हिंदुस्तान की आजादी में अहम रोल अदा करने वाले राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी की बुधवार को जयंती सेलिब्रेट की जाएगी। महात्मा गांधी की यह 150वीं जयंती है इसलिए बात और भी खास हो जाती है।

गोरखपुर (सैय्यद सायम रऊफ)। गांधी की यादें देशभर में फैली हैं। गोरखपुर भी इस मामले में कहीं से अलग या अछूता नहीं है। शहर में भी महात्मा गांधी की कई यादें मौजूद हैं, जिसे गोरखपुराइट्स ने संजोकर रखा है। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गोरखपुर में जनसभा से रूबरू होने के लिए गोरखपुर पहुंचे महात्मा गांधी का वेलकम किया गया, तो वहीं उन्होंने इस दौरान जो कुछ भी इस्तेमाल किया, जहां रुके, जहां पहुंचे सभी इतिहास में दर्ज हो गई। आज शहर के लोग भले ही अंजान हों, लेकिन यहां मौजूद चीजें आज भी महात्मा गांधी की यादों को ताजा करती हैं। आज पूरा देश गांधी जी की 150वीं जयंती धूमधाम से मनाई जा रही है, लेकिन गोरखपुर के इन धरोहर स्थलों की हालत जर्जर है। यहां न कोई रौनक है और न कार्यक्रम।
अलहदादपुर में चंद पल ठहरे थे गांधी
17 अक्टूबर, 1920 को मौलवी मकसूद अहमद फैजाबादी और गौरीशंकर मिश्रा की अध्यक्षता में सार्वजनिक सभा हुई। इसमें महात्मा गांधी को गोरखपुर बुलाने का फैसला किया गया। टेलीग्राम के जरिए उन्हें यहां आने के लिए बुलावा भेजा गया। इस बीच बाबा राघवदास की अगुआई में एक प्रतिनिधिमंडल नागपुर के कांग्रेस अधिवेशन में गया और महात्मा गांधी से गोरखपुर आने का अनुरोध किया। उन्होंने जनवरी के आखिर या फरवरी के शुरू में गोरखपुर आने का आमंत्रण कबूल कर लिया। जिला कांग्रेस कमेटी प्रोग्राम को सफल बनाने और प्रचार-प्रसार में जुट गई। महात्मा गांधी और मौलाना शौकत अली साथ-साथ 8 फरवरी, 1921 को बिहार के रास्ते ट्रेन से यहां आए। बाले मियां के मैदान में भारी जनसैलाब उमड़ पड़ा। खुल कर जनता ने देशहित में दान दिया।

 


रेलवे स्टेशन पर भीड़ झलक पाने को बेताब
8 फरवरी, सन् 1921 गोरखपुर के रेलवे स्टेशन पर सुबह सवेरे ही महात्मा गांधी और शौकत अली जब पहुंचे तो हजारों की भीड़ उनकी एक झलक पाने को बेचैन थी। ट्रेन के पहुंचते ही जोश और बढ़ गया। घुटनों तक धोती पहने महात्मा गांधी समर्थकों के साथ स्टेशन से बाहर निकले और ऊंचे स्थान पर खड़े होकर जनता का अभिवादन स्वीकार किया। उसी दिन उन्होंने बाले मियां के मैदान से जनता को संबोधित किया। वह दौर खिलाफत आंदोलन का था, इसलिए उन्होंने सभा में हिंदू-मुस्लिम एकता पर जोर दिया। उस दौर में महात्मा गांधी देश के लोगों में आजादी की लड़ाई का जोश भरने के लिए दिन रात एक कर मेहनत कर रहे थे।
ढाई लाख लोगों की जुटी भीड़
कांग्रेस की स्थापना के बाद महात्मा गांधी के नेतृत्व में अहिंसात्मक असहयोग आंदोलन शुरू हुआ, इसमें गोरखपुर की जनता ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। 8 फरवरी, 1921 को जनपद के बाले मियां के मैदान में महात्मा गांधी का भाषण हुआ तो गोरखपुर के साथ आसपास ही नहीं बल्कि दूर-दराज के लोगों ने उत्साह के साथ इसमें हिस्सा लिया। उस समय के दस्तावेजों के मुताबिक सभा में करीब दो-ढाई लाख की भीड़ थी। उस दौरान गोरखपुर की आबादी सिर्फ 58 हजार हुआ करती थी। ट्रांसपोर्ट के बेहद लिमिटेड सोर्स के मद्देनजर खुद में यह इतिहास था। ऐसे में उनकी यात्रा ने यहां के लोगों में नया जोश भर दिया। गोरखपुर में आकर जनसभा करने के बाद वह रात में ही बनारस के लिए रवाना हो गए। मुंशी प्रेमचंद भी इस दौरान गोरखपुर में ही थे, जिन्होंने बाले के मैदान में महात्मा गांधी को सुना और वह उनसे इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने सरकारी नौकरी तक छोड़ दी। 4 फरवरी, 1922 को गोरखपुर के चौरीचौरा में हुई घटना के बाद गांधी ने आंदोलन स्थगित कर दिया। लेकिन दोबारा आंदोलन तेज हुआ और ढेरों क्रांतिकारियों की शहादत और गांधी के अहिंसात्मक आंदोलनों से सत्य की जीत हुई और देश आजाद हो गया।
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Posted By: Inextlive