-हर फरियादी को मिलेगी रिसीविंग, जान सकेंगे कौन है जांच अधिकारी

-पूर्व में जिला स्तर पर हुए इंतजाम, ज्यादा दिनों तक नहीं चली व्यवस्था

GORAKHPUR: पब्लिक की फरियाद थानों में गायब हो जाती है। शिकायत करने पर जहां-तहां एप्लीकेशन रखकर जिम्मेदार भूल जाते हैं। कई बार चक्कर लगाकर जब फरियादी हलकान हो जाते हैं तो वह शिकायत लेकर पुलिस अफसरों के पास पहुंचते हैं। हालत यह है कि अधिकारियों के सवाल-जवाब पर थानेदार तत्काल एप्लीकेशन न दिए जाने का हवाला देकर बात टाल जाते हैं। ऐसे में कार्रवाई के लिए पीडि़तों को सीनियर ऑफिसर्स दोबारा थानों पर भेज देते हैं। इससे जहां फरियादी का समय बर्बाद होता है। वहीं उसे समय से इंसाफ नहीं मिल पाता। लेकिन जल्द यह प्रॉब्लम साल्व हो जाएगी। डीजीपी ने फरियादियों को रिसीविंग देने का निर्देश दिया है। जिले में कुछ दिनों के भीतर नई व्यवस्था शुरू होने के आसार हैं। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि जो भी गाइडलाइंस जारी होती हैं। उनका पालन कराते हुए प्रभावी कार्रवाई की जाती है।

एप्लीकेशन दिए थे क्या, अच्छा दूसरा दे दीजिए

पुलिस अधिकारियों के पास पहुंचने वाले फरियादी अक्सर यह बताते हैं कि एप्लीकेशन देने पर कार्रवाई नहीं हुई। शिकायत सामने आने पर जब अधिकारी सवाल जवाब करते हैं। ऐसे में कई बार थानेदार यह बता देते हैं कि उनके वहां शिकायतकर्ता पहुंचा ही नहीं, इसलिए कोई कार्रवाई नहीं को सकी। अक्सर ऐसा होता है कि एप्लीकेशन को गुम कर पुलिस अपनी जिम्मेदारी से पीछा छुड़ा लेती है। उसके दोबारा पहुंचने पर मुंशी दीवान कहते हैं कि एप्लीकेशन दिए थे क्या, फिर थोड़ी देर तक कागजों में खोजबीन कर बता देते हैं कि कहीं मिस हो गया है। दूसरा एप्लीकेशन लिखकर दे दीजिए। कार्रवाई हो जाएगी। इसके लिए एक निश्चित फार्मेट पर स्लिप छपवाकर थानों पर रखी जाएगी। फरियादी के एप्लीकेशन देने पर उसे रिसीविंग पर्ची जारी की जाएगी।

पूर्व में हुए इंतजाम, नहीं चल सकी व्यवस्था

फरियादियों को राहत देने के लिए कई बार ऐसी व्यवस्था जिले में शुरू होकर बंद हो चुकी है। जिले की कमान संभालने वाले एसएसपी अपने स्तर से ही फरियादियों की सुविधा के लिए नए-नए प्रयोग करते हैं। पूर्व में जिले के भीतर फरियादियों को थानों पर पर्ची देने की व्यवस्था की गई थी। शिकायत लेकर पहुंचने वाले हर फरियादी की सूचना रजिस्टर में दर्ज करते हुए उसे लाल पर्ची दी जाती थी। उस पर्ची में मामले की जांच, निस्तारण करने वाले पुलिस कर्मचारी का नाम लिखा जाता था। यदि मामले की जांच दरोगा को सौंपी गई तो उनका नाम और मोबाइल नंबर लिखकर बताया जाता था कि जरूरत पर एसआई को फोन कर लीजिएगा। लेकिन बाद में यह व्यवस्था कुछ दिनों के बाद बंद हो गई। पूर्व एसएसपी डॉ। सुनील गुप्ता ने थानों पर रजिस्टर बनाकर उसमें फरियादियों की डिटेल नोट करने का निर्देश दिया था। साथ अपने दफ्तर में आने वाले हर एप्लीकेंट को प्रार्थना पत्र पर दिए गए निर्देश की फोटो कापी उपलब्ध कराते थे। इसका फायदा यह होता था कि दोबारा फरियादी के पहुंचने पर स्कैनिंग हो जाती थी। इससे थानेदारों का झूठ भी सामने आता रहता था।

यह जारी हुए निर्देश

एक पारदर्शी कमरा जिसमें बिजली, पंखा और पीने के पानी की व्यवस्था होगी।

ऐसे कमरे को आंगतुक कक्ष बनाया जाएगा। उसमें कंप्यूटर और मोबाइल भी रहेगा।

आगन्तुक/शिकायतकर्ता के बैठने की व्यवस्था होगी। कमरे में सीसीटीवी कैमरा लगाया जाएगा।

आगंतुकों को पानी पिलाने के लिए एक कर्मचारी तैनात होगा। शिकायत लिखने के लिए स्टेशनरी दी जाएगी।

शिकायतकर्ता- फरियादी का पूरा विवरण कंप्यूटर में फीड होगा। टोकन नंबर दिया जाएगा।

पीड़ित- फरियादी को उसके एप्लीकेशन की रिसीविंग रसीद दी जाएगी। उस पर टोकन नंबर होगा।

रिसेप्शन से ही थाना प्रभारी और बीट प्रभारी को मामले से अवगत कराया जाएगा।

यह है इंतजाम

रोजाना 150 से 100 शिकायतें सामने आती हैं।

थाना से लेकर एडीजी तक फरियादी पहुंचते हैं।

आईजीआरएस के जरिए भी लोग शिकायत करते हैं।

यूपी पुलिस की वेबसाइट, मोबाइल एप भी फरियादी यूज कर रहे।

पुलिस के व्हाट्सएप, ट्वीटर एकाउंट पर मिलने वाले शिकायतों पर भी कार्रवाई होती है।

वर्जन

शासन स्तर से जो भी गाइड लाइंस जारी होती हैं। उनका पालन कराया जाएगा। इस संबंध में कार्रवाई की जाएगी। इसमें किसी तरह की लापरवाही नहीं होने दी जाएगी।

जोगेंद्र कुमार, एसएसपी

Posted By: Inextlive