पहले जहां बड़े-बड़े माफियाओं से प्रेरणा लेते हुए यंगस्टर्स क्राइम की दुनियां में अपनी एक अलग पहचान बनाने में खुद को अहमियत देते थे. वहीं शासन-प्रशासन की सख्ती के बाद से क्राइम का ट्रेंड चेंज होता गया.


गोरखपुर (ब्यूरो)। अब ओटीटी, वेब सीरिज समेत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से इंस्पॉयर होकर क्राइम को अंजाम देने का काम कर रहे हैैं, वहीं यह क्रिमिनल्स कहीं न कहीं साइलेंट किलर की रुप में अपनी एक अलग धाक जमाने में जुट चुके है, लेकिन इन क्रिमिनल्स के पकड़े जाने और जेल में बंद होने के बाद छूटकर वापस आने के बाद फिर से क्राइम की दुनियां में इन्वॉल्व होना इनके हैबिट में शामिल होने को लेकर डीडीयूजीयू की साइक्लोजी डिपार्टमेंट की प्रो। डॉ। विसमिता पॉलीवाल ने देशभर के क्रिमनल्स के मनोदशा और उनके लाइफ स्टाइल को लेकर रिसर्च किया। तीन राज्यों की जेलों में रिसर्च


डीडीयूजीयू के साइकोलॉजी डिपार्टमेंट की प्रो। डॉ। विसमिता पॉलीवाल ने राजस्थान, गुजरात व छत्तीसगढ़ की जेलों में बंद क्रिमिनल्स पर रिसर्च किया। क्रिमिनल्स की उम्र 20-35 वर्ष रही। रिसर्च का टॉपिक 'साइकोमेट्रिक प्रोफाइलिंग ऑफ साइको सोशल लासर्निंग ऑफ एंडर इन इंडिया रहा। इस रिसर्च के लिए डॉ। विसमिता ने 150 क्रिमिनल्स के प्रोफाइलिंग, साइकोलॉजी प्रोफाइलिंग व सोशल प्रोफाइलिंग पर रिसर्च किया। वे बताती हैैं कि लासर्निंग क्राइम के तहत चोरी, पिक पॉकेटिंग, स्नेचिंग, पब्लिक प्लेसेज पर चोरी के साथ-साथ छोटी मोटी चोरी करने की वजह क्या रही और कब से यह काम करते आ रहे हैैं। यह विशेष साइकिलिंग है। जो कारणों का पता लगाया जाता है। इनके अपराध करने की टेंडेंसी पर काम करना और इनके पर्सनाल्टी व मोटिवेशन कहां से मिलता है। यह सबकुछ पता लगाया गया। तो पता चला किया यह ओटीटी, सोशल मीडिया पर आने वाले वीडियोज, इंस्टाग्राम व ट्विटर जैसे प्लेटफार्म से इंस्पॉयर होकर क्राइम को अंजाम देते थे। जो अब गिल्टी फील करते है। रिसर्च में पाई गईं अहम जानकारियां डीडीयूजीयू की प्रो। विसमिता ने कुल 150 क्रिमिनल्स पर रिसर्च के दौरान यह पाया कि 86 ऐेसे क्रिमिनल्स थे जो क्राइम करने के लिए औसत से कहीं ज्यादा थे, जबकि 28 क्रिमिनल्स ऐसे थे जो औसत में पाए गए। एक्सट्रिमिली हाई लेवल के 6 क्रिमिनल्स थे, जो घटना को अंजाम देने का काम करते थे। वहीं जो सोशल सपोर्ट के थ्रू अपराध की दुनिया में कदम रखे उनमें सबसे ज्यादा लो कैटेगरी 92 क्रिमिनल्स की थी। जबकि औसत में 31 क्रिमिनल्स पाए गए। रिसर्च के चार पैरामीटर 1- साइक्लोजिकल मोटिवेशन 2- सोशल सपोर्ट 3- क्राइम की तरफ रुझान 4- स्प्रिच्युलिटी क्रिमनल प्रोपेंसिटी कैटेगरी - फ्रिक्वेंसी - परसेंटेज एक्सट्रिमिली हाई - 6 - 4हाई - 27 - 18 एबव एवरेज - 86 - 57.3एवरेज - 28 - 18.6बिलो एवरेज - 2 - 13

लो - 1 - 0.006एक्सट्रिमिली लो - 0 - 0 कुल - 150 - 100 सोशल सपोर्ट कैटेगरी - फ्रिक्वेंसी - परसेंटेज हाई - 27 - 18 एवरेज - 31 - 20.6लो - 92 - 61.3कुल - 150 - 100स्प्रिचुअल हेल्थ कैटेगरी - फ्रिक्वेंसी - परसेंटेज वेरी हाई - 6 - 4हाई - 17 - 11.3 मॉडरेट - 32 - 21.3लो - 76 - 50.6वेरी लो - 19 - 12.6 कुल - 150 - 100देशभर के तीन राज्यों के जेलों मे बंद क्रिमिनल्स पर रिसर्च किया गया। यह सभी 20-35 वर्ष के यंगस्टर्स थे। जो ओटीटी, वेब सीरिज समेत सोशल मीडिया से इंस्पॉयर होकर क्राइम को अंजाम देते थे। टास्क चैलेंजिंग था, लेकिन इस पर रिसर्च किया गया। इन्हें थिरेपी, रिहैबिल्टी की जरुरत है प्रो। डॉ। विसमिता पॉलीवाल, साइक्लोजी डिपार्टमेंट, डीडीयूजीयू

Posted By: Inextlive