- प्रशासन की लापरवाही से रिहायशी इलाके से होकर रोज ठेले पर ढोई जाती हैं लाशें

- जिला अस्पताल को शासन की ओर से मिले हैं तीन शव वाहन, जिम्मेदार नहीं ले रहे सुधि

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sunil.trigunayat@inext.co.in

पिछले साल अगस्त के महीने में ओडिशा के कालाहांडी जिले में दाना मांझी को पत्‍‌नी के शव को कंधे पर रखकर पैदल लेकर जाने की तस्वीर को सुर्खियां बनते आप सबने देखा। इस र चारों तरफ हाय-तौबा भी मची। इससे एक बार लगा कि अब यह घटना दोबारा हमारे समाज में देखने को नहीं मिलेगी, लेकिन यह भरोसा भी गोरखपुर के हमारे हुक्मरानों ने तोड़ दिया। आई नेक्स्ट की पड़ताल में पता चला कि राज्य सरकार ने शव उठाने और ले जाने के लिए जिस वाहन को दिया है उसे तो प्रशासन ने सिर्फ शोभा की वस्तु बनकर रख दिया है। वाहन कैंपस में ऐसे ही खड़ा रहता है और डेडबाडी खुले में बीच बाजार से होकर ठेले पर ले जाई जाती है। फिर भी हमारे हुक्मरान इसे अनदेखा कर देते हैं और हम भी इसे सहज रूप में देखकर चल देते हैं। अलबत्ता यह ठेला (जिस पर शव रखकर ले जाते हैं) डीएम, एसएसपी, सीएमओ व अन्य जिम्मेदारों के कार्यालयों के सामने से रोज गुजरती है।

हमें कब मिलेगी मुक्ति

तस्वीरों में ठेले पर जो लाश दिख रही है। इसे जिला अस्पताल की मर्चरी से दस किमी दूर बीआरडी मेडिकल कॉलेज के पोस्टमार्टम हाउस ले जाया जा रहा है। सरे बाजार किसी अपने की ही लावारिस लाश को ले जाया जा रहा है। लेकिन जिन्हें सम्मान के साथ जीवन के अंतिम पड़ाव तक पहुंचाना चाहिए। वह भी प्रशासनिक अमले पर चोट करने के साथ इंसानियत का इंसाफ मांग रही है।

पिछले साल आए थे तीन वाहन

पिछले साल लाशों को ढोने के लिए शासन की ओर से अस्पताल को तीन शव वाहन दिए गए। इन वाहनों से लावारिस के अलावा अस्पताल में मरने वालों की डेडबॉडी उनके घर पहुंचाने और मर्चरी से पोस्टमार्टम हाउस तक ले जाना था। मगर, हकीकत में ऐसा होता नहीं है। जब इस संबंध में मर्चरी के एक कर्मचारी से बात की गई तो उसका कहना है कि शव हर रोज ठेले से ले जाते हैं।

दिसंबर में कुत्तों ने कर दिया था हमला

एक कर्मचारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि पिछले साल के दिसंबर महीने में डीएम कार्यालय के ठीक सामने कुत्तों ने हमला कर दिया। आसपास के लोगों की मदद से बचाया गया। उसके बाद से ले जाने में हमेशा डर बना रहता है। कभी-कभी तो शव से बदूब भी आती है। इससे बीच बाजार में लोगों को अपना मुंह रुमाल से ढकना पड़ता है।

अधिकारियों के नाक के नीचे से जाते हैं शव

-जिला अस्पताल मोर्चरी हाउस

-कलेक्ट्रेट, कचहरी, डीएम, एसएसपी, कमिश्नर निबंधन कार्यालय

-काली मंदिर स्थित सीओ कैंट दफ्तर

-गोरखपुर पुलिस क्लब

-पुलिस लाइंस

- असुरन पुलिस चौकी

-बीआरडी मेडिकल कॉलेज पुलिस चौकी

फैल सकता है संक्रमण

खुले में लाश ले जाने से संक्रमण फैलने की खतरा रहती है। डॉ। योगेंद्र सिंह के अनुसार, खुले में लाश ढोना खतरनाक है। इससे कई तरह के इंफेक्शन फैल सकते हैं। अगर लाश ज्यादा दिन की हो तो हृ1॥1 भी हो सकता है। यानी स्वाईन फ्लू। वैसे भी गोरखपुर का प्रदूषण तेजी से खराब हो रहा है। रोड पर चारों तरफ कचरा फैला रहता है। इस पर मक्खियां बैठी रहती है। अगर यह मक्खियां लाशों पर भी बैठकर खाले के सामान पर बैठ जाए तो लोगों को गंभीर बीमारी हो सकती है।

बयानों में उलझा रहे अधिकारी

शव वाहन ले जाने के लिए इमरजेंसी नंबर पर सूचना दी जाती है। इसके बाद डेडबॉडी उनके घर भेजी जाती है। रहा सवाल लावारिस डेडबॉडी का तो पुलिस यदि सूचना देती है तो वहां भी भेजा जाता है।

डॉ। अंबुज श्रीवास्तव, चिकित्सा अधीक्षक

शव वाहन सिर्फ अस्पताल के लिए हैं। लावारिस डेडबॉडी ले जाने का काम पुलिस का है। अगर वह सूचना देती है तो वाहन भेजा जाएगा।

डॉ। रवींद्र कुमार, सीएमओ

Posted By: Inextlive