कुदरत के कहर के शिकार दिव्यांगों को सिस्टम से भी हताशा मिल रही है. गुरुवार को जिला अस्पताल के मेडिकल बोर्ड में दिव्यागों की जमकर फजीहत हुई. जिला अस्पताल के न्यू बिल्ंिडग में चाहे दिव्यांग सर्टिफिकेट बनाने का मामला हो या फिर फिजिकली जांच की बात.


गोरखपुर (ब्यूरो)। दूरदराज से आए दिव्यागों को घंटों परेशान होना पड़ा। समय पर न तो डॉक्टर पहुंचे और न ही निचला स्टाफ। स्टाफ के पहुंचने पर जब दिव्यागों ने सुबह से आने की पीड़ा बताई और जल्द मेडिकल सर्टिफिकेट जारी करने की अपील की तो उनकी अनसुनी कर दी गई। इस दौरान भीड़ बढऩे से दिव्यांगों में ही अफरा-तफरी मच गई। जिला अस्पताल प्रशासन की तरफ से इन दिव्यांगों के लिए कोई प्रॉपर व्यवस्था भी नहीं की गई है। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के रियलिटी चेक में पूरा मामला सामने आ गया। प्रत्येक गुरुवार को होता है हल्ला
बता दें, दिव्यांगों के लिए प्रत्येक गुरुवार को दिव्यांग मेडिकल बोर्ड बैठता है। मेडिकल बोर्ड के सदस्यों में एक्सपर्ट के तौर पर आर्थो सर्जन, ईएनटी व आई स्पेशलिस्ट होते हैैं, लेकिन इनके समय से नहीं आने का कारण सैकड़ों की संख्या मौजूद दिव्यांगों के बीच अफरा-तफरी मची रहती है। जबकि यह पहली बार नहीं है, यह प्रत्येक गुरुवार को होता है। ओपीडी और मेडिकल बोर्ड में होती है तैनाती


दरअसल, दिव्यांग मेडिकल बोर्ड में तैनात डॉक्टर्स ओपीडी में आने वाले मरीजों का भी इलाज करते हैैं, जो सुबह 8 से दोपहर 2 बजे तक चलती है। वहीं दिव्यांग मेडिकल बोर्ड के तहत देखे जाने वाले दिव्यांगों के लिए समय सुबह 10 से दोपहर 2 बजे तक निर्धारित है। दिव्यांगों के लिए बनाए जाने वाले मेडिकल बोर्ड में अलग से डाक्टर्स की तैनाती नहीं होने के कारण यह समस्या बनी रहती है। जबकि सैकड़ों की संख्या में दिव्यांग अपने सर्टिफिकेट बनवाने के लिए पहले जनसेवा केंद्रों से आवेदन कर रसीद लेकर जिला मुख्यालय पर पहुंचते हैैं। दिव्यांगों की मानें तो अगर यह सुविधा जिले भर के सीएचसी-पीएचसी पर हो जाती तो उन्हें मुख्यालय आने की जरूरत ही नहीं पड़ती।फैक्ट फीगर - सुबह 8 से दोपहर 2 बजे तक होती है सामान्य मरीजों के लिए ओपीडी। - सुबह 10 से दोपहर 2 बजे तक होती है दिव्यांगों के लिए मेडिकल जांच।- कमरा नंबर 51 व 52 में होती है दिव्यांगों की जांच। - मिनिमम 40 व मैक्सीमम 80 प्रतिशत का दिया जाता है वेटेज। - शारीरिक परीक्षण के लिए तीन एक्सपर्ट की होती है तैनाती। - आंख, नाक व कान के लिए ईएनटी। - हाथ, पैर, रीढ़ की हड्डी के लिए आर्थो सर्जन होते हैैं एक्सपर्ट।- आंखों के रोशनी जांचने के लिए आई स्पेशलिस्ट होते हैैं शामिल।कोट्स .

एक तो लेट से मेडिकल स्टाफ आता है। ऊपर से वह साथ में 15-20 दिव्यांग साथ में लेकर आते हैैं, उन्हें पहली प्राथमिकता देते हैैं। जबकि हम लोग सुबह 5 बजे से ही यहां मेडिकल टीम का इंतजार कर रहे हैैं। कोई सुनने वाला नहीं है। अनिल कुमार, निवासी सहजनवां पिछले चार दिनों से कमरा नंबर 49 व 50 में दिव्यांग सर्टिफिकेट बनवाने के लिए चक्कर लगा रही हूं, लेकिन मेडिकल स्टाफ यह कहकर लौटा देते हैैं कि सर्टिफिकेट के लिए फार्म अभी तक नहीं आया है। फार्म 37 नंबर कमरे में मिलेगा। इस तरह से टालमटोल करते हैैं। प्रियंका पासवान, निवासी पचपेड़वांमेरी बेटी श्रेया दिव्यांग है। उसके सर्टिफिकेट के लिए कई दिनों से चक्कर लगा रही हूं। सुबह 7 बजे से आकर खड़ी हूं, लेकिन पर्ची कटवाने की बारी आती है तो अफरा-तफरी मच जाती है। जबकि महिलाओं के लिए अलग से लाइन की व्यवस्था होनी चाहिए। प्रतिभा देवी, अटेंडेंट, गोला बाजार कमर के नीचे का हिस्सा काम नहीं कर रहा है, व्हील चेयर के सहारे वह किसी तरह जिला अस्पताल पहुंचे हैैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। लाइन में लगने के बावजूद लोग पीछे खदेड़ दिया। कम से कम यहां व्यवस्था तो सही होनी चाहिए।सत्यप्रकाश, घरसरा बाजार वर्जन
प्रत्येक गुरुवार को दिव्यांगों के लिए मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाता है। टीम इनका परीक्षण करती है। चूंकि इनके लिए कोई अलग से डाक्टर नहीं है। इसलिए यह समस्या आ रही है। डाक्टर्स की कमी है। ऐसे में सेम टाइम ओपीडी और मेडिकल बोर्ड में ड्यूटी लगने के कारण पब्लिक दोनों जगह हंगामा करने लगती है। इस समस्या के समाधान पर हम लोग विचार कर रहे हैैं। जल्द ही समाधान निकालेंगे। डॉ। जेएसपी सिंह, प्रभारी एसआईसी, जिला अस्पताल

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