-कलेक्ट्रेट कैंपस में शहीद पार्क उपेक्षा के चलते बदहाली का है शिकार

-शहीद के नाम का बोर्ड तक नहीं लगवा सका है प्रशासन

-शहीद के नाम से बने चबूतरे के पास पार्किंग, नैचुरल कॉल भी करते हैं लोग

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GORAKHPUR: एक तरफ चौरी-चौरा में आजादी के शहीदों के सम्मान की तैयारी चल रही है। चौरीचौरा के शताब्दी वर्ष में सभी शहीद स्थलों की साफ-सफाई की बात कही गई है। वहीं दूसरी तरफ एक शहीद सम्मान के लिए तरस रहा है। ऐसा भी नहीं है कि वह शहीद शहर के किसी कोने-अंतरे में है। उस शहीद की प्रतिमा ठीक वहीं लगी है, जहां सरकार का पूरा ताना-बाना बैठता है। जहां से जिले के मुखिया हर रोज निकलते हैं। उसी कलेक्ट्रेट कैंपस में है, जहां से जिले के विकास का खाका खींचा जाता है। कितने ही अधिकारी और कर्मचारी यहां से हर रोज गुजरते हैं। लेकिन किसी अधिकारी के पास इतनी फुरसत नहीं कि कभी कार की विंडो से एक नजर इस शहीद उद्यान पर भी डाल दे।

शहीद मेजर के नाम से नामकरण

कलेक्ट्रेट कैंपस में डीएम ऑफिस के ठीक सामने स्थित है शहीद उद्यान। प्रयागराज के रहने वाले मेजर उदय सिंह 29 नवंबर 2003 को जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले में शहीद हो गए थे। उनके सम्मान में डीएम आफिस के सामने बाग में शहीद स्थल बनाकर पार्क को शहीद उद्यान का दर्जा दिया गया। यहां पहले एक बोर्ड लगा था। इस बोर्ड पर शहीद के बारे में जानकारी लिखी गई थी। कुछ लोगों ने बताया कि वह बोर्ड जंग लगने से खराब हो गया। इसके बाद किसी ने उसके रेनोवेशन की जहमत तक नहीं उठाई। इस चक्कर में सूचना पट ही गायब हो गया।

बदहाली का शिकार

आज की तारीख में यह शहीद उद्यान पार्किंग में तब्दील हो चुका है। कलेक्ट्रेट से जुड़े लोगों ने बताया कि 2011 में यहां पार्किग बनाई गई थी। जब कुछ लोगों ने इसका विरोध किया तो आधे हिस्से को शहीद उद्यान के तौर पर आरक्षित कर दिया गया था। तत्कालीन डीएम सहित अन्य अधिकारियों ने यहां शहीद के सम्मान को लेकर आयोजन की बात कही। लेकिन उनके तबादले के बाद यह शहीद उद्यान दुर्दशा का शिकार होता चला गया।

नैचुरल कॉल करते हैं लोग

शहीद उद्यान में एक चबूतरा बना हुआ है। बगल में ही ई-डिस्ट्रिक्ट का ऑफिस भी है। पहले जब कलेक्ट्रेट में धरना-प्रदर्शन होता था तो लोग शहीद पार्क में जुटते थे। लेकिन धरना-प्रदर्शन के लिए नगर निगम के रानी लक्ष्मीबाई पार्क में जगह दी गई है। इसके बाद शहीद उद्यान में गाडि़यां खड़ी होने लगी हैं। ऐसे में इस जगह पर दीवारों के किनारे और पेड़ों के पीछे लोग नेचुरल कॉल करते हैं।

इन अफसरों का है यहां ऑफिस

डीएम

एडीएम

सिटी मजिस्ट्रेट

एसएसपी

एसपी सिटी

एसपी साउथ और नॉर्थ

सीओ कैंपियरगंज

बॉक्स

कर्मचारियों को भी नहीं पता

शहीद मेजर उदय सिंह के बारे में पता करने कलेक्ट्रेट के कर्मचारियों से बातचीत की गई। लेकिन कर्मचारियों ने कोई भी जानकारी होने से इंकार किया। कुछ कर्मचारियों ने कहा कि पुराने लोग ही इसके बारे में बता सकते हैं।

जानिए कौन हैं मेजर उदय सिंह

लोकल लेवल पर जानकारी न मिलने के बाद मेजर उदय सिंह के बारे में इंटरनेट पर काफी खंगाला गया। इसके बाद दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट को यह जानकारियां मिलीं

-सात अक्टूबर 1974 को प्रयागराज में पैदा हुए मेजर उदय सिंह पैरा कमांडो एक सैन्य परिवार से जुड़े हुए थे।

-मेजर उदय सिंह के पिता कर्नल केके सिंह भी एक जांबाज थे। मेजर भी अपने पिता की तरह ही बनना चाहते थे।

-मेजर उदय की शुरुआती पढ़ाई सेंट पैट्रिक सहित कई स्कूलों में हुई। इसके बाद उन्होंने दिल्ली के देशबंधु कॉलेज से राजनीति विज्ञान में ऑनर्स की डिग्री ली।

मेजर उदय सिंह के माता-पिता इस वक्त नोएडा में रहते हैं। दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट ने मेजर उदय सिंह के पिता कर्नल केके सिंह से मोबाइल पर बात की। उन्होंने बताया कि वह लोग मूल रूप से खजनी तहसील के मंझरिया के रहने वाले हैं। उन्होंने बताया कि मेजर उदय सिंह आखिरी बार 2003 में अपने गांव आए थे। उस वक्त मेजर उदय सिंह के दादा महिपाल सिंह जिंदा थे और वो उन्हीं के साथ आए थे। इसी साल मेजर शहीद भी हुए थे।

सीएम से है आस

मेजर उदय सिंह के पिता ने बताया कि तब गोरखपुर सांसद योगी जी ने उनके गांव में स्मारक बनवाने में काफी मदद की थी। उन्होंने उम्मीद जताई कि मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी जी मेजर उदय सिंह के स्मारक को गुमनाम नहीं रहने देंगे, बल्कि उसे और भव्य रूप देंगे।

शहीद उद्यान के संबंध में जानकारी ली जाएगी। इस जगह को सुरक्षित और संरक्षित किया जाएगा। पार्क की देख-रेख की जिम्मेदारी किसकी है, उससे भी सवाल-जवाब किया जाएगा।

-अभिनव रंजन श्रीवास्तव, सिटी मजिस्ट्रेट

-सेना में आने के बाद मेजर उदय ने 1997 से 1999 तक पूर्वोत्तर में और शेष अवधि के लिए जम्मू और कश्मीर (जम्मू-कश्मीर) में सेवा दी।

-नवंबर 2003 मेजर उदय सिंह की यूनिट को एंटी टेररिस्ट मिशन के लिए जम्मू-कश्मीर में तैनात किया गया।

-29 नवंबर 2003 टेररिस्ट्स के खुफिया ठिकानों को नष्ट करने की जिम्मेदारी उनकी टीम को सौंपी गई।

-जंगलों में मेजर ने अपनी टीम का नेतृत्व करते हुए घात लगा दिया। तभी उनका टेररिस्ट्स से सामना हुआ।

-संघर्ष के दौरान मेजर उदय सिंह ने एक आतंकवादी को मार डाला। दूसरे को उन्होंने घायल कर दिया।

-उनके उत्कृष्ट साहस, नेतृत्व और पराक्रम पर उनको शौर्य चक्र दिया गया था।

डायरी में लिखी हैं यह बातें

इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार मेजर ने अपनी डायरी भी लिखी थी। उन्होंने लिखा है कि मैं अपना जीवन विशेष बलों को समर्पित करता हूं। मैं अपने देश, परिवार, दोस्तों और खुद को गर्व करने का वादा करता हूं।

2003 में आखिरी बार गांव आए थे मेजर

Posted By: Inextlive