पुलिस का जाल तोड़ रहे कबूतरबाज
- एफआईआर में पुलिस की कार्रवाई, भटक रहे बेरोजगार
- जांच का फायदा उठाते आरोपी, करोड़ों रुपए की हेराफेरी GORAKHPUR: शहर में बेरोजगारों को अच्छी नौकरी का झांसा देकर ठगी करने वाले पुलिस पर भारी पड़ रहे हैं। कबूतरबाजों का रैकेट पुलिस के जाल को काट दे रहा है। एफआईआर में सिमटी पुलिस की कार्रवाई का आलम यह है कि पीडि़तों को इंसाफ मिलने में देरी हो रही है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि फ्रॉड के मामलों में शामिल आरोपियों की गिरफ्तारी की जाएगी। मुकदमा दर्ज किया, भूल गई पुलिसशहर में नौकरी दिलाने से लेकर अन्य तरह के झांसे देकर जालसाज बेरोजगारों को चूना लगाते हैं। इस साल डेढ़ माह के भीतर नौकरी दिलाने के नाम पर जालसाजों के गैंग ने करीब पांच करोड़ रुपए का चूना लगा दिया है। इस मामले में दो दिन पूर्व एफआईआर दर्ज कराई गई थी। एसएसपी ने मामले की जांच सीओ चौरीचौरा को सौंपी है। पूर्व में दर्ज हुए मुकदमों की फाइलें जहां-तहां ऑफिसों में पड़ी हुई धूल फांक रही हैं।
आउटर एरिया में ऑफिस, यूथ्स को देते झांसाएसएसपी के पास आने वाली शिकायतों में सामने आया है कि नौकरी दिलाने के नाम पर लाखों रुपए हड़पने वाले जालसाज शहर के बाहर ऑफिस बना रहे हैं। फोरलेन पर सोनबरसा बाजार के पास ऑफिस बनाकर इस तरह के गैंग ने सैकड़ों लोगों से करीब तीन करोड़ रुपए की ठगी कर ली है। सभी युवकों से विदेश भेजने के नाम पर 90-90 हजार रुपए लिए गए थे। दिल्ली जाने पर मालूम हुआ कि उनको फर्जी वीजा और एयर टिकट देकर उनको शिकार बनाया गया। फिलहाल युवकों की पीड़ा सुनकर पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर ली है। लेकिन पूर्व में दर्ज मुकदमों की राह पर इसकी भी जांच चल रही है।
कंपनी के तामझाम में फंसते लोग, कर्ज लेकर देते रुपएविदेश भेजने के लिए ट्रेनिंग कैंप चलाने वाले जालसाजों का रैकेट लोगों को अट्रैक्टिव पैकेज देकर शिकार बनाता है। उनके झांसे में आकर युवक विदेश जाने के सपने पाल लेते हैं। पास पड़ोस और नात-रिश्तेदारों से कर्ज लेकर कंपनी में नकदी जमा करा देते हैं। बाद में पता लगता है कि सभी को फर्जी वीजा और फ्लाइट का टिकट दिया गया था। सोनबरसा बाजार में संचालित एजेंसी वालों ने पूर्व में विदेश भेजे गए युवकों को कुछ रुपए लौटा दिए थे। इससे लोगों का भरोसा कंपनी के संचालकों पर बढ़ता चला गया। इसलिए लोगों ने बिना किसी जांच पड़ताल के रुपए जमा करा दिए।
- एफआईआर दर्ज होने के बाद जांच के नाम पर मामला टरकाया जाता है। - आरोपितों के खिलाफ पीडि़त से ही सबूत मांगे जाते हैं। कोई कमी होने पर पुलिस ढिलाई करती है। - एफआईआर दर्ज करने के बाद भी आरोपियों की प्रॉपर्टी की कुर्की से संबंधित कोई प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती। - कई बार मामले को मैनेज करने का दबाव बनाने की शिकायतें भी सामने आती हैं। ऐसे में न्याय मिलना मुश्किल होता है। - अक्सर पुलिस पीडि़त को ही धमकाती है। कहा जाता है कि जब तुम पढ़े-लिखे हो तो इनके झांसे में कैसे आ गए। कैसे शिकार बन जाते बेरोजगार - पोस्टर, एड सहित अन्य माध्यमों से मोबाइल नंबर जुटाते हैं। - मोबाइल पर बात करने के दौरान संबंधित कंपनी पैकेज का झांसा देती है। - कागजात, वीजा और एयर टिकट के नाम पर युवकों से मनमानी नकदी मांगी जाती है। - कर्ज लेकर लोग जालसाजों को रुपए मुहैया करा देते हैं। बाद में मालूम होता है कि ठगी हो गई। यह सावधानी बरतें - विदेश भेजने वाली एजेंसी के बारे में पूरी जानकारी करें। - इंडियन गवर्नमेंट से रजिस्टर्ड किसी एजेंसी के जरिए आवेदन करें। - ट्रेनिंग दिलाने वाली कंपनी-संस्था के बारे में पूरी जानकारी जुटाएं। - रुपए देने के पहले कंपनी और उसके कर्मचारियों के बारे में जानकारी लें। - जांच परख करके ही ऐसी संस्थाओं में किसी तरह की नकदी जमा कराएं। वर्जन दर्ज मुकदमों की छानबीन का निर्देश दिया गया है। विदेश भेजने के नाम पर ठगी के मामलों की समीक्षा कराई जाएगी। इनमें जिनके खिलाफ भी एफआईआर दर्ज हुई होगी। उनके खिलाफ कार्रवाई में कोताही होने पर विवेचक जिम्मेदार होंगे। डॉ। सुनील गुप्ता, एसएसपी शुरूआत में ऐसी कोई जानकारी नहीं मिलती है। लोग जब रुपए देकर फंस जाते हैं तब ऐसे मामले सामने आते हैं। ऐसे में पुलिस को कार्रवाई में प्रॉब्लम आती है। दूसरा यह है कि इस तरह का रैकेट चलाने वालों की तलाश पुलिस खुद करे। लेकिन अपने रुटीन के कामों में बिजी होने से पुलिस प्रॉपर एक्शन नहीं ले पाती। शिवपूजन यादव, रिटायर डीएसपी पहले से पुलिस मुकदमों के बोझ से दबी है। मुकदमा दर्ज करने के बाद पुलिस सुस्त रफ्तार में जांच करती है। ऐसे प्रकरणों को निपटाने के लिए स्पेशल सेल बनाई जानी चाहिए। नौकरी दिलाने की एजेंसी खोलने वालों की पूरी जांच पड़ताल होनी चाहिए। इससे बेरोजगारों को ठगी का शिकार होने से बचाया जा सकेगा। शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एडवोकेटकिराए का ऑफिस, लैंडलार्ड की मुसीबत
विदेश भेजने, नौकरी दिलाने के नाम पर लोगों से रुपए ठगने वाले गैंग के सदस्य किराए पर कमरा लेते हैं। उनके भागने के बाद लैंडलॉर्ड्स की मुसीबत बढ़ जाती है। ठगी के शिकार पीडि़तों के साथ-साथ पुलिस भी लैंडलार्ड्स से पूछताछ करती है। ऐसे में बगैर पड़ताल के किसी भी फर्म को मकान देना महंगा पड़ जा रहा। सोनबरसा में फरार कंपनी संचालकों की तलाश में लैंडलॉर्ड रजनीश को काफी मुश्किल उठानी पड़ रही है। केस 1 ऑफिस बंद कर हो गए फरार, लैंडलॉर्ड परेशान सोनबरसा में ऑफिस खोलकर जालसाजों ने चार सौ से अधिक लोगों को तीन करोड़ रुपए की चपत लगाई। विदेश भेजने के नाम पर सभी से 80 से 90 हजार रुपए जमा कराए गए। शुरूआत में विदेश न भेज पाने पर युवकों के रुपए लौटाकर भरोसा बढ़ाया। बाद में ज्यादा रकम जुटने पर संचालक और सहयोगी फरार हो गए। केस 2 एयरपोर्ट पर पता लगा हुए जालसाजी के शिकारदुबई एयरपोर्ट पर नौकरी का झांसा देकर जालसाजों ने 53 युवकों से करीब सवा करोड़ रुपए की ठगी कर ली थी। गोरखपुर और गोंडा में ऑफिस बनाकर आरोपित ने पीडि़तों को दुबई एयरपोर्ट में विभिन्न पदों पर काम कराने का झांसा दिया था। उनके चक्कर में फंसकर बेरोजगार युवकों ने नकदी जमा करा दी। कंपनी के फरार होने पर सभी पीडि़त थाना से लेकर एसएसपी ऑफिस तक का चक्कर लगा रहे हैं। दिल्ली एयरपोर्ट पर पहुंचने के बाद युवकों को यह जानकारी मिली कि वह जालसाजी के शिकार हुए हैं।
आसान है शिकार बनाना, रजिस्टर्ड नहीं होते गैंग शहर में नौकरी के नाम पर झांसा देकर ठगी करने वाले गैंग के खिलाफ पुलिस कार्रवाई काफी सुस्त है। बेरोजगारों से करोड़ों रुपए की ठगी करने वाले किसी गैंग के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। जालसाजी, अमानयत में खयानत की धाराओं में एफआईआर दर्ज करके पुलिस ऐसे मामलों की फाइल आलमारी में रख देती है। शुरूआती दौर में शिकायत करने पर कोई कार्रवाई नहीं होती। बाद में किसी तरह से मुकदमा दर्ज कराया जाता है। लेकिन जांच में इतनी लापरवाही होती है कि मामले का निस्तारण नहीं हो पाता। उधर ऐसे मामले सामने आने पर पुलिस कोई जागरूकता अभियान नहीं चलाती। इस वजह से भी लोगों को ठगी का शिकार होना पड़ता है। यह होती लापरवाही - कई बार दौड़ने के बाद थानों पर मुकदमा दर्ज किया जाता है।