- 1977 से दे रहे हैं अग्नि परीक्षा, कभी नहीं छोड़ा संगठन

- भाजपा के जीत का खाता खोलने वालों में से एक थे शिव प्रताप शुक्ल

GORAKHPUR:

ईमानदारी और संगठन के प्रति समर्पण को लेकर शिव प्रताप शुक्ल को मिला इनाम प्रदेश के कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाने का कार्य किया है। 14 साल से पद से दूर रखकर वनवास की जिंदगी काट रहे पूर्व कैबिनेट मंत्री शिव प्रताप शुक्ल को आखिर भाजपा ने राज्य सभा भेज कर यह घोषित कर दिया कि संगठन के प्रति इमानदारी बेकार नहीं जाएगी। सुबह शुरू हुई चुनाव और शाम को हुई गिनती की सूचना जैसे ही गोरखपुर पहुंची भाजपा कार्यालय से लेकर बेतियाहाता आवास तक उनके समर्थकों और कार्यकर्ताओं का जमावड़ा लग गया। बेतियाहाता में समर्थकों और कार्यकर्ताओं ने अबीर-गुलाल लगाकर मिठाई बांटकर खुशियां मनाई। लोगों को कहना है कि 2002 में मंदिर के विद्रोह के बाद उनको वनवास मिला था और अब 14 साल बाद 2016 में समाप्त हुआ।

कहीं नहीं छोड़ा संगठन का साथ

शिव प्रताप शुक्ल के बारे में लोगों का कहना है कि वह कभी भी संगठन का विरोध नहीं किया और न ही कभी संगठन के लाइन के विरोध में गए। सत्तर के दशक में शिवप्रताप शुक्ल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अनुवांशिक संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े। संघ परिवार से जुड़े हुए लोगों का कहना है कि 1977 में विद्यार्थी परिषद ने छात्रसंघ चुनाव न लड़ने का फैसला लिया था। उस समय बहुत बड़ी संख्या में गोरखपुर के कार्यकर्ता और छात्र नेता विद्यार्थी परिषद का साथ छोड़ दिया, लेकिन शिव प्रताप शुक्ल जी संगठन से जुड़े रहे। बाद में जब विद्यार्थी परिषद छात्र संघ चुनाव लड़ने की घोषणा की तो उनको विद्यार्थी परिषद ने प्रत्याशी बनाया, लेकिन उनको सफलता नहीं मिली और वह विद्यार्थी परिषद के संगठन मंत्री के रूप में पूर्णकालिक के रूप में कार्य करने लगे। 1990 में भाजपा बनी और उसके बाद संगठन ने 1989 में गोरखपुर सदर से प्रत्याशी बनाया। इसके पहले जितने भी चुनाव हुए थे, उसमें एक भी सीट पर भाजपा को जीत नहीं मिली थी। 1989 में पहली बार भाजपा को चार सीटें मिली। जिसमें शिवप्रताप शुक्ल भी थे। उसके बाद जब भाजपा की सरकार बनी तो वह मंत्री बनाए गए। 1989 से लेकर 2002 तक जब-जब भी भाजपा की सरकार बनी, शिवप्रताप शुक्ल मंत्री बनाए गए।

और छोड़ दिया शहर

2002 का विधान सभा चुनाव प्रदेश के सबसे रोचक चुनावों में से एक था। प्रदेश की यह एक ऐसी सीट थी, जिस पर भाजपा के विरोध में कोई और नहीं बल्कि हिन्दू महासभा के प्रत्याशी और मंदिर के समर्थक डॉ। राधामोहन दास अग्रवाल मैदान में थे। शिवप्रताप शुक्ल को जिताने के लिए भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के भी नेता लगे थे, लेकिन शिव प्रताप शुक्ल को हार का सामना करना पड़ गया। गोरखपुर से लगातार चुनाव जितने वाले शिवप्रताप शुक्ल हारने के बाद गोरखपुर छोड़ दिया और प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हो गए। उनको और भाजपा को जानने वालों को कहना है कि मंदिर के विरोध करने के बाद वह गोरखपुर आते तो अपने घर, निजी कार्यक्रम या पार्टी के कार्यक्रम तक सीमित रखने लगे थे, जबकि प्रदेश के अन्य जगहों पर वह अपने पार्टी के लिए खुलकर कार्य करते रहे। हालांकि इस बीच जब भी विधान सभा या विधान परिषद का चुनाव हुआ तो लोग यह कायस लगाते रहे कि शायद उनको प्रत्याशी बनाया जाएगा, लेकिन कभी उनको पार्टी केवल संगठन के कार्यो में उपयोग की।

Posted By: Inextlive