- सात महीने पहले खुला था जिले में साइबर थाना, छानबीन के दौरान पुलिस झेल रही सैकड़ों परेशानियां

- लोगों के बैंक खातों से रुपये उड़ाने के बाद अलग-अलग खातों से साइबर ठग करते हैं ट्रांजेक्शन

बरेली। साइबर क्राइम, कहने को तो महज दो ही शब्द हैं, लेकिन इन मामलों की विवेचना करते वक्त पुलिस के सामने कई प्रदेशों और जिलों से जानकारियां जुटाने की चुनौती खड़ी रहती है। अब तक जिले में स्थित रेंज के साइबर थाने में कई मामले दर्ज हो चुके हैं, जिनमें कुछ दूसरे थानों व जिलों से ट्रांसफर किए हुए भी हैं। जहां कुछ मामलों में खुलासा हो चुका है, तो वहीं अभी करीब आठ मामलों की विवेचनाएं लंबित भी हैं। पुलिस के मुताबिक इन मामलों के तार अब तक सामने आए सात प्रदेशों और करीब 19 जिलों से जुड़ चुके हैं। शातिर साइबर ठग पुलिस को गुमराह करने के लिए मामूली सी भी रकम को कई हिस्सों में बांटकर ट्रांजेक्शन करते हैं, जिससे पुलिस के लिए चुनौतियां और बढ़ जाती हैं।

राजस्थान में सबसे बड़ा जाल

साइबर यूनिट के मुताबिक ठगी के मामले की जांच करते वक्त उन्हें पीडि़त के खाते से निकाले गए रुपयों को ट्रेस करते वक्त कई ट्रेल मिलती है। जिनमें बैंक ट्रांजेक्शंस के साथ ही ऑनलाइन माध्यम से किया गया लेनदेन भी होता है, जोकि टेक्नोलॉजी की मदद से देश के किसी भी कोने से किया जा सकता है। साइबर पुलिस के मुताबिक अब लंबित मामलों में महाराष्ट्र के मुंबई व औरंगाबाद, झारखंड के दुनाक, बिहार के जम्मुई, पश्चिम बंगाल के चौबीर परगना, कलकत्ता व मुर्शिदाबाद, कर्नाटक के बैंगलूर व एक अन्य, हरियाणा के फिरोजाबाद और राजस्थान के भरतपुर, अलवर, दोजा, चोमू, जयपुर, जोधपुर, सिरोही, अंगदपुर और अजमेर का ठगी से कनेक्शन सामने आ चुका है।

गलत डिटेल पर फंसती है पुलिस

साइबर पुलिस के मुताबिक मामले की जांच के दौरान सबसे पहले जिस बैंक खाते से लेनदेन किया जाता है, उससे जुड़े डाक्यूमेंट्स वैरिफाई कराए जाते हैं। जिनमें अधिकतर सामने आता है कि बैंक खातों से जुड़े आधार कॉर्ड, वोटर आईडी व अन्य डॉक्यूमेंट्स सही तो होते हैं, लेकिन उनमें दी जानकारी जैसे मोबाइल नंबर, एैड्रेस व अन्य जानकारियां गलत पायी जाती है। ऐसे में पुलिस अक्सर गलत पते पर पहुंचती है और भटकती रहती है। वहीं अक्सर निजी कंपनियों से भी उन्हें छानबीन के दौरान मदद नहीं मिलती।

निर्दोष भी जाते हैं फंस

साइबर फ्रॉड से बचने की चेतावनी देने पर सबसे पहले लोगों को उनकी पर्सनल व फाइनेनशियल डिटेल्स देने से बचने को कहा जाता है। साइबर पुलिस के मुताबिक अक्सर साइबर ठग लोगों के बैंक खाते का इस्तेमाल करते ठगी की रकम को ठिकाने लगाते हैं। जिसके कारण अक्सर निर्दोष लोग भी पुलिस की रडार पर आ जाते हैं। ऐसे ही एक मामले में करीब तीन महीने पहले दिल्ली पुलिस ने जिले में दबिश देकर आंवला एक व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया था। आरोप था कि दिल्ली में करीब 65 लाख की हुई एक ठगी की रकम उनके खाते से ठिकाने लगाई गई थी। जबकि साइबर ठगों ने उनके खाते से रकम ठिकाने लगाने के बाद उनकी रुपये भी उड़ा लिए थे। जिसकी उन्होंने शिकायत पुलिस से भी की थी। वह व्यक्ति दिल्ली की एक जेल में बंद हैं।

रह जाते हैं सवाल

साइबर पुलिस के मुताबिक ठगी करने वाले आरोपी पकड़े जाने के बावजूद कई सवालों के जबाव नहीं मिल पाते, जिनके लिए बाद एक नए सिरे से छानबीन करनी पड़ती है। ऐसे में ठगी से जुड़े बैंक अकाउंट्स व अन्य डिटेल्स की दोबारा गहनता से छानबीन करना पड़ती है। साइबर थाने में दर्ज हुए पहले मामले में पुलिस ने ठगी करने वाले नवाबगंज के दो बदमाशों को पकड़ा था। लेकिन मामले में अभी चार्जशीट नहीं लग सकी है। पुलिस के मुताबिक जिस खाते का इस्तेमाल ठगी में किया गया था, वह आरोपी के एक रिश्तेदार का है। अब बैंक ट्रांजेक्शंस की डिटेल्ट दोबारा टैली करते रिश्तेदार की संदिग्ध भूमिका की भी जांच होगी। इसके बाद मामले में चार्जशीट दाखिल की जाएगी।

इसके लिए कौन जिम्मेदार

- बिना डॉक्यूमेंट्स वैरिफिकेशन के निजी कंपनियां जारी कर देती हैं सिम कॉर्ड

- बिना डॉक्यूमेंट्स वैरिफिकेशन के तमाम निजी बैंकों में खोल दिए जाते हैं सेविंग्स अकाउंट

- जिन पीडि़तों को ठगी के बाद जानकारी मिलती है, उनके लिए बैंकों की जिम्मेदारी क्यों तय नहीं

- साइबर ठगी के मामलों की जांच के दौरान पुलिस को नहीं मिलता निजी कंपनियों का सहयोग

Posted By: Inextlive