- गोरखपुर में सिमटा वेटलैंड का दायरा, इसकी वजह से बढ़ रही दूसरी मुसीबत

- अपदाओं से बचने के लिए जरूरी है वेटलैंड का कनजर्वेशन

GORAKHPUR: डिजास्टर रेजिलियंस के लिए वॉटर बॉडी का बड़ा रोल है। शहर के विकास के लिए ग्रे एरिया यानी कि सड़के, फ्लाईओवर और दूसरे विकास कार्य तो जरूरी हैं ही, वहीं ब्लू इंफ्रास्ट्रक्चर यानी कि वॉटर बॉडी और ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर यानी फॉरेस्ट एरिया भी काफी अहम हैं। गोरखपुर में इन सभी का दायरा सिमटता जा रहा है, जिसकी वजह से न सिर्फ क्लाइमेटिक चेंजेस देखने को मिल रहे हैं, बल्कि गोरखपुर हमेशा ही बाढ़, वॉटर लॉगिंग, वॉटर क्राइसिस जैसी प्रॉब्लम से जूझ रहा है। अगर हमने अपने वेटलैंड एरिया का दायरा और कम किया, तो न सिर्फ आपदाएं हमारे लिए मुश्किलें पैदा करेंगी, बल्कि पानी की किल्लत और वॉटर लॉगिंग की मुसीबत से भी हमें जूझना पड़ेगा।

18 हो गई वॉटर बॉडीज

गोरखपुर में वेटलैंड का दायरा सिमटता ही जा रहा है। पिछले 150 सालों में वेटलैंड की संख्या 103 से सिमट कर 18 हो चुकी हैं। इसमें भी जो वेटलैंड मौजूद हैं, उनका दायरा भी पहले के मुकाबले काफी कम हो गया है। गोरखपुर इनवायर्नमेंट एक्शन ग्रुप के डॉ। शीराज वजीह की मानें तो रामगढ़ताल पर जीईएजी की स्टडी में सामने आया था कि सिर्फ रामगढ़ताल का कैचमेंट एरिया काफी कम हो गया। 1916-17 में जहां रामगढ़ताल 1980 एकड़ में था, वहीं 2007 में 1700 एकड़ पहुंच गया। इसके बाद भी आसपास कंस्ट्रक्शन का सिलसिला जारी रहा।

ड्रेनेज सिस्टम पर भी असर

गोरखपुर में जितने भी वेटलैंड हैं, यह गोरखपुर के ड्रेनेज सिस्टम का लोड संभालते रहे हैं। मगर जैसे-जैसे कंस्ट्रक्शन होते गए और वॉटर बॉडीज पर कब्जा होता गया, तो ड्रेनेज सिस्टम की हालत भी काफी खराब होती चली गई। हालत यह हो गई कि जिले में वॉटर लॉगिंग हर साल की प्रॉब्लम बन गई। नगर निगम ने शहर के दायरे में ही सिर्फ 59 स्पॉट ऐसे प्वाइंट आउट किए, जहां हर बरसात में वॉटर लॉगिंग हो ही जाती है। इनमें से ज्यादातर एरिया वेटलैंड के दायरे में थे, लेकिन वहां पर कंस्ट्रक्शन होने के बाद शहर के हालात खराब हो गए।

वेटलैंड के यह भी फायदे -

- मौसम का निर्धारण भी वॉटर बॉडीज करती हैं।

- वॉटर लॉगिंग से भी बचाने में अहम रोल

- वॉटर होल्डिंग कैपासिटीज बढ़ाती है

- ग्राउंड वॉटर रीचार्ज भी इन्हीं की वजह से

- सिंघाड़ा, तालमखाना, फूड की अवेलबिल्टी

कम हो गई वॉटर होल्डिंग कैपासिटी

गोरखपुर एक ऐसा एरिया है, जहां वेटलैंड एरिया कम होने से क्लाइमेट पर भी इसका असर पड़ा है। डॉ। शीराज की मानें तो यह अब ऐसा एरिया है, जहां बारिश तो कम हो रही है लेकिन एक दिन में काफी ज्यादा बारिश भी रिकॉर्ड की गई है और हर साल इसके रिकॉर्ड भी टूट रहे हैं। यह रेनफॉल क्लाइमेट चेंज का पैटर्न है। पहले यहां वेटलैंड की वजह से वॉटर होल्डिंग कैपासिटी ज्यादा थी, लेकिन धीरे-धीरे डेवलपमेंट होता गया और वेटलैंड एरिया बिल्कुल खत्म होने लगा, जिसकी वजह से वॉटर होल्डिंग कैपासिटी भी कम हो गई और हर बारिश में शहर की सड़कों पर घंटों वॉटर लॉगिंग आम हो गई। कुछ असर ड्रेनेज सिस्टम का भी है। पटना में यही हुआ था और इसी वजह से वहां 48 घंटों तक हुई लगातार बारिश में सड़कें डूब गई। इसलिए शहर के इर्द-गिर्द फेरी अर्बन एरिया में भी वॉटर बॉडीज का कंजर्वेशन बहुत जरूरी है।

बॉक्स -

परिंदों का भी छिन गया आशियाना

दुनिया भर में 126000 स्पीशीज ऐसी हैं, जो फ्रेश वॉटर बॉडीज को हैबिटैट यानि कि रहने के लिए इस्तेमाल करती हैं। गोरखपुर की झीलों का भी ऐसा ही मामला था, लेकिन आसपास हो रहे अंधाधुन कंस्ट्रक्शन ने इन परिंदों का आशियाना भी छीन लिया है। कंस्ट्रक्शन की वजह से वेटलैंड का दायरा सिमटा है, तो यहां आने वाले विदेशी परिंदों की संख्या पिछले कुछ दिनों से काफी कम हुई है। सिर्फ रामगढ़ताल और बाखिरा झील में विदेशी पक्षियों की चहचहाहट सुनाई दे जाती थी, लेकिन बीते कुछ सालों में इनकी संख्या भी कम होने लगी है।

तराई इलाकों में पाई जाने वाली माइग्रेटिव ब‌र्ड्स -

नॉर्दन पिंटेल

गेडवॉल

लेस व्हीस्लिंग डक

पॉयड एवोसेट

ग्रेट स्नाइप

तराई इलाकों में पाई जाने वाली रेसिडेंट बडर्स

परपल मुरहेन

परपल हेरॉन

ऑस्प्रे

ग्रे फ्रैन्कोलिन

कुछ वॉटर बॉडीज

पॉन्ड स्टेटस

असुरन पॉन्ड रेसिडेंशियल कालोनी बनी

बस स्टेशन पॉन्ड गवर्नमेंट स्पो‌र्ट्स कॉलेज बना

चिलवा लेक 50 परसेंट लॉस्ट, अर्बन प्रेशर

डोमिनगढ़ पॉन्ड राप्तीनदी में मर्ज हो गया

जलवनिया पॉन्ड लैंड डेवलपमेंट प्रोजेक्ट

जटाशंकर पॉन्ड इनक्रोचमेंट

मोरारका पॉन्ड इनक्रोचमेंट

रामगढ़ताल दायरा सिमट गया

नरही लेक 30 परसेंट लॉस्ट

सोर्स - जीईएजी सेक्टोरल स्टडी - 2009

गोरखपुर में वेटलैंड की संख्या 108 हुआ करती थी, जो सिमटकर अब 18 के आसपास रह गई है। वहीं जो हैं भी वहां भी आसपास कंस्ट्रक्शन की वजह से कैचमेंट एरिया काफी कम हो गया है। इससे जहां क्लाइमेटिक चेंजेज देखने को मिल रहे हैं, वहीं वॉटर बॉडी जो पानी को होल्ड करने की कैपासिटी थी, वह भी कम हो गई है। इससे वॉटर लॉगिंग और वॉटर रीचार्ज की प्रॉब्लम भी बढ़ गई है।

डॉ। शीराज वजीह, एनवायर्नमेंटलिस्ट

तराई इलाका, जहां जमीन में वॉटर लेवल काफी है। वेटलैंड वहां का इको सिस्टम को कंट्रोल करने वाला फैक्टर वॉटर है। उत्तराखंड, यूपी और बिहार तराई के लिए उपयुक्त मना जाता है। यह वन्य जीवन के लिए भी बहुत इंपॉर्टेट है। बाघ, भालू, लियोपर्ड, के साथ ही 183 रेयर बर्ड में से 43 बर्ड ऐसे हैं, जो सिर्फ तराई एरिया में ही पाए जाते हैं। इसमें बैंगाल फ्लोरिकन, लेसर एडजुटेंट कुछ रेयर ब‌र्ड्स हैं, जो तराई इलाकों में ही पाए जाते हैं। रेट वैटेल्ड लैटविंग एक ऐसी बर्ड है, जो सिर्फ पानी के किनारे ही अंडा देती है। लेकिन वेटलैंड का घटता दायरा पक्षियों के साथ उसमें रहने वाले छोटे-छोटे क्रिएचर्स को भी नुकसान पहुंचा रहा है।

- चंदन प्रतीक, वाइल्ड लाइफ एक्सप‌र्ट्स

Posted By: Inextlive