- लगातार घट रहा है जिले में वॉटर का लेवल, पानी की कमी होने से होने लगी है परेशानी

- वहीं आबादी के साथ ही बढ़ रही है मोटर और ट्यूबवेल की तादाद

- पानी में फ्लोराइड और आरसेनिक की बढ़ रही मात्रा से ड्रिंकिंग वॉटर क्वालिटी भी हो रही है अफेक्टेड

GORAKHPUR: पानी की कीमत उस प्यासे से पूछो जिसे तपती धूप में पानी की एक बूंद न नसीब हुई हो। हमारे लिए पानी की अहमियत इसलिए नहीं है, क्योंकि यह हमें बगैर किसी मेहनत और दिक्कत के आसानी से मिल जाता है। कुछ प्रदेश ऐसे भी हैं, जहां पानी की एक-एक बूंद के लिए कत्ल हो जाया करते हैं। देश के कई इलाकों में कई बार गर्मी के सीजन में पानी की जबरदस्त किल्लत हो जाती है। गोरखपुर शहर की बात करें तो यहां भी लगातार वॉटर लेवल गिर रहा है, वहीं जो पीने के लिए पानी इस्तेमाल किया जाता है, वह भी धीरे-धीरे पॉल्युट होता जा रहा है। अगर हम अब भी नहीं चेते और पानी की बचत नहीं की तो वह दिन दूर नहीं है जब हमें पीने के पानी की एक-एक बूंद के लिए जंग लड़नी पड़ेगी।

लगातार यूज हो रहा है ग्राउंड वाटर

पानी की बात करें तो पीने के लिए ग्राउंड वाटर ही सेफ है, लेकिन जिस तरह से इसका यूज हो रहा है। इसकी क्राइसिस होना भी तय है। टोटल वॉटर का 98 परसेंट पानी तालाब, झील और पोखरों में ही है, बाकी का 2 परसेंट वॉटर ही सर्कुलेट होता है। डॉ। गोविंद पांडेय ने बताया कि ग्राउंड की पहली और दूसरी सतह में जो भूमिगत जल है। इसका 50 परसेंट से भी कम इस्तेमाल किया जाना चाहिए। मगर एक सर्वे के दौरान जब सिटी का ग्राउंड वॉटर डेवलपमेंट रेट निकाला गया तो यह 70 परसेंट के आसपास पाया गया, जो सामान्य से 20 परसेंट अधिक है।

शुद्ध पानी की जबरदस्त कमी

शहर में शुद्ध पानी की भीषण कमी है। जलकल विभाग के आंकड़ों पर नजर डाले तो एक आदमी को रोजाना 3.50 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। ऐसे में शहर की 13 लाख की आबादी को रोजाना 45.5 लाख लीटर प्योर वॉटर की जरूरत पड़ेगी, जबकि जलकल विभाग डेली 30 लाख लीटर पानी की सप्लाई कर रहा है। इस तरह शहर में डेली 15 लाख लीटर पानी की कमी हो रही है। इसकी पूर्ति लोग खरीदकर या अशुद्ध पानी से पूरा कर रहे हैं। जलकल विभाग का यह भी कहना है कि हम लोगों के 30 प्रतिशत पाइप लाइन 1990 के लगभग बिछाई गई है। जो अक्सर टूट जाती है। जिसके प्रति दिन 25 से 30 प्रतिशत पानी सड़कों और नालियों में बहकर बर्बाद हो जाता है।

कुछ जगह पीने लायक नहीं है पानी

गोरखपुर जिले की बात करें तो यहां का पानी पीने लायक भी नहीं है। आर्सेनिक फ्लोराइड की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है, जिससे पानी दूषित हो रहा है। एमएमएमयूटी के स्टूडेंट अंकित शर्मा ने फ्लोराइड पर और संजय कुमार ने आर्सेनिक पर जिले से सैंपल लेकर वॉटर क्वालिटी जांच की तो इस दौरान 12.9 फीसद सैंपल में फ्लोराइड और 6.45 फीसद सैंपल में आरसेनिक की मात्रा अधिक पाई गई। वहीं, टोटल सैंपल में 14.1 फीसद फ्लोराइड और 29.84 फीसद आरसेनिक मानक के बराबर पाए गए हैं। इससे साफ है कि करीब 25 फीसद सैंपल में फ्लोराइड और 35 फीसद सैंपल में आरसेनिक खतरे के निशान या उससे ऊपर है। यह पानी पीने लायक नहीं कहा जा सकता है।

फ्लोराइड का कॉन्संट्रेशन

ब्लॉक सैंपल 1 एमजी से कम 1 एमजी 1 एमजी से ज्यादा

बड़हलगंज 14 07 02 05

ब्रम्हपुर 23 23 00 00

कैंपियरगंज 40 23 17 00

जंगल कौडि़या 18 09 02 07

कौड़ीराम 16 08 06 02

खोराबार 20 20 00 00

पिपरौली 18 00 02 16

सहजनवां 10 07 02 01

सरदार नगर 19 19 00 00

गोरखपुर शहर 70 65 04 01

टोटल 248 181 35 32

परसेंटेज 100 73 14.1 12.9

आरसेनिक का कॉन्संट्रेशन

ब्लॉक सैंपल 10पीपीबी से कम 10 से 50पीपीबी 50पीपीबी से ज्यादा

बड़हलगंज 14 02 11 01

ब्रम्हपुर 23 14 05 04

कैंपियरगंज 40 26 11 03

जंगल कौडि़या 18 08 10 00

कौड़ीराम 16 12 04 00

खोराबार 20 05 10 05

पिपरौली 18 01 14 03

सहजनवां 10 10 00 00

सरदार नगर 19 18 01 00

गोरखपुर शहर 70 62 08 00

टोटल 248 158 74 16

परसेंटेज 100 63.71 29.84 6.45

वॉटर क्वालिटी के लिए मानक

फ्लोराइड - 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर

आर्सेनिक - 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर

ज्यादा होने पर क्या हो सकता है नुकसान

फ्लोराइड - फ्लोरोसिस

आर्सेनिक - पानी को जहरीला बनाता है।

यहां बर्बाद हो रहा है पानी -

- ब्रशिंग

- शेविंग

- टॉयलेट

- नहाने

- कपड़े धोने

- गार्डनिंग

- लीकेज

- आरओ

- धुलाई

ऐसे भी हो सकता है बचाव

- वॉटर की वेस्टेज को कम करने के लिए अवेयरनेस प्रोग्राम चलाए जाएं

- घर-घर जाकर, नुक्कड़ नाटक, एड, पोस्टर और बैनर के थ्रू पानी के वेस्टेज को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

- पानी को री-साइकिल कर इसके वेस्टेज को और कम किया जा सकता है।

- रीसाइकिल पानी का इस्तेमाल गार्डन में पौधों को पानी देने के लिए इसका यूज कर सकते हैं। ग्रे वॉटर, जिसमें टॉयलेट वॉटर नहीं आता, उनको दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। टॉयलेट वॉटर में ऑर्गेनिक पॉल्युशन होता है, इसलिए इसको रीसाइकिल कर यूज नहीं किया जा सकता।

- घर में पानी के लिए जगह-जगह टैप और फिटिंग्स लगी रहती हैं। इनसे पहले काफी पानी वेस्ट होता था, लेकिन इन दिनों कंपनीज ने इनकी डिजाइन काफी चेंज कर दी है, जिससे कि 25 परसेंट तक पानी के वेस्टेज को कम किया जा सकता है।

- पानी वेस्टेज का एक बड़ा रीजन लीकेज भी होता है। अगर एक सेकेंड में एक ड्रॉप भी वेस्ट हो रही है, तो 2700 गैलन वॉटर पर इयर वेस्ट हो रहा है। टैप के वॉशर को रिपेयर कराकर इसे बचाया जा सकता है।

कुछ इस तरह से गिरा वाटर लेवल

एरिया वाटर लेवल (2010) वाटर लेवल (2015)

रुस्तमपुर 40 80

रेती 30 100

सूरजकुंड 30 100

गोरखनाथ 35 120

राप्तीनगर 40 150

पादरी बाजार 45 60

बिछिया 25 25

मोहद्दीपुर 20 20

कूड़ाघाट 25 25

बक्शीपुर 30 40

पिछले दस साल में लगातार गिरा है जल स्तर

वर्ष जल स्तर

बडे़ ट्यूबवेल मिनी ट्यूबवेल इंडियामार्का हैंडपंप

2007 400 फीट 350 फीट 110 फीट

2008 400 फीट 360 फीट 110 फीट

2009 410 फीट 370 फीट 110 फीट

2010 420 फीट 380 फीट 110 फीट

2011 450 फीट 380 फीट 110 फीट

2012 480 फीट 380 फीट 110 फीट

2013 500 फीट 390 फीट 110 फीट

2014 550 फीट 400 फीट 110 फीट

2015 600 फीट 450 फीट 110 फीट

2016 620 फीट 480 फीट 110 फीट

नोट- यह आंकड़ें शहर में पानी सप्लाई व्यवस्था को देखने वाली संस्था जलकल की है। 2017 में अभी तक एक भी ट्यूबवेल लगे तो नहीं है, लेकिन जिन ट्यूबवेलों की स्वीकृत मिली है, उनका लेवल 650 फीट से अधिक का है।

वॉटर लेवल लगातार गिर रहा है। पीने के लायक पानी इस वक्त 650 से ज्यादा फीट नीचे हैं। यही पर ट्यूबवेल के लिए पर्याप्त पानी मिल रहा है। वहीं मिनीट्यूबवेल भी करीब 500 फीट पर लगाया जा रहा है। इंडिया मार्का हैंडपंप को रीबोर करने के लिए सरकार की ओर से मानक 110 फीट तय है, इसमें कोई बदलाव नहीं किया जाता है।

- अमरनाथ श्रीवास्तव, जीएम, जलकल

पीने के पानी में फ्लोराइड और आर्सेनिक की मात्रा लगातार बढ़ रही है। एमएमएमयूटी के स्टूडेंट्स ने जो सैंपलिंग की थी, इसमें कई इलाकों में आर्सेनिक और फ्लोराइड मानक से ऊपर पाए गए थे, ऐसे पानी पीने के लायक नहीं होते हैं और इससे कई तरह की बीमारी हो सकती है।

- डॉ। गोविंद पांडेय, एनवायर्नमेंटलिस्ट

Posted By: Inextlive