- गोरखपुर लिटरेरी फेस्ट का हुआ आगाज, दिन भर चला प्रोग्राम्स का दौर

- समय, समाज और शब्द संवाद से हुई प्रोग्राम की शुरुआत

GORAKHPUR: जहां संवाद खत्म होता है वहीं से हिंसा की शुरुआत होती है। शब्द मनुष्य के सर्वाधिक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली आविष्कारों में से एक है। शब्द के बिना यह दुनिया अंधेरी दुनिया होती। बीते वक्त और आज में फर्क है। बीते वक्त में शब्दों को व्यक्त करने की आजादी नहीं थी और आज के समय में मनुष्य प्रबुद्ध हो गया है और मुक्त रूप में अपने भावों को व्यक्त करने के लिए शब्दों का प्रयोग कर रहा है। संवाद के माध्यम से हम अनुमोदित हिंसा पर विराम लगा सकते हैं। यह बातें साहित्य अकादमी, दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार प्रो। विश्वनाथ तिवारी ने साहित्यिक विमर्श के दो दिवसीय वैचारिक समागम 'गोरखपुर लिटरेरी फेस्ट - शब्द संवाद' के उद्घाटन सत्र में 'समय, समाज और शब्द संवाद' टॉपिक पर व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि साहित्यकार को कहने की कला आती है। जो अपनी अभिव्यक्ति की समस्या को सुलझा लेता है वही वास्तव में लेखक है। हर लेखक एक्टिविस्ट हो यह बिल्कुल जरूरी नहीं। संवाद वस्तुत: शास्त्रार्थ है और यही लोकतंत्र की शक्ति है।

महात्मा गांधी के शब्द करते हैं प्रभावित

वरिष्ठ साहित्यकार विभूति नारायण राय ने कहा कि कालजयी साहित्य के शब्द केवल समकालीन समय को ही नहीं बल्कि आने वाली पीढि़यों को भी प्रेरणा देते हैं। आज के समय में साहित्यिक-सामाजिक और वैचारिक आंदोलनों में महात्मा गांधी के शब्द उस पीढ़ी को भी प्रेरित करते दिखते हैं, जिसने उन्हें नहीं देखा। साहित्य का सृजन वस्तुत: एक्टिविज्म की देन है। गोरखपुर यूनिवर्सिटी हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार प्रो। केसी लाल ने कहा कि संवाद, लोकतंत्र की मर्यादा का व्यावहारिक अनुशासन है। संवाद की प्रक्त्रिया में बोलना एक साधना है, बोलना बहुमूल्य है, बोलना खुद में एक जिम्मेदारी है। शब्द किसी घातक शस्त्र से अधिक संहारक होते हैं इसलिए शब्दों का प्रयोग मर्यादित और अनुशासित होना चाहिए।

समाज के लिए प्रेमपत्र

प्रसिद्ध उपन्यासकार व साहित्यकार मैत्रेयी पुष्पा ने कहा कि साहियकार वे हैं जो अपनी भावों की अभिव्यक्ति को शब्दों में पिरोते हैं। प्रेमचंद के प्रसिद्ध पात्र 'हामिद' का उल्लेख करते हुए उन्होंने आज की पीढ़ी के बदलते स्वरूप पर चिंता व्यक्त किया। डिजिटल युग में समय के बदलावों पर विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने पत्रलेखन को पुन: प्रासंगिक बनाने की वकालत की। सत्र में आयोजक मंडल के डॉ। रजनीकांत श्रीवास्तव, शैवाल शंकर श्रीवास्तव, डॉ। हर्षवर्धन राय और डॉ। संजय श्रीवास्तव ने अतिथियों को अंगवस्त्र और स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया। संचालन सुकीर्ति अस्थाना ने किया।

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निर्गुण की संगीतमय तान बिखेर गया तिरगुन

लिटफेस्ट के दूसरे सेशन में तिरगुन बैंड ने कल्चरल परफॉर्मेस दी। गायक, वादक और संगतकार आदित्य राजन, जगदंबा, ऋषभ, आदर्श, शैलेन्द्र कबीर और अभिषेक के संयुक्त सुरीले मेल ने निर्गुण साहित्य की रचनाओं को खूबसूरत स्वरों और संगीत में पिरोकर जब पेश किया तो सभागार में मौजूद सभी दर्शक झूम उठे। बैंड की स्वरलहरियों ने झूमते दर्शकों के बीच साहित्य और संगीत के मेल की सुंदर मिसाल पेश की। संचालन आत्रेय शुक्ल ने किया।

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ध्यान खींचती रही मनोदिव्यांग धर्मेद्र की पेंटिंग्स

लिटफेस्ट सभागार के एक कोने में लगी कुछ रंगीन पेंटिंग्स ने वहां मौजूद दर्शकों का ध्यान खास तौर पर खींचा। रंग बिरंगी कलाकृतियों और चित्रकारी की बारीकियों से भरी इन पेंटिंग्स को देखने में ऐसा लग रहा था मानो किसी मंझे बड़े कलाकार ने इन्हें रचा हो, पर सभी को यह जानकर बेहद हैरत हुई कि ये कलाकारी और किसी ने नहीं बल्कि एक बेसहारा मानसिक दिव्यांग धमर्ेंद्र की कलाकारियां हैं।

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तनवीर ने की गुफ्तगू

लिटफेस्ट के तीसरे सत्र में साहित्यिक संवाद के तहत 'विमशरें में गुम होती कथा' पर डिस्कशन किया गया। इस सत्र में हुई चर्चा के बाद वक्ताओं ने डॉ हर्षवर्धन राय और प्रदीप सुविज्ञ सहित श्रोताओं के प्रश्नों का उत्तर भी दिया। डॉ। श्रीभगवान सिंह, मानवेन्द्र त्रिपाठी और डॉ। उत्कर्ष सिन्हा ने गेस्ट का वेलकम मोमेंटो और शॉल देकर किया। संचालन डॉ। चारूशीला सिंह ने किया। चौथे सत्र में प्रसिद्ध गीतकार और कवि तनवीर गाजी के साथ गुफ्तगू का आयोजन किया गया। आयोजन समिति के डॉ। रजनीकांत श्रीवास्तव ने स्मृति चिन्ह और अंगवस्त्र द्वारा उनका स्वागत किया।

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संवेदना जगा गई कफन रीमिक्स

लिटफेस्ट के पांचवें सेशन में कथाकार पंकज मित्र ने सामाजिक कुरीतियों और आधुनिक आडम्बरों पर प्रहार करते हुए मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध रचना 'कफन' को आधार लेते हुए दो परिवर्तित पात्रों जी। राम और एम। राम के किरदारों से व्यवस्था पर चोट करने वाली लघुकथा का भावपूर्ण वाचन किया। उन्होंने कथा में पात्रों के संवादों को आंचलिक भावों के साथ सुनाया जिसका उपस्थित दर्शकों ने भरपूर लुत्फ उठाया।

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मंत्रमुग्ध सभागार सुनता रहा शहजादी चौबोली की दास्तान

खचाखच भरे प्रेक्षागृह में दास्तानगोई की अपनी अनूठी शैली के लिए मशहूर किस्सागो महमूद फारूकी और दौरेन शाहिदी की परफॉर्मेस हुई। उन्होंने शहजादी चौबोली का किस्सा अपने अंदाज में सुनाया। मशहूर चिकित्सक डॉ अजीज अहमद ने दास्तानगोई की परंपरा के बारे में दो शब्द कहे और उसके बाद प्रोग्राम की शुरुआत हो गई। यादगार महफिल का बेहतरीन संचालन सुप्रसिद्ध उद्घोषक डॉ मुमताज खान ने किया। कलाकारों का अभिनंदन अरुणा यादव और डॉ। त्रिलोक रंजन ने किया।

Posted By: Inextlive