Bareilly: शहर के नए मेयर का नाम तय हो गया. इसी के साथ बरेलियंस की पुरानी उम्मीदों को एक बार फिर नए पंख लग गए. लंबे समय से रुके काम और पिछले कार्यकाल के डेवलपमेंट लोगों के जेहन में ताजा हो चुके हैं. अब बरेलियंस की आस भरी निगाहें नए सिरे से मेयर डॉ. आईएस तोमर पर टिक गई हैं. हालांकि रेजिडेंट्स की एक्सपेक्टेशंस पर खरा उतरने के लिए डॉ. तोमर के सामने चुनौतियां कम नहीं हैं. आई नेक्स्ट ने शहर की पांच बड़ी और प्राइम समस्याओं का लेखा जोखा तैयार किया. हो सकता है मेयर साहब को इससे लक्ष्य साधने में मदद मिल सके.


बूढ़ी हो चुकी सीवर लाइन सिटी की सीवर लाइन की डेड लाइन क्रॉस हो चुकी है। मेन प्रॉब्लम 45 किमी लंबी टं्रक लाइन को लेकर है, जो पूरी तरह गल चुकी है। शहामतगंज से लेकर बरेली कॉलेज तक की मेन ट्रंक लाइन तीन बार टूट चुकी है। कई स्पॉट पर जमीन धंस भी चुकी है। खास बात ये है कि 1964-65 में पड़ी सीवर लाइन के बाद सीवर डालने का काम बड़े पैमाने पर नहीं किया गया। वहीं शहर में कई एरियाज के रेजिडेंट्स सीवर लाइन के लिए तरस रहे हैं। शहर का तमाम मैला सीवर लाइन के जरिए किला नदी से रामगंगा और वहां से गंगा में गिरता है। इस पर भी सिटी को सीवर ट्रीटमेंट प्लांट की सुविधा नहीं मिल सकी है।निगम ने क्या घोषणाएं कीं
-पुरानी सीवर लाइन को बढ़ाने और वंचित इलाकों में नई सीवर लाइन डालने के लिए 4 साल पहले अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट स्कीम फॉर स्मॉल एंड मीडियम टाउन बनाकर भेजी गई थी। ये पूरा प्रोजेक्ट 441 करोड़ का था।-यूआईडीएसएसएमटी प्लान के तहत शहर के लिए सीवर ट्रीटमेंट प्लांट का प्लान भेजा गया। ये प्लान सेंट्रल गवर्नमेंट से एक्सेप्ट होकर स्टेट गवर्नमेंट के पास आया। मगर पैसा रिलीज न होने से मामला अटक गया। क्या है solution


-गंगा को पॉल्यूटेड होने से रोकने के लिए जरूरी है कि उसकी सहायक नदियों को भी साफ रखा जाए।-रीवर गंगा बेसिन अथॉरिटी योजना के तहत बरेली का नाम भी प्रस्ताव में है। मगर फंड रिलीज हो इसके लिए सांसदों को अपने स्तर पर प्रयास करना होगा।-रामगंगा नदी पर सीवर ट्रीटमेंट लगना बेहद जरूरी है, नहीं तो वाटर पॉल्यूशन ज्यादा होगा।-यूआईडीएसएसएमटी के तहत सीवर लाइन के लिए फंड के लिए नए सिरे से प्रयास जरूरी है।आधे शहर की नहीं बुझती प्यासनिराशाजनक है कि बरेली की करीब-करीब आधी आबादी को पीने का साफ पानी मयस्सर नहीं है। पुराने शहर के 14 बड़े एरियाज में रेजिडेंट्स हैंडपंप और सबमर्सिबल पर डिपेंड हैं। शहर की 9.25 लाख आबादी पर 22 बड़ी टंकियां हैं। इन टंकियों को रोज भरने के लिए 52 ट्यूबवेल की फैसिलिटी है। मौजूदा हालात में ये ट्यूबवेल नाकाफी साबित हो रहे हैं। सबसे ज्यादा रबड़ीटोला, शाहदाना, कांकरटोला, ईटपजाया चौराहा, नई बस्ती, रोहली टोला, साहूकारा, बड़ा बाजार, किला, गुलाबनगर, तिलक इंटर कॉलेज, चाहबाई, कोहाड़ापीर, बानखाना के लोग पानी के लिए तरसते हैं। शहर के नए बस रहे एरियाज में अभी भी वाटर लाइन नहीं बिछ सकी है। निगम ने क्या घोषणाएं कीं

-2010 के अंत में सिटी के अंतिम छोर पर तीन एरियाज में नए ट्यूबवेल प्रस्तावित किए गए थे। रिवॉल्विंग फंड से पैसा रिलीज नहीं हुआ तो तीनों ट्यूबवेल इस बार राज्य वित्त आयोग में ट्रांसफर कर दिए गए। इस मद में भी अभी तक ग्रांट जारी नहीं हुई। अधिकारियों के मुताबिक इस प्रोजेक्ट के लिए 1.5 करोड़ की रिक्वायरमेंट है। प्रोजेक्ट के लिए थाना किला, कोहाड़ापीर और बारादरी थाने के पास काजी हाउस में जगह चिन्हित की गई थी। -सीबीगंज और मॉडल टाउन के दो नलकूप बंद हैं। पानी की कमी को पूरा करने के लिए 2 नलकूप को रीबोर करने की घोषणाएं हुईं। दोनों को रीबोर करना है। निगम अधिकारियों के हाथ पैसों की कमी से बंधे रहे। रीबोर करने के लिए 42 लाख की रिक्वायरमेंट है.  क्या है solution-वाटर लाइन जहां नहीं बिछी है, वहां वाटर लाइन बिछाई जाए।-जहां वाटर लेवल डाउन हुआ है वहां रीबोरिंग होनी है। -पानी की बर्बादी रोकने के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएं।-जर्जर हो चुकी वाटर लाइन को बदलने के लिए नए सिरे से प्रोजेक्ट बनाया जाए। -बड़ी टंकियों को भरने के लिए ट्यूबवेल और प्रॉपर इलेक्ट्रिसिटी के लिए जेनरेटर का अरेंजमेंट किया जाए। कूड़ाघर में तब्दील होता शहर
सटीक योजनाओं के लापरवाही की भेंट चढऩे से गार्बेज की समस्या बढ़ती जा रही है। कोढ़ में खाज सरीखा है कि निगम के 2,400 सफाई कर्मचारी निरंकुश हैं। सिटी का इकलौता ट्रेंचिंग ग्राउंड बाकरगंज में है। बाकरगंज में करीब 3.4 हेक्टेयर एरिया में कूड़े का पहाड़ खड़ा हो चुका है और बढ़ता ही जा रहा है। बारिश में हालात और बदतर हैं। गार्बेज मैनेजमेंट के लिए शहर में 67 बड़े डलाव हैं। निगम के अधिकारियों की मानें तो डेली 150 जगहों पर 400 टन कूड़ा डाला जाता है। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट प्रदूषण बोर्ड की एनओसी का इंतजार कर रहा है। प्लांट काम करने लगे तो कूड़ा सीधा रजऊ परसापुर जाकर खाद में तब्दील होने लगेगा। निगम ने क्या घोषणाएं कीं-5 साल पहले नगर विकास मंत्री के हाथों से शिलान्यास होने के बाद सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट पर 13.86 करोड़ की लागत से निर्माण पूरा हो चुका है। प्लांट रन करने के लिए ठेका एजेंसी डेवलपर्स को दिया गया है। यहां कूड़ा से खाद बन सकेगी।-सिटी के अलग-अलग एरियाज में डस्टबिन लगने थे। मगर ये प्लान डस्टबिन घोटाले की भेंट चढ़ गया।
-गाड़ी चलाकर घरों से डायरेक्ट कूड़ा उठना था। ये प्लान महज कुछ एरिया में चला और फिर कहां गुम हो गया, पता नहीं चला।क्या हो सकता है solution-सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट को जल्द से जल्द शुरू करने के लिए प्रयास होने चाहिए।-मेन मार्केट में डस्टबिन रखवाने चाहिए।-निरंकुश सफाई कर्मचारियों पर अंकुश लगना चाहिए। दो टाइम सफाई होनी चाहिए।-नए ट्रेंचिंग ग्राउंड की सर्च होनी चाहिए।-घरों से डायरेक्ट कूड़ा उठाने की व्यवस्था बननी चाहिए।धीमी होती शहर की रफ्तारहर साल बढ़ रही व्हीकल्स की संख्या ने जाम की प्रॉब्लम को विकराल बना दिया है। शहर की रफ्तार धीमी हो चली है। पीक आवर्स में तो शहर थम सा जाता है। आरटीओ के आकड़ों को मानें तो सिटी में इस वक्त 3.5 लाख से ज्यादा वाहन दौड़ रहे हैं। मेन मार्केट में पार्किंग की व्यवस्था न होने से और संकरी रोड, चौराहों ने समस्या को ज्यादा विकराल बना दिया है। शहर में पार्किंग के नाम पर सिर्फ मोती पार्क है। कुतुबखाना, शहामतगंज और शाहदाना का सबसे बुरा हाल है। स्पेशली इन जगहों पर जाम की स्थिति विस्फोटक हो चुकी है।निगम ने क्या घोषणाएं कीं -दो साल पहले नगर निगम के सामने अंडरग्राउंड पार्किंग बनाए जाने का प्रपोजल सामने आया था। मगर ये प्रपोजल कब फाइलों में दफन हो गया किसी को पता नहीं चला।-लास्ट इयर निगम ने 30 ऑटो रिक्शा स्टैंड चिन्हित किए थे। निगम के अधिकारियों ने ये प्वाइंट चौराहों से करीब 50 मीटर दूर तय किए थे। ये स्टैंड भी नहीं बन सके।-शहामतगंज से सैटेलाइट के बीच वाहन मरम्मत की दुकानें हटाई जानी थीं। इसकी नोटिस कई बार जारी की गई मगर कुछ नहीं हुआ। क्या है solution-ज्यादा जाम वाले चौराहों को चिन्हित करके उनका चौड़ीकरण करना।-बिजी चौराहों पर बिगड़े वाहनों को हटाने के लिए क्रेन की व्यवस्था की जाए।-मल्टी लेवल पार्किंग बनाई जाए।-शहर के बिजी एरियाज से स्थाई और अस्थाई अतिक्रमण हटाया जाए।-चौराहों के पास ऑटो रिक्शा स्टैंड बनाए जाए। डूब सा जाता है शहरपॉश एरिया हो या पुराने शहर की तंग गलियां, ये समस्या हर एरिया में एक जैसी है। सिटी में नालों की समय पर सफाई न होने और नालों को पाटने से जलभराव बढ़ता जा रहा है। शहर के बड़े 110 नालें कूड़े से पटे हुए हैं। डेलापीर से बाईपास का सौ फुटा नाला, जौहरपुर नाला, कंजादासपुर से एयरफोर्स गेट तक, दिनेश नर्सिंग से बरेली कॉलेज होते हुए जेल रोड, सुभाषनगर, राजीव कॉलोनी होते हुए रेलवे पुलिया, बाग अहमद अली चौक से शास्त्री पुलिया, जाटवपुरा, भूड़, गुलाबराय होते हुए सुर्खा, स्टेट बैंक कॉलोनी, रेलवे पुलिया से किला नदी, स्वयंवर बरातघर से चूना भट्टा प्रेमनगर, खादी आश्रम से जीआईसी होते हुए सीबीगंज, सेमलखेड़ा मोड़ से शहामतगंज होते हुए कैंट तालाब तक के नालों की सफाई नहीं हो सकी है। निगम ने क्या घोषणाएं कीं-नए नगर आयुक्त के सिटी में पदभार ग्रहण करते ही नालों की सफाई का ऑर्डर दिया गया था।-सिटी में नए नालों के निर्माण के लिए भी प्रपोजल फॉरवर्ड किए गए। मगर ये नालों का निर्माण सिर्फ कागजों पर ही होता रहा है।-सिटी के ज्यादातर एरियाज में नालों पर अतिक्रमण है। जिससे जलभराव की समस्या बढ़ती है। अतिक्रमण को हटाने का नोटिस तो कई बार जारी हुआ मगर हुआ कुछ नहीं।क्या है solution-110 बड़े नालों और 22 छोटे नालों की सफाई करवाई जाए।-लगभग सभी नाले किला नदी से होते हुए रामगंगा नदी में गिरते हैं। इनके मुहाने पर सिल्ट जमा होने से समस्या बढ़ी है। इन नालों के मुहानों की सफाई करवाई जाए।-पुरानी और पॉश कॉलोनियों के नालों पर से अतिक्रमण हटाया जाए।-सिटी में जहां नाले नहीं हैं, वहां नालों का कंस्ट्रक्शन करवाया जाए।

Posted By: Inextlive