GORAKHPUR : सामाजिक आर्थिक विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए विकास और युवाओं की पसंद को इग्नोर नहीं जा सकता है। इंटरनेशनल यूथ डे हर साल इसलिए मनाया जाता है कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीति के मुद्दों पर युवाओं की सहभागिता बढें। 2020 का थीम 'वैश्रि्वक कार्य के लिए युवाओं की भागीदारी है। गोरखपुर में ऐसे युवाओं की कमी नहीं है जो वैश्रि्वक स्तर की सोच रख कर ऐसा कार्य कर रहे हैं, जिससे दूसरे लोग भी इंपावर हो रहे हैं। इनमें से कुछ युवाओं की यह छोटी सी दास्ता

यंग बिजनेसमैन को दिया प्लेटफॉर्म

कॅरियर के ऑप्शन बढ़ने के साथ ही एंप्लॉयमेंट के चांस भी बढ़े हैं, लेकिन जॉब को प्रिफरेंस देने के बजाय खुद के पैरों पर खड़ा होना ही कुछ यंगस्टर्स बेहतर समझते हैं। ऐसे ही हैं गोरखपुर के अरुण गुप्ता, जिन्होंने जॉब मिलने के बाद उसकी बारिकियां समझीं और आज स्टार्टअप की फील्ड में उनकी अलग मिसाल है। जून 2010 को इंस्टीट्यूट स्टार्ट करने के बाद अरुण ने एक काउंसलर के साथ अपना इंस्टीट्यूशन शुरू किया। किसी बड़ी ब्रांड की फ्रैंचाइजी न लेकर 50 परसेंट कॉस्ट कम में सेम एजुकेशन प्रोवाइड करानी शुरू कर दी। कुछ ही समय यानि 2012 में पांच फैकेल्टी, 3 काउंसर के साथ 12 स्टाफ, करीब 160 बच्चे एजुकेशन हासिल करने लगे। इसके बाद कुछ बिजनेस किया। उनका एक दोस्त जो फोटोग्राफर और डिजाइनर था, टैलेंट होने के बाद भी वह पैसे की वजह से अपनी शॉप ओपन नहीं कर पा रहा था। जगह मैनेज करने में भी काफी परेशानी हो रही थी। इसको ध्यान में रखते हुए उन्होंने मेट्रो और बड़े सिटीज की तर्ज पर स्टार्टअप कैफे नाम से को-वर्किंग स्पेस की शुरुआत कर डाली, यहां अब वह ऐसे इनोवेटिव लोगों को मौका देते हैं, जिनके पास टैलेंट है, इनोवेशन है। इसके मेंबर्स यहां पहुंचकर अपने ऑफिस सा फील करते हैं, मीटिंग करते हैं। यंग बिजनेसमैन को प्लेटफॉर्म मिलने से वह अपना सारा काम बिना किसी एक्स्ट्रा खर्च के कर पा रहे हैं। अरुण ने इसके साथ ही अपना एनिमेशन का इंस्टीट्यूट खोला है।

अरूण गुप्ता, बिजनेस मैन

अनजान वायरस से लिया पंगा

कोरोना की दहशत सभी पर हावी है। सब इसी कोशिश में लगे हैं कि किसी भी तरह इससे दूर रह जाए, ताकि अपने साथ अपनों को बचाया जा सके। लेकिन हेल्थ, एडमिनिस्ट्रेशन, पुलिस, जीएमसी ऐसे कुछ महकमे हैं, जो दिन रात ड्यूटी में लगे हैं। इसमें से एक हैं यंग टीम लीडर डॉ। अशोक पांडेय, जिन्होंने कोरोना से लड़ने की कमान उस वक्त संभाली, जब किसी को मालूम न था कि कैसा वायरस है? उसकी जांच में कितना जोखिम है? कैसे इससे बचा जा सकता है? इतने खतरों के बाद भी उन्होंने नए अनजान वायरस से पंगा लिया और अपनी टीम के साथ गोरखपुर की आरएमआरसी स्थित लैब में कोविड-19 के इंफेक्शन की टेस्टिंग शुरू की। शुरुआत चंद सैंपल्स से हुई, लेकिन रेग्युलर इंटरवल पर संया बढ़ती रही। उन्होंने जांच में न दिन देखा और न रात, पॉजिटिव सैंपल आये या निगेटिव इमानदारी से जिमेदारी पूरा करने में लगे रहे। आरएनए एक्सट्रैक्शन का काम आरएमआरसी में मैनुअल हुआ। एक माइक्रोलीटर सैंपल यानि एक लीटर के 1000वें भाग से सैंपल निकालकर आरएनए एक्स्ट्रैक्ट किया गया। उन्होंने 18-20 घंटे तक काम किया। वह पॉजिटिव भी हुए, लेकिन हार नहीं माने।

डॉ। अशोक पांडेय

3 लाख की आबादी का पार

गोरखपुर डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में तैनात जिला क्वालिटी कंसल्टेंट डॉ। मुस्तफा खान ने बड़हलगंज की डेरवा पीएचसी का कायाकल्प करने और इसको एनक्वास सर्टिफिकेशन दिलाने में अहम जिमेदारी निभाई। यंग और डायनमिक डॉ। मुस्तफा को सीएमओ डॉ। श्रीकांत तिवारी ने एक ऐसी पीएचसी के कायाकल्प की जिमेदारी सौंपी, जिसके ऊपर 3 लाख आबादी का भार है और वहां लोग इलाज के लिए जाने से कतराते थे। डॉ। मुस्तफा ने कई महीनों मेहनत की और वहां कई-कई दिन रुककर उसका कायाकल्प कराया। जिसके बाद न सिर्फ यूपी गवर्नमेंट ने कायाकल्प स्कीम के तहत डेरवा को पहला अवार्ड दिया, बल्कि वहां ऐसी बेहतर सुविधाएं हो गईं कि लोगों ने बजाए किसी प्राइवेट या बड़े हॉस्पिटल के गवर्नमेंट पीएचसी पर जाना प्रिफर किया। डॉ। मुस्तफा यही नहीं रुके, उन्होंने एनक्वास के लिए भी जी-तोड़ मेहनत की और सर्टिफिकेशन के साथ गवर्नमेंट फंड भी दिलवाने में अहम रोल निभाया। इसके बाद अब कोविड के दौर में भी डॉ। मुस्तफा खान हिमत कर कोविड-पेशेंट्स को मोटीवेट कर रहे हैं और जहां जाने से सभी कतरा रहे हैं। साथ ही सोशल मीडिया पर उन्होंने कई बीमारियों से अवेयर करती हुई शॉर्ट फिलस भी बनाई हैं, जिससे कि लोगों का डर कम हो सके।

डॉ। मुस्तफा खान

आजाद एक युवा सोच

नाम से स्पष्ट है कि एक युवा 'आजाद' जो हर उन बेडि़यों को तोड़ने के लिए प्रयासरत है जो समाज के विकास में बाधक है। आजाद हर उस व्यक्ति को भिक्षावृत्ति से मुक्त कराने के लिए तत्पर है, जिसका जीवन भिक्षावृत्ति पर आश्रित है। आजाद हर उस मानसिक विक्षिप्त व्यक्ति के सेवा में जुटा है जो समाज की मुयधारा से कोसो दूर हैं। जैसा नाम, वैसा ही कार्य। कैंपियरगंज के मुसाबर गांव से निकले आजाद आज गोरापुर ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ाी पुरस्कृत हो चुके हैं। आजाद के सामाजिक सेवा कार्यो को देखा जाए तो चाहे छोटे बच्चों का नशामुक्ति अभियान हो या बच्चों की शिक्षा दीक्षा का कार्य अपने आपमे एक उदाहरण है। बाल भिक्षावृत्ति उन्नमूलन अभियान हो, बेसहारा मानसिक रोगियों के सामाजिक पुनस्र्थापना हो या मेडिकल कॉलेज के मरीजों के तीमारदारों को नि:शुल्क भोजन सेवा हो, आजाद ने हर प्रकार से समाज के हर वर्ग हर क्षेत्र में सेवा का बिगुल बजाया है। वर्तमान समय के भौतिकवादी युग में जहां युवा अपने सामाजिक दायित्वों से दूर भाग रहा है वहीं आजाद जैसे युवाओं ने सामाजिक सेवा के कार्यो में अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं।

आजाद पांडेय, समाजसेवी

Posted By: Inextlive