- कोरोना की सेकेंड वेव में डी-डाइमर वैरिएंट ने मचाई थी तबाही

GORAKHPUR:

'कोरोना संक्रमण की सेकेंड वेव में मौतों का आंकड़ा यू ही नहीं बढ़ा। कोरोना वायरस के नए म्यूटेंट ने ब्लड क्लॉटिंग में तेजी दिखाई तो संक्रमण को भी तेजी से बढ़ाया। जिन मरीजों में क्लॉटिंग और संक्रमण की दर देर से पता चली, उनकी हालत गंभीर होती गई। खून की जांच से जिनके बारे में पहले जानकारी मिल गई, उन्हें समय से उपचार मुहैया कराकर बचा लिया गया। दूसरी लहर में इस म्यूटेंट ने भारी तबाही मचाई थी। यह हम नहीं बल्कि माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ। अमरेश सिंह कह रहे हैं। एचओडी की मानें तो अभी लोगों को सजग रहने की जरूरत है। क्योंकि जिस तरह से पब्लिक प्लेस पर लोग बेपरवाह नजर आ रहे हैं। उन्हें कोरोनो की सेकेंड वेव को याद रखना चाहिए।

395 संक्रमितों की केस स्टडी से हुआ खुलासा

कोरोना वार्ड में भर्ती 395 संक्रमितों की केस स्टडी में यह रिजल्ट सामने आया है। संक्रमितों में 73 की मौत हुई, उन सभी की सीटी वैल्यू 25 से कम यानी संक्रमण अधिक था। इनका सीआरपी, सीरम फेरिटिन और सीरम एलडीएच काफी बढ़ा था। 60 मरीजों में मौत का कारण डी-डाइमर और सीआरपी लेवल बढ़ना बना। 13 मरीजों की मौत की वजह पहले से कोई न कोई गंभीर बीमारी होना रही। जिन मरीजों की सीटी वैल्यू 15 से कम रही, उनकी मौत दो-तीन दिन में ही हो गई। बीआरडी कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के स्टडी में यह तथ्य सामने आए। इसके बाद से यह सलाह दी गई है कि कोरोना संक्रमण की पुष्टि के लिए होने वाली रीयल टाइम पालीमरेज चेन रिएक्शन (आरटीपीसीआर) जांच के साथ ही सी-रियेक्टिव प्रोटीन (सीआरपी), सीरम फेरिटिन, डी-डाइमर (ब्लड क्लाटिंग की स्थिति) व सीरम लैक्टोज डिहाइड्रोजिनेज (एलडीएच) जानने के लिए ब्लड टेस्ट कराया जाए। 9 दिन बाद दोबारा जांच कराई जाए।

कोरोना से लड़ने के लिए आरटीपीसीआर के साथ ब्लड टेस्ट जरूरी

माइक्रोबायोलोजिस्ट डॉ। अमरेश कुमार सिंह बताते हैं कि कोरोनो की सेकेंड वेव में की गई स्टडी में 10 संक्रमित ऐसे थे, जिनका सीटी वैल्यू 25 से कम थी। ब्लड टेस्ट से समय पर सारे कारक पता चल गए। इलाज से इंफेक्शन व डी-डाइमर वैल्यू नियंत्रित रखकर सभी को बचा लिया गया। शेष मरीजों में सीटी वैल्यू 25 से अधिक था। इनके इलाज में सामान्य प्रोटोकॉल अपनाया गया। इस स्टडी को नागपुर के इंटरनेशनल जर्नल ऑफ बायोमेडिकल एंड एडवांस रिसर्च ने जून 2021 के अंक में प्रकाशित किया है।

लक्षण दिखने पर एडमिट होना है जरूरी

माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट के मुताबिक जिन संक्रमित मरीजों का ब्लड टेस्ट नहीं हुआ, उनमें संक्रमण के प्रमुख कारकों की स्थिति पता नहीं चली। संक्रमण बढ़ा, आक्सीजन लेवल 70 से 60 के बीच चढ़ता-गिरता रहा। ऐसे मरीज जब अस्पताल लाए गए, संक्रमण काफी फैल चुका था। वहीं, आरटीपीसीआर जांच के साथ ही ब्लड टेस्ट होने से सभी कारक की सही जानकारी मिलेगी और उसी अनुरूप इलाज होगा। एम्स और संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान ने आरटी-पीसीआर संग ब्लड टेस्ट को मैनेजमेंट प्रोटोकॉल में शामिल किया है। इसीलिए लक्षण दिखे तो लोगों को अस्पताल में भर्ती हो जाना चाहिए।

कम सीटी वैल्यू यानी अधिक वायरस लोड

आरटी-पीसीआर प्रोसेज से सैंपल की टेस्टिंग अधिकतम 35 फेज में होती है। इतने में वायरस नहीं मिला तो निगेटिव मान लिया जाता है। 15 सीटी वैल्यू का मतलब है कि 15वें फेज में ही वायरस मिल गया। यानी संक्रमण काफी अधिक है।

न्यूमेरिक्स इंफो

395 संक्रमितों की केस हिस्ट्री पर स्टडी।

73 मृत संक्रमितों की केस हिस्ट्री भी शामिल।

25 से कम सीटी वैल्यू और अधिक सीआरपी वाले मरीजों की हुई मौत।

15 से कम सीटी वैल्यू वाले मरीज दो-तीन दिन ही रह पाए जीवित।

इन प्वाइंट्स पर हुई जांच

- जिन मरीजों की मौत हुई, उनकी भौगोलिक और आर्थिक स्थिति।

- लक्षण दिखने के कितने दिन बाद एडमिट हुए।

- वेजेटेरियन थे या नॉन वेजेटेरियन।

- शराब, सिगरेट या अन्य नशे की जानकारी।

वर्जन

यह स्टडी मौतों की रोकथाम में मददगार साबित होगी। इसमें कई तथ्य सामने निकल आए, लेकिन हमें सावधान रहना होगा। संभावित थर्ड वेव को लेकर अलर्ट रहने की जरूरत है।

डॉ। अमरेश सिंह, एचओडी, माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट, बीआरडी मेडिकल कॉलेज

Posted By: Inextlive