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-सदियों तक उपेक्षा का शिकार रहे शहीदों के परिजनों बयां किए जज्बात

-सीएम की पहल से शहीदों के फैमिली मेंबर्स को जगी है आस

anurag.pandey@inext.co.in

GORAKHPUR: सिर पर गमछा और धोती पहने कांपते पांव। चेहरे पर उत्साह और दिल में गर्व का उठता भाव। चौरी चौरा स्मारक स्थल पर गुरुवार को शहीदों के परिवार के बुजुर्ग अपने बच्चों के सहारे पहुंचे तो उनके दिलों में कुछ ऐसा ही भाव था। साथ पहुंचे बच्चे उत्साहित थे कि बाबा आज सीएम के हाथों सम्मानित होंगे। शहीद के चौथी पीढ़ी के सदस्य जिन्हें सम्मानित करना था उनमें से अधिकतर बेहद बुजुर्ग थे। उन्हें भी सम्मानित होने की खुशी जरूर थी लेकिन अपनों को याद कर उनकी आंखें गमगीन भी थीं। बरसों से चली आ रही उपेक्षा के चलते बदहाली उन्हें अभी तक कचोटती रही है। लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की इस पहल के बाद अब उन्हें यकीन हो चला है कि वो गुमनाम नहीं मरेंगे।

जुबां पर आ गया दर्द

गुरुवार को चौरी चौरा में सम्मान के बाद दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट टीम शहीदों के परिजनों से रूबरू हुई। इस दौरान इन सभी का बरसों से दबा दर्द छलक उठा। शहीदों के परिजन बोले, कहने को तो हम शहीद की चौथी पीढ़ी के लोग हैं। लेकिन अभ तक की उपेक्षा का आलम यह रहा है कि हम आर्थिक संकट से जुझते रहे हैं। इसका नतीजा यह रहा कि देश के वीरों के परिवार की चौथी पीढ़ी भी अंगूठा छाप ही रह गई। उन्होंने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि सरकारें बदलती रहीं। लेकिन हमारी तकदीर नहीं बदली। तत्कालीन सरकारों ने हमारे लिए कभी कोई कोई इंट्रेस्ट दिखाया ना ही कोई योजना का लाभ हमारे घर पहुंचाया। अब सीएम योगी ने इस दिशा में कदम उठाया है। हमें अब पूरा विश्वास है कि हमारे दिन अब बहुरेंगे।

मेरे दादा के बाबा थे सीताराम

चौरी चौरा के बाल-बुजुर्ग गांव के सुभाष के दोनों पैर बचपन से ही नहीं है। सुभाष ने बताया कि मेरे परदादा के बाबा सीताराम को अंग्रेजों ने फांसी दी थी। पैर न होने के बावजूद अपने वीर दादा से प्रेरित सुभाष ने कभी अपने आप को दिव्यांग नहीं समझा। घुटने पर चमड़े का चप्पल लगाकर लकड़ी के गुटके के सहारे वे बिना किसी के मदद के चलते-फिरते हैं। उन्होंने बताया कि अंगे्रजों ने आंदोलनकारियों के घर तक जला दिए थे। इस घटना के इतने दिन बाद भी अभी तक हम लोग इससे निकल नहीं पाए हैं। सुभाष ने बताया कि हम लोग चौथी पीढ़ी में पहुंच गए लेकिन पढ़ाई से हमारा कभी वास्ता नहीं रहा।

घर की जिम्मेदारी देखता रह गया

इसी तरह मैनुद्दीन के दादा लाल मोहम्मद को चौरी-चौरा जन प्रतिशोध के बाद अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी। सम्मानित होने आए मैनुद्दीन ने बताया कि मेरे पिताजी को 2008 तक पेंशन मिली। उनके मरते ही पेंशन बंद हो गई। परिवार की जिम्मेदारी मेरे कंधे पर थी इसलिए मैंने चौथी क्लास में ही पढ़ाई छोड़ दी। वह कहते हैं, घर जल गया था। उसको बनाने और पेट भरने में ही चार पीढ़ी निपट गई।

शहीद का पोता लेबर

इसी तरह सम्मानित होने पहुंचे ब्रहमपुर के लाल किशुन ने बताया कि मेरे दादा सुखराम शहीद हुए थे। इसके बाद मैंने कभी पढ़ाई नहीं की। इतनी परेशानी थी पढ़ाई देखूं या परिवार का पेट भरूं। आज भी मैं लेबर का काम करता हूं।

यहां भी पढ़ाई ने नहीं दी दस्तक

इसी तरह सम्मान लेने पहुंचे हरिलाल, गुलाब चौरसिया और रामनवल ने भी अपनी दुख भरी कहानी सुनाई। उनका कहना था कि शहीद का परिवार शुरू से ही उपेक्षा का शिकार रहा। अब तो जीवन आखिरी पड़ाव में है इस समय सम्मान पाकर अहसास हुआ कि वाकई में हम लोग शहीद के परिवार से हैं।

Posted By: Inextlive