का प्रमुख स्त्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं, इसलिए छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की भी संयुक्त उपासना की जाती है। व्रत के तीसरे दिन शाम को सूर्य की आखिरी किरण प्रत्यूषा तथा चौथे दिन सुबह पहली किरण ऊषा को अ‌र्घ्य देकर दोनों का नमन किया जाता है।

Posted By: Inextlive