-डीडीयू की रिसर्च स्कॉलर ने 75 जिलों में ढूंढे 233 हिंदू शायर

-गोरखपुर यूनिवर्सिटी में उर्दू से पीएचडी करने वाली पहली हिंदू स्कॉलर बनीं हेमलता

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GORAKHPUR: गजल, शेर-ओ-शायरी, नज्म जैसी विधाओं में आमतौर पर मुस्लिम शायरों को सिद्धहस्त माना जाता है। लेकिन गोरखपुर यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च स्कॉलर ने यूपी में 233 ऐसे हिंदू शायर ढूंढे हैं, जिन्होंने उर्दू विधा में शानदार मुकाम हासिल किया है। इस रिसर्च स्कॉलर का नाम है हेमलता। वह गोरखपुर यूनिवर्सिटी के उर्दू विभाग से पीएचडी करने वाली पहली हिंदू स्कॉलर हैं। गोरखपुर यूनिवर्सिटी के उर्दू विभाग के हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ। रजिउर रहमान ने इस बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इन गैरमुस्लिम शायरों ने भी उर्दू में ऐसी कलम चलाई है कि जिसे पढ़कर मुस्लिम शायर भी हैरान हो जाते हैं।

हसबैंड ने दी इंस्पिरेशन

डॉ। हेमलता ने बताया कि मैंने पांचवीं क्लास में उर्दू की तालीम ली थी। इसके बाद 12वीं में उर्दू सब्जेक्ट लिया। हेमलता के हसबैंड चंद्रशेखर ने सेंट एंड्रयूज कॉलेज से हिंदी से एमए किया है। इसके बाद उन्होंने हेमलता को उर्दू से पीएचडी करने को कहा। डॉ। हेमलता ने 2013 में यूनिवर्सिटी के उर्दू विभाग पीएचडी के लिए एडमिशन कराया। इसके बाद विभाग के एचओडी डॉ। रजिउर रहमान की देख-रेख में रिसर्च शुरू कर दिया।

पांच साल में पूरा हुआ रिसर्च

-डॉ। हेमलता का रिसर्च सब्जेक्ट थोड़ा अलग था। उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ी।

-इसके लिए उन्होंने यूपी के सभी 75 जिलों में संपर्क किया।

-आजादी के पहले के शायरों की खोज की और उनकी लिखी किताबों के नाम कलेक्ट किए।

-पांच साल तक कड़ी मेहनत की तब जाकर हेमलता का रिसर्च पूरा हुआ।

शहर, शायर और मशहूर किताबें

गोरखपुर

-रघुपति सहाय 'फिराक गोरखपुरी'

गुल ए नगमा, पिछली रात, शर्म की करवट, रूह-ए-कायनात

-गोरख प्रसाद 'इबरत'

हुश्न ए फितरत, हंगामा ए हैरत, कौमी राग

-मुंशी माधव राम उर्दू व्याकरण

लखनऊ

-पं। दया शंकर नसीम

गुलजार ए नसीम, सेहरूलब्यान

-पं। बृज नरायन

चकबस्ट-दविस्तान ए लखनऊ, मजामीन ए चकबस्ट, सुखन वशन ए कश्मीर, मारकाए सऊरो चकबस्ट, सुबह वतन।

-पं। आनंद नरायन मुल्ला

कुछ जर्रे- कुछ तारे, निशान ए कफेया, जूये शीर

-पं। रत्ननाथ सरशार- सैर ए बहार, जाम ए सरशार, खुदाई फौजदार, कामिनी, बिछड़ी हुई दुल्हन।

-नौबत राय

नजर-मरसिया गौरी, खदन्ग ए नजर, अनवार ए नजर, नकदो नजर।

कानपुर

-गोकुल प्रसाद रमा

मजमाउल बहरैन, सरितुल मोताखीरिन, अजायंब मखलक

-कृवण सहाय 'वहशी'

सरूर ए इरफां

-गंगाधर नाथ निगम 'फरहत कानपुरी'

सुबह ए इंतजार

बरेली

-महाराजा रत्न सिंह बरेलवी

रेयाजुल फसहा

-पं। लक्ष्मी राम

फिद बहार ए गुलशन ए कश्मीर

मेरठ

-लालता प्रसाद अग्रवाल 'शाद मेरठी'

-शाद फिर जज्बात ए शाद, नालह दिलखराश।

प्रयागराज

-श्यामलाल वर्मा मस्ट इलाहाबादी

छलकते पैमाने

-सुखदेव प्रसाद 'बिसमिल' इलाहाबादी

जज्बात बिसमिल।

विष्णु शंकर माथुर बिशन इलाहाबादी

-उफकार ए बिशनू, दिवान है।

-पृथ्वी नाथ शौक इलाहाबादी

तजकरह ए चमनिस्तान।

शुरू से ही हमारे यहां गंगा जमूना की संस्कृति मशहूर रही है। कला की जाति नहीं होती है। गैरमुस्लिम शायरों की उर्दु में लिखी गजल, नज्म, मसनवी और मरसिया को पढ़कर ये पता चलता है। ऐसी जानकारी जब बाहर आती है तो सुनने वाले भी हैरानी में पड़ जाते हैं।

-डॉ। रजीउर रहमान, विभागाध्यक्ष, उर्दु विभाग, डीडीयू

Posted By: Inextlive