मैं खामोश रहकर भी बहुत कुछ कह रहीं हूं
- मंडे को साजिदा द्वारा निर्देशित प्ले बाडा द स्लॉटर हाउस का हुआ मंचन
BAREILLY: कहते हैं कि बहते पानी को रोकने का प्रयास नहीं करना चाहिए। रूका हुआ पानी बहुत खतरनाक होता है। लेकिन वर्षो से आंखों के किनारे से पानी निकलता रहा लेकिन वह कभी 'आंसू' न कहलाए। 10वें विंडरमेयर थिएटर फे स्ट में मंडे को महाश्वेता देवी द्वारा लिखित 'दौलती' कहानी का नाट्य रूपांतरण बाडा 'दि स्लॉटर हाउस' का मंचन किया गया। साजिदा द्वारा निर्देशित और दिल्ली के ट्रेजर आर्ट ग्रुप के कलाकारों की परफार्मेस देख दर्शकों की आंखें नम हो गई। प्ले के दौरान रंगविनायक रंगमंडल सीईओ शिखा सिंह, डॉ। बृजेश्वर सिंह, नवीन कालरा, डॉ। गरिमा सिंह मौजूद रहे। प्ले ने दिखाया आइनामंडे को विंडरमेयर ब्लैक बॉक्स थिएटर में सच को साफ साफ दिखाने की कोशिश प्ले बाड़ा ने किया। कहानी की शुरुआत देश की आजादी के बाद वर्ष 1961 की पृष्ठभूमि से की गई। जिसमें गनौरी नागेसिया का परिवार था। जो गांव के मुखिया परमानंद के बंधुआ मजदूर थे। नागेसिया ने परमानंद से 300 रुपए कर्ज लिए थे। जिसके बदले उसने नागेसिया की बेटी को चालाकी से वेश्या बना दिया। इसके बाद वेश्याओं की जिंदगी से ऑडियंस दो चार होती रही। भूख किस कदर इंसान को मजबूर बनाती है, हसरतें किस तरह सिलवटों की तरह बिखरती हैं, सजावट किस तरह कालिख का रूप लेती है, से हर कोई खामोशी से रूबरू होता रहा। कई सारे सवाल, समाज के नुमाइंदों के लिए छोड़कर अंत की ओर बढ़ चला।