- सुविधाओं के अभाव में मुरझा रही है हॉकी की नर्सरी

- इंटरनेशनल स्टैंडर्ड के ग्राउंड न होने से खिलाडि़यों को हो रही है प्रॉब्लम

GORAKHPUR: आज नेशनल स्पो‌र्ट्स डे है। स्पो‌र्ट्स डे हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले ध्यानचंद की याद में मनाते हैं। वैसे इन दिनों हॉकी चर्चा में भी है। देश के नेशनल गेम हॉकी में इस बार टीम इंडिया ने जलवा दिखाया है। मेंस और विमेन हॉकी ने बेहतर परफॉर्म कर जो जज्बा देशवासियों में पैदा किया है, उससे एक बार फिर हॉकी की मुरझाती हुई नर्सरी लहलहाने को तैयार है। गोरखपुर में भी हॉकी की बादशाहत काफी दिनों तक रही है। यहां से भी नेशनल और इंटरनेशनल खिलाडि़यों की फौज निकली है। ओलंपिक तक सफर तय करने वाले गोरखपुर के होनहारों ने मैदान में खूब पसीना बहाया है। अब जमाना चेंज हुआ है, खेल के तौर तरीके बदले हैं, नन्हें और नए खिलाड़ी अपनी टीम को जीत दिलाने के लिए जीतोड़ मेहनत कर पसीना बहा रहे हैं, लेकिन जब हकीकत से उनका सामना हो रहा है, तो सुविधाओं के अभाव में वह दूसरों से कॉम्प्टीट करने में खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं। दर्जनों इंटरनेशनल प्लेयर्स के अलावा ओलंपियन देने वाली गोरखपुर हॉकी की नर्सरी अब सुविधाओं के अभाव में मुरझाई है।

बुनियादी जरूरत ही पूरी नहीं

आज के दौर में स्टेट, नेशनल या इंटरनेशनल लेवल पर जो भी हॉकी के कॉम्प्टीशन होते हैं। वह सिंथेटिक एस्ट्रोटर्फ पर ही ऑर्गनाइज किए जा रहे हैं। मगर सबसे जरूरी और बुनियादी सुविधा होने के बाद भी यहां के खिलाड़ी अब तक इससे वंचित है। स्पो‌र्ट्स कॉलेज में एक एस्ट्रोटर्फ बनकर तैयार भी है, लेकिन यहां सिर्फ एडमिशन लेने वाले खिलाडि़यों को ही प्रैक्टिस का मौका है। वहीं, यूनिवर्सिटी में खेलो इंडिया के तहत प्रपोजल गया हुआ है, लेकिन अब इसको बनने में वक्त लगेगा। इसकी वजह से मिट्टी और घास के ग्राउंड से शुरुआत करने के बाद जब खिलाड़ी किसी बड़े कॉम्प्टीशन में हिस्सा लेने के लिए पहुंचते हैं, तो वह खुद को कॉम्प्टीशन में कहीं खड़ा नहीं पाते। कड़ी मशक्कत के बाद एक-दो मैच जीत लिया तो जीत लिया, वरना बोरिया-बिस्तर पैक कर वापस लौट जाते हैं। जिस तरह की सुविधाएं मिल रही हैं, उससे जिम्मेदार सिर्फ नेशनल में पार्टिसिपेशन से ही संतोष कर लेते हैं।

सिर्फ तीन जगह होती है प्रैक्टिस

गोरखपुर पहले हॉकी की नर्सरी हुआ करता था। ज्यादातर स्कूल और कॉलेजेज के साथ ही स्टेडियम, स्पो‌र्ट्स कॉलेज में हॉकी की प्रैक्टिस होती थी। टूर्नामेंट में भी काफी जोरदार लड़ाई और टक्कर देखने को मिलती थी। मगर अब सिर्फ तीन जगह ही हॉकी खेली जाती है। एमएसआई इंटर कॉलेज, जिसने गोरखपुर को दर्जनों इंटरनेशनल प्लेयर्स दिए हैं, वहां अब भी हॉकी को जिंदा रखने की कोशिश जारी है। वहीं, स्पो‌र्ट्स कॉलेज और रीजनल स्टेडियम में भी हॉकी का कैंप चलता है, जहां प्रैक्टिस होती है। कोविड की वजह से यह भी दो साल से बंद चल रही है। बाकी सभी स्कूल और कॉलेजेज के साथ यूनिवर्सिटी लेवल तक हॉकी खत्म हो चुकी है।

नहीं है कोई जॉब गारंटी

हॉकी से दूर जाने की वजह जब टटोली गई, तो इसमें सबसे टॉप पर जॉब सिक्योरिटी का सवाल सामने आया। सिर्फ रेलवे के अलावा कोई भी विभाग स्पो‌र्ट्स कोटे के तहत खिलाडि़यों की भर्ती नहीं करता, उसमें भी एक गेम से रेलवे भी कितनी भर्ती कर सकता है। वहीं, प्रदेश सरकार के पास दर्जनों विभाग हैं, सबमें स्पो‌र्ट्स कोटा के तहत भर्ती की जा सकती है, लेकिन काफी समय से इसमें कोई भर्ती नहीं की गई। इससे जॉब गारंटी की चांसेज और भी कम हो गई।

सुविधाएं मिलें तो बरसेंगे मेडल

ऐसा नहीं कि गोरखपुराइट्स में टैलेंट की कमी है। एस्ट्रोटर्फ न होने के बाद भी शहर के होनहार बेहतर प्रदर्शन करते हैं। बस अगर उन्हें एस्ट्रोटर्फ के साथ जरूरी सुविधाएं मिलने लगें तो मेडल्स की बरसात हो। यह हम ऐसे ही नहीं कह रहे हैं, बल्कि पिछले साल आए रिजल्ट को देखकर यह कहा जा सकता है। साल 2015 में प्रैक्टिस के बाद जहां 4 स्टूडेंट्स नेशनल खेलने के लिए गए। वहीं, करीब चार प्लेयर्स का साई हॉस्टल और स्टेडियम में सेलेक्शन भी हुआ है। अगर इन्हें स्टार्टिग से ही बेहतर सुविधाएं मिलने लगे तो गोरखपुराइट्स मेडल्स की बरसात करेंगे।

इनका हुआ सेलेक्शन -

2016 -

ममता गौड़ - साई हॉस्टल भोपाल

2015 -

सादिक - साई मुंबई

वर्षा आर्या - केडी सिंह बाबू स्टेडियम

आदित्य तिवारी - साई हॉस्टल बरेली

रोहित श्रीवास्तव - साई हॉस्टल बरेली

आतिफ - स्पो‌र्ट्स कॉलेज लखनऊ

बॉक्स -

जूनियर इंडिया में दम दिखा रहे हैं सादिक

गोरखपुर के रहने वाले सादिक का इन दिनों जूनियर इंडिया के कैंप में प्रैक्टिस में लगे हुए हैं। वह दो साल बाद ऑर्गनाइज होने वाले व‌र्ल्डकप की तैयारियों में अभी से जुट गए हैं। गोरखपुर के इस्लामियां कॉलेज से कॅरियर की शुरुआत करने वाले सादिक का 2012 में लखनऊ स्पो‌र्ट्स हॉस्टल में सेलेक्शन हो गया। इसके बाद उन्होंने कड़ी मेहनत की और 2015 में स्पो‌र्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के मुंबई हॉस्टल में जगह बनाने मे कामयाबी पाई। 2020 तक वह साई मुंबई से हॉकी की बारीकियां सीखते रहे। इसके बाद अब वह जूनियर इंडिया कैंप में पसीना बहा रहे हैं और देश के साथ शहर का नाम भी रोशन कर रहे हैं।

शहर में हॉकी के टैलेंट की कमी नहीं है। मगर अब पेरेंट्स और स्टूडेंट्स इसमें कॅरियर बनाने से कतरा रहे हैं। सुविधाएं लगातार बढ़ रही है। थोड़ा मेहनत कर स्पो‌र्ट्स कॉलेज में सेलेक्शन हो सकता है। इसके बाद कॅरियर आसमान को छुएगा, लेकिन इसके लिए मेहनत करनी होगी। प्राइमरी लेवल पर स्कूलों में भी यह सुविधाएं होनी चाहिए, जिससे खिलाडि़यों की नई पौध निकले और शहर का नाम हो।

- प्रेम माया, अर्जुन अवार्डी, इंटरनेशनल हॉकी प्लेयर

गोरखपुर में स्कूलों से हॉकी बिल्कुल खत्म हो गई है। बस इस्लामियां कॉलेज में ही हॉकी के मैच होते हैं। इसमें भी होने वाले टूर्नामेंट में इक्का-दुक्का टीमें ही पार्टिसिपेट करती हैं। इसको बेहतर करने के लिए स्कूल लेवल पर हॉकी को फिर से स्टार्ट करना होगा और उन्हें बेहतर सुविधाएं मुहैया करानी होंगी।

- जिल्लुर्रहमान, इंटरनेशनल हॉकी प्लेयर

खेलों को लेकर सरकार की तरफ से कमेटी बनी है। हॉकी का मूल टर्फ है। इसके लिए मुख्यमंत्री ने सुविधाएं मुहैया कराने के लिए कहा है। सरकार सार्थक पहल कर रही है। खेलो इंडिया के तहत गोरखपुर यूनिवर्सिटी में भी टर्फ ग्राउंड बनाया जा रहा है। जल्द ही यहां के आम खिलाडि़यों को सुविधाएं मिलने लगेंगे। इसके अलावा और कहीं ग्राउंड मिल जाएगा, तो वहां भी टर्फ लगवाने का प्रयास किया जाएगा।

- धीरश सिंह हरीश, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, हॉकी यूपी

Posted By: Inextlive