सिटी की सड़कों पर रात में अगर निकलते हैं तो थोड़ा अलर्ट रहिए. स्ट्रीट डॉग्स कभी भी हमला कर सकते हैं. अगर बाइक से हैं तो हादसे का शिकार भी हो सकते हैं.


गोरखपुर (ब्यूरो)। बढ़ती गर्मी से स्ट्रीट डॉग्स के बिहेवियर में बदलाव आ गया है, जिसके चलते वे ज्यादा एग्रेसिव हो गए हैं। जिला अस्पताल में आने वाले केसेज के आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं। अस्पताल के रिकॉर्ड में रोजाना सौ से ज्यादा लोग एंटी रेबीज वैक्सीन लगवाने पहुंच रहे हैं। इन अटैक के 30 परसेंट शिकार बच्चे हैं। प्रतिदिन 22 से 25 एंटी रेबीज वैक्सीन के वॉयल की खपत है। एक वॉयल में चार लोगों को वैक्सीन लगाई जाती है।कॉलोनी की सड़क से मेन रोड तक आतंक


कॉलोनी की सड़कों से लेकर मेन रोड तक स्ट्रीट डॉग्स ने डेरा जमा लिया है। इनकी संख्या इतनी ज्यादा होती है कि एक ने आवाज दी तो चार पीछे लग जाएंगे। अगर इनसे किसी तरह बचे तो वे आगे की टोली को आवाज देकर संकेत दे देते हैं। इनके हमले से बचने के लिए कई बाइक सवार गिर पड़े और चोटिल हो गए।

हो रहे आक्रामक

एक्सपर्ट्स ने बताया गर्मी ज्यादा पड़ रही है। इसकी वजह से स्ट्रीट डॉग्स के बिहेवियर में चेंज आया है। ऐसे मौसम में कुत्ते ज्यादा आक्रामक हो जाते हैं। क्योंकि, स्ट्रीट डॉग्स के दिमाग में थर्मा रेगलेट्री सिस्टम नहीं होता है। यही कारण है कि अपनी गर्मी को शांत करने के लिए जीभ निकालकर हांफते हैं। इससे सिर्फ 10 से 15 परसेंट ही गर्मी निकल पाती है। गर्मी के चलते उनमें चिड़चिड़पन आ जाता है। जरा भी आवाज सुनने पर आक्रामक होकर लोगों को काट लेते हैं। भूक और रैश ड्राइविंग है अटैक की वजह सड़क पर रहने वाले स्ट्रीट डॉग्स के लिए जगह कम होते जा रही है। हर तरफ घर बन गए हैं और जो जगह बच रही है वहां गाडिय़ों का कब्जा हो गया है। जिसकी वजह से इन्हें डर है कि एक दिन इस स्थान से भी भगा दिए जाएंगे। एक वजह यह भी है कि पहले घरों के आसपास इन्हें खाने के लिए पर्याप्त मात्रा में बचा हुआ खाना मिल जाता था। सफाई को लेकर लोग जागरूक हुए तो अब खाने को भी नहीं मिल पा रहा है। खाली पेट होने के चलते भी गुस्सा बढ़ा है और दूसरी सबसे बड़ी वजह यह है कि कई लोग रैश ड्राइविंग के दौरान इनके साथियों को कुचल देते हैं जिस वजह से उन्होंने तेज चल रही गाडिय़ों से डर लगने लगा है और मौका पाते ही वह ऐसे चालकों को काट भी लेते हैं।हाई डोज एंटी रैबीज वैक्सीन का संकट


जिन लोगों को स्ट्रीट डॉग्स गंभीर रूप से काट लेते हैं, उन्हें हाई डोज एंटी रेबीज वैक्सीन लगाई जाती है। यह इंजेक्शन कंधे के बजाए मरीज के जख्म पर लगाया जाता है। हाईडोज रेबीज वैक्सीन जिला अस्पताल को छोड़कर बीआरडी में उपलब्ध है। लेकिन, यहां भी जुगाड़ वालों को ही यह वैक्सीन लगाई जाती है। वहीं, निजी अस्पतालों में इस वैक्सीन को लगवाने के लिए लोगों को दो हजार से तीन हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं। जबकि, इससे पीडि़त 10 से 15 मरीज रोज जिला अस्पताल में वैक्सीन लगवाने पहुंच रहे हैं।एक सप्ताह में एआरवी लगवाने पहुंचे मरीज22 अप्रैल- 105- बच्चे- 2823 अप्रैल- 101- बच्चे-2624 अप्रैल- 106- बच्चे-3125 अप्रैल - 103- बच्चे- 2626 अप्रैल- 118- बच्चे- 3627 अप्रैल - 104- बच्चे- 2329 अप्रैल - 103- बच्चे-27मरीज अगर एआरवी नहीं लगवाते हैं, तो जान जोखिम में डाल रहे हैं। कुत्तों के काटने का तत्काल प्रभाव नहीं पड़ता है। जैसे-जैसे समय बीतता है वैसे-वैसे शरीर में संक्रमण बढ़ता जाता है। ऐसे में मरीज के शरीर में क्या परिवर्तन हो जाए, यह किसी को नहीं पता। इसलिए कुत्ते, बंदर और इंसान के काटने पर भी एआरवी जरूर लगवाएं। -डॉ। नम्रता सिन्हा, एआरवी मेडिकल ऑफिसर

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