- पांच जुलाई से चिडि़याघर से होगी प्लांटेशन प्रोग्राम की शुरुआत

- एक दिन में 12 लीटर पानी की खपत करता है यूकेलिप्टस का पेड़

GORAKHPUR: जिले में पांच जुलाई को प्लांटेशन की शुरुआत होगी। चिडि़याघर के कैंपस में 48 हजार पौधे लगाकर सीनियर अफसर इसकी शुरूआत करेंगे। इस साल फॉरेस्ट डिपार्टमेंट सहित अन्य विभागों की तरफ से जिले में विभिन्न प्रजातियों के कुल 36 लाख पौधे लगाए जाने का टारगेट है। इन पौधों में करीब तीन लाख यूकेलिप्टस के पौधे भी रोपे जाएंगे। तीन-चार साल से यूकेलिप्टस के पौधे को लेकर हाय-तौबा मची है। आम पौधों की अपेक्षा यूकेलिप्टस को ज्यादा पानी की जरूरत होती है। यह धरती की उर्वरा शक्ति को भी कम कर देता है। हालांकि फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के लोगों का कहना है कि इमारती लकड़ी के रूप में इसका इस्तेमाल होता है। रोजगार का जरिया बनाने के लिए ही इसे लगवाया जा रहा है। डीएफओ ने कहा कि इससे मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित होती है लेकिन हाइब्रिड पौधे लगाने की छूट है।

इसलिए नुकसानदायक यूकेलिप्टस के पेड़

यूकेलिप्टस का पौधा पांच साल में पेड़ बनकर तैयार हो जाता है।

खेत की मेड़ और अन्य खाली स्थानों पर इसे लगाया जाता है।

सामान्य दशा में पौधे एक दिन में तीन लीटर पानी सोखते हैं।

यूकेलिप्टस का पौधा एक दिन में कम से कम 12 लीटर पानी सोखता है।

ज्यादा पानी सोखने से मिट्टी में फसल पैदावार की क्षमता कम होती है।

पेड़ की जड़ के आसपास घास तक नहीं उग पाती है।

यूकेलिप्टस के पौधे खेत और अन्य बागों में नहीं लगाए जाने चाहिए।

इससे मेडिसिनल प्लांट भी नष्ट होते हैं। उनकी क्षमता पर असर पड़ता है।

यहां लगा सकते हैं यूकेलिप्टस के पौधे

पानी सोखने वाले पौधे दलदली भूमि में लगाए जा सकते हैं।

बारिश में वॉटर लॉगिंग वाले स्थानों पर इसे लगाया जा सकता है।

ज्यादा नमी, निचले स्थानों पर पौधे लगाए जाने से पानी को सुखाने में मदद मिलेगी।

यूकेलिप्टस के विकल्प के रूप में पापलर, हाइब्रिड सागौन को भी प्लांटेशन में यूज कर सकते हैं।

नहरों के किनारे, तालाब, झील, नदियों के किनारे इसे लगाया जा सकता है।

बैकफुट पर आ गए अधिकारी

यूकेलिप्टस के पौधों को बाकायदा रसीद काटकर बेच रहे फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के अधिकारी पानी सोखने की बात पर बैकफुट पर आ गए। अधिकारियों ने कहा कि यह किसी को भी फ्री में नहीं दिया जाएगा। इसकी दो प्रजातियों की पांच रुपए से लेकर सात रुपए तक कीमत रखी गई है। डीएफओ ने बताया कि इसकी जगह सहजन के पौधे लगाने के लिए प्रेरित किया जाएगा। लोगों से अनुरोध किया जाएगा कि इसे उन जगहों पर लगाएं जहां पानी ज्यादा लगता है।

वर्जन

यूकेलिप्टस के पेड़ में दूसरे अन्य पेड़ों की अपेक्षा तीन गुना पानी अधिक सोखने की क्षमता होती है। इसके अलावा इनकी पत्तियों से वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया भी तेजी से होती है। इसकी जड़ें भी मिट्टी में सीधी बहुत गहराई तक जाकर पानी खींचती हैं। पेड़ों की संख्या अधिक होने पर ग्राउंड वॉटर लेवल में कमी आ सकती है। इसके अलावा अनाज उत्पादन वाले खेतों में इसे लगाने से मिट्टी की उवर्रता को भी नुकसान पहुंचता है। इसलिए वॉटर लॉगिंग वाले इलाकों में ही लगाया जाना चाहिए।

डॉ। महेश्वर सिंह, एग्रीकल्चर स्पेशलिस्ट

यूकेलिप्टस का यूज इमारती लकड़ी के रूप में होता है। यह रोजगार का अच्छा सोर्स है इसलिए इससे लोगों को जोड़ने के लिए पौधे लगवाए जा रहे हैं। इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि इससे किसी तरह का नुकसान न पहुंचे। वॉटर लॉगिंग वाली जगहों के लिए ये काफी उपयुक्त हैं।

अविनाश कुमार, डीएफओ

Posted By: Inextlive