- आईसीएमआर की रिसर्च में सामने आई बात, मालन्यूट्रिशन का बेहतर हुआ है डाटा

- 1990 से 2017 के बीच कम हुआ है मालन्यूट्रिशन डेथ का आंकड़ा, लेकिन यूपी में अभी भी सही नहीं हैं हालात

GORAKHPUR: मालन्यूट्रिशन गवर्नमेंट के लिए सबसे बड़ी प्रॉब्लम रही है। लगातार बच्चे इसका शिकार होकर मौत के मुंह तक पहुंच रहे हैं। पांच साल से कम उम्र के बच्चों में इसका खतरा सबसे ज्यादा है। यही वजह है कि गवर्नमेंट भी खास बच्चों की सेहत का ख्याल रखते हुए सितंबर को बतौर पोषण माह मना रही है। इसमें डब्ल्यूएचओ भी उनके साथ खड़ा हुआ है। लेकिन इंडियन स्टेट लेवल बर्डन इनिशिएटिव के तहत द लैनसेट चाइल्ड एंड एडोलसेंट हेल्थ की स्टडी पर नजर डालें तो अब मालन्यूट्रिशन का ग्राफ नीचे आने लगा है, जबकि लोगों में ओबेसिटी बढ़ रही है। क्990 से ख्0क्7 के बीच मालन्यूट्रिशन से डेथ का आंकड़ा भी काफी नीचे आया है। हालांकि अभी रिस्क कम नहीं हुआ है, लेकिन जो रिजल्ट सामने आए हैं, वह भी राहत देने वाले नहीं हैं।

क्ख् परसेंट बच्चे ओवरवेट

आईसीएमआर की स्टडी में यह बात सामने आई है कि ख्0क्7 में चाइल्ड ओवरवेट इनक्रीज का डाटा क्ख् परसेंट इनक्रीज हुआ है। यह डेवलप्ड स्टेट में ज्यादा है, जबकि बाकी स्टेट में भी बढ़त दर्ज की गई है। एनुअल रेट की बात करें तो ऑन एवरेज करीब पांच परसेंट केस इनक्रीज हुए हैं। इसमें मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा 7.ख् परसेंट, जबकि मिजोरम में ख्.भ् परसेंट बच्चे ओबेसिटी का शिकार हैं। इसमें चौंकाने वाला मामला यह है कि बच्चों के लिए ब्रेस्ट फीडिंग का आंकड़ा जहां दूसरे शहरों में बढ़ा है, वहीं उत्तर प्रदेश में थोड़ी गिरावट दर्ज की गई है। इसकी वजह से यूपी में लो बर्थ वेट का आंकड़ा ख्ब् परसेंट है।

गोरखपुर में फ्8 परसेंट ही बे्रस्ट फीडिंग

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-ब् के आंकड़े के मुताबिक प्रदेश में एक घंटे के अंदर फीडिंग कराने की दर अभी महज ख्भ्.ख् परसेंट है, जो काफी कम है। इसमें भी गोरखपुर के आंकड़ों की बात की जाए, तो यह भी करीब फ्8 परसेंट ही है। नवजात बच्चों को पहले घंटे में मां का दूध पिलाने से कई तरह की बीमारियों से बचाया जा सकता है। खास तौर पर इससे शुरुआती दिनों में होने वाले दस्त और निमोनिया से काफी हद तक राहत मिल जाती है। मगर यूपी में यह आंकड़ा ब्क्.म् फीसद है, जो कि अन्य प्रदेशों की तुलना में काफी कम है। गोरखपुर की बात करें तो छह माह तक केवल फीडिंग की दर भ्म्.म् फीसद है। लैनसेट स्टडी मैटर्नल एंड चाइल्ड न्यूट्रिक्शन सीरीज ख्008 के मुताबिक छह माह तक शिशु को सिर्फ स्तनपान कराने से दस्त और निमोनिया के खतरे में करीब क्क् फीसद और क्भ् फीसद कमी लाई जा सकती है।

Posted By: Inextlive