- शहर में खुलेआम घूम रहे हैं स्वाइन फ्लू के वेक्टर

- वहीं भरे पड़े हैं गंदगी के अंबार

- संक्रामक बीमारी होने की वजह से बढ़ जाती है संख्या

GORAKHPUR: शहर में हर साल स्वाइन फ्लू की दस्तक होती है। लेकिन तैयारियों की बात की जाए तो 'जब आग लगती है, तब लोग इसे बुझाने का इंतजाम देखते हैं.' लास्ट इयर बड़ी तादाद में स्वाइन फ्लू के मरीज पाए गए थे, जिनके लिए अलग से वार्ड का इंतजाम किया गया। मगर इस बार स्वाइन फ्लू के वायरस का फेवरेबल मौसम आने के बाद भी अब तक इसकी तैयारियां नदारद हैं। स्वास्थ्य विभाग ने तो इंसेफेलाइटिस और संचारी रोग से निपटने के लिए अवेयरनेस प्रोग्राम चलाया है, लेकिन इसमें निगम ने अब तक कोई ठोस पहल नहीं की है। हालत यह है कि शहर के कुछ मोहल्लों में स्वाइन फ्लू के खतरनाक वायरस साथ लेकर चलने वाले सुअरों से लोग घिरे हुए हैं। मगर इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है।

रिकॉर्ड में 1270 'यमदूत'

स्वाइन फ्लू वायरस के इंटरमीडिएट वेक्टर यानि सुअर इनफ्लूएंजा जैसे सिम्प्टम रखने वाले इन वायरसेज को ह्यूमन बॉडी में आसानी से पहुंचा रहे हैं, जिसकी वजह से स्वाइन फ्लू जैसी खतरनाक बीमारी पांव पसारने लगी है। सुअर के साथ ही काली मिट्टी और गंदगी में पाए जाने वाले जानवर भी इसके वेक्टर के तौर पर काम करते हैं। इन सूअरों की तादाद शहर के रिकॉर्ड में 1270 थी, जोकि शहर के 65 बाड़ों में पाले गए थे। मगर अब इनकी तादाद कई गुना बढ़ चुकी है। यह हाइवे, मार्केट, घनी आबादी के साथ ही सिटी के नए डेवलप हुए एरियाज में मौजूद हैं। सबसे ज्यादा सुअरों की तादाद बसंतपुर और जटेपुर उत्तरी इलाके में है।

किसी उम्र में हो सकता है स्वाइन फ्लू

आमतौर पर यह सुनने में आता है कि बड़ी उम्र के लोगों को ही स्वाइन फ्लू का वायरस अटैक कर रहा है, लेकिन यह वायरस किसी भी उम्र के लोगों को अपना शिकार बना सकता है। सबसे ज्यादा खतरा 10 साल या उससे कम उम्र के बच्चों को है, जो अगर इनकी चपेट में आ जाते हैं तो इम्युनिटी पॉवर कम होने की वजह से इनका वार नहीं सह पाते और इसकी वजह से इनकी मौत तक हो जाती है।

बॉक्स

सुअर की आंत में पनपता है वायरस

एक्सप‌र्ट्स की मानें तो लोगों को मौत के मुहाने पर पहुंचाने वाला यह वायरस सुअर की इंटेस्टाइन में पनपता है। इसके बाद जब सुअर काली मिट्टी या कीचड़ में बैठता है तो वहीं अपना मल त्याग करता है, इसके साथ ही यह वायरस भी बाहर आ जाता है। इसके बाद जब वेस्ट सूख जाता है तो यह बायोडिग्रेड होने लगता है, जिससे इसके वायरस हवा में फैलते हैं और आसपास के लोगों तक इसका असर फैलने लगता है। वहीं सुअरों को भी यह वायरस जकड़ लेता है। इसके बाद यह जहां खांसते और छींकते हैं, वायरस आसपास मौजूद लोगों को अपना शिकार बनाता है। यह संक्रामक रोग है, इसलिए इसका संक्रमण फैलता ही जाता है।

यह हैं सिम्प्टम्स

- नाक का लगातार बहना, छींक आना

- कफ, कोल्ड और लगातार खांसी

- मांसपेशियों में दर्द या अकड़न

- सिर में भयानक दर्द

- नींद न आना, ज्यादा थकान

- दवा खाने पर भी बुखार का लगातार बढ़ना

- गले में खराश का लगातार बढ़ते जाना

ऐसे फैलता है स्वाइन फ्लू

- स्वाइन फ्लू का वायरस हवा में ट्रांसफर होता है

- खांसने

- छींकने

- थूकने

- पेशाब

- टॉयलेट

प्रिकॉशन

- सुअर जहां बैठे वहां मिट्टी का तेल डाल दें

- तेल न हो तो चूने का छिड़काव करें

- फिनायल की गोली या लिक्विड भी डाला जा सकता है।

- पालने वाले सुअर को बंद रखें।

- जहां आसपास सुअर रह रहे हैं वहां हाईजीन मेनटेन रखी जाए।

होने के बाद करें

- प्रिकॉशन ही इससे बचने का सबसे बड़ा उपाय है।

- जिसको स्वाइन फ्लू हुआ है वह नाक और मुंह पर कपड़ा बांधें।

- अपने यूज की सारी चीजें अलग कर लें

- साबुन, तौलिया, ब्रश, गद्दा, रजाई दूसरे का न दें।

- यह बीमारी अपने से क्योर हो जाती है।

- शुरुआत में पैरासीटमॉल जैसी दवाएं बुखार कम करने के लिए दी जाती हैं।

- अगर दो हफ्ते तक प्रॉब्लम खत्म न हो, तो डॉक्टर को दिखाकर सलाह लें

- आराम करना

- खूब पानी पीना

- शरीर में पानी की कमी न होने देना

- बीमारी के बढ़ने पर एंटी वायरल दवा ओसेल्टामिविर (टैमी फ्लू) और जानामीविर (रेलेंजा) का इस्तेमाल किया जाता है।

वर्जन

स्वाइन फ्लू वायरल डिजीज है जो संक्रमण से फैलती है। इसके वायरस सुअर की आंत में पनपते हैं। प्रिकॉशन ही इससे सबसे बड़ा बचाव है। जितनी हाईजीन मेनटेन की जाए उतनी ही बचत होगी। अगर सिंप्टम नजर आते हैं और यह दो हफ्ते से ज्यादा रहते हैं तो फौरन ही डॉक्टर को दिखाकर सलाह लेनी चाहिए।

- डॉ। संदीप श्रीवास्तव, सीनियर फिजिशियन

Posted By: Inextlive