एक तरफ जहां लोग पूरे दिन सोशल मीडिया पर अपना वक्त बीता रहे हैैं. वहीं बीमार पडऩे पर गूगल का सहारा लेकर इलाज का रास्ता भी वहीं से ढूंढ ले रहे हैैं.


गोरखपुर (अमरेंद्र पांडेय)।यू-ट्यूब वाले डॉक्टर और गूगल सर्च इंजन पर ढूंढकर खुद ही डाक्टर बन जा रहे लोग खुद ही अपनी बीमारी बढ़ा रहे हैैं। केस 1 बिलंदपुर निवासी शिल्पा पे्रग्नेंट हुईं। उन्होंने गायनोलॉजिस्ट को दिखाने के बजाय खुद ही गूगल की मदद से पेन किलर सर्च कर दवा लेने लगीं। कुछ दिन बाद उन्हें अचानक से ओवरी में दर्द बढ़ गया, फिर क्या था वह गायनोलॉजिस्ट रीना श्रीवास्तव से दिखाने गईं। जब उन्होंने केस हिस्ट्री पूछा तो पता चला कि वह गूगल और यू-ट्यूब से पे्रग्नेंसी के केस में दर्द होने पर दवा क्या लेनी है सर्च की। दवा का सेवन किया। दो महीने के फेटल पर साइड इफेक्ट हुआ। डॉक्टर ने भी खूब फटकार लगाई। केस 2


नौसड़ निवासी राम प्रकाश वर्मा के हॉर्ट में प्रॉब्लम हुई, तेज दर्द हुआ। तो पड़ोसी ने गूगल पर सर्च कर दवा का नाम बताया, उन्होंने मोहल्ले के एक मेडिकल स्टोर से दवा खरीदकर खा ली, लेकिन दर्द ठीक होने के बजाय वह बढ़ गया। फिर वह जिला अस्पताल के ह्दय रोग विभाग में तैनात डॉ। रोहित गुप्ता से दिखाने पहुंचे। उन्होंने केस हिस्ट्री ली तो पता चला कि वह गलत दवा का सेवन कर रहे थे। गूगल इंजन पर करते हैैं बीमार का इलाज

यह दो केस बानगी भर हैं। एक तरफ जहां लोग पूरे दिन सोशल मीडिया पर अपना वक्त बीता रहे हैैं। वहीं बीमार पडऩे पर गूगल का सहारा लेकर इलाज का रास्ता भी वहीं से ढूंढ ले रहे हैैं। यू-ट्यूब वाले डॉक्टर और गूगल सर्च इंजन पर ढूंढकर खुद ही डाक्टर बन जा रहे लोग खुद ही अपनी बीमारी बढ़ा रहे हैैं। केस बिगडऩे के बाद डाक्टर के पास पहुंच रहे हैैं। ऐसे दर्जन भर मरीज जिला अस्पताल में जहां पहुंच रहे हैैं। वहीं, प्राइवेट हास्पिटल में भी इस तरह के मरीजों की तादाद बढ़ती जा रही हैैं। बीआरडी मेडिकल कालेज के गायनी डिपार्टमेंट की पूर्व एचओडी डॉ। रीना श्रीवास्तव बताती हैैं कि उनके पास आने वाले मरीजों में ऐसी महिला मरीज आ रही हैैं, जो न्यूली मैरिड हैैं और वह खुद ही गूगल या फिर यू-ट्यूब पर सर्च कर अपना इलाज पहले ही करना शुरू कर देती हैैं। लेकिन जब उनसे पूछताछ की जाती है तो वह गूगल से सर्च कर दवा को लेकर जिरह भी करने से बाज नहीं आती हैैं। यह ज्यादातर महिलाओं से संबंधित बीमारियों में देखा जा रहा है। वहीं, जिला अस्पताल के सीनियर फिजिशियन डॉ। राजेश कुमार बताते हैैं कि सर्दी, जुखाम और बदन दर्द वाले लक्षण में मरीज खुद ही अपना इलाज पहले कर लेता है। फिर डाक्टर के पास आता है। लेकिन जब पैथोलोजिकल जांच कराई जाती है तो पता चलता है कि उसे मलेरिया या फिर टॉयफाइड है। और फिर करते हैैं बेबुनियाद सवाल डिप्टी सीएमओ डॉ। एके सिंह ने बताया कि आज की डेट में हर दूसरा मरीज नेट और गूगल से कुछ न कुछ पढ़कर आता है, उसके मुताबिक सोच बनाता है और फिर बेबुनियाद सवाल करता है। मरीज अपनी इंटरनेट रिसर्च के अनुसार जिद करके टेस्ट भी कराते हैं और छोटी-मोटी दवाइयां ले लेते हैं। कई लोग सीधे आकर कहते हैं कि हमें कैंसर हो गया है। डॉक्टर खुद कैंसर शब्द का इस्तेमाल तब तक नहीं करते जब तक पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो जाते कि ये कैंसर है क्योंकि इससे मरीज को घबराहट हो सकती है। उन्होंने बताया कि लोगों में दवाइयों का इस्तेमाल जानने को लेकर भी काफी उत्सुकता होती है। वह इस्तेमाल से लेकर दुष्प्रभाव तक इंटरनेट पर खोजने लगते हैं।खुद को मान लेते हैैं विशेषज्ञ

एसीएमओ डॉ। एके चौधरी ने बताया कि भले ही व्यक्ति किसी भी पेशे से क्यों न हो लेकिन वो खुद को दवाइयों में विशेषज्ञ मानने लगता है। उन्होंने एक घटना का जिक्र करते हुए बताया, एक बार मेरे एक मरीज के रिश्तेदार ने फोन करके मुझसे गुस्से में पूछा कि आपने ये दवाई क्यों लिखी। वो रिश्तेदार ब्लड बैंक में काम करते थे। उन्होंने कहा कि इंटरनेट पर तो लिखा है कि ये एंटी डिप्रेशन दवाई है और मरीज को डिप्रेशन ही नहीं है। तब मैंने समझाया कि ये दवाई सिर्फ एंटी डिप्रेशन की नहीं है। इसके और भी काम है लेकिन इंटरनेट पर पढ़कर ये नहीं समझा जा सकता।जिला अस्पताल में आने वाले मरीजों में ज्यादातर मरीज आजकल खुद ही इंटरनेट पर अपने बीमारी का इलाज ढूंढ लेते हैैं। लेकिन ऐसा करना गलत है। उन्हें चिकित्सकीय परामर्श के बगैर इलाज नहीं करना चाहिए। केस बिगड़ सकता है। इसलिए डॉक्टर से सलाह जरूर लें।डॉ। राजेंद्र ठाकुर, एसआईसी जिला अस्पताल

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