प्रयाराज. प्रो. राजेन्द्र सिंह रज्जू भइया स्टेट यूनिवर्सिटी इलाहाबाद के पहले वीसी के तौर पर नियुक्त किए गए प्रो. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद यादव का कार्यकाल यहां भी विवादित रहा था. तीन साल के कार्यकाल में उनके दामन पर दाग लगाने वाली तीन शिकायतें राजभवन तक पहुंची थीं. राजभवन स्तर पर उनके खिलाफ कोई सीधी कार्रवाई नहीं की गयी थी. इतना जरूर हुआ कि उन्हें शिक्षक भर्ती की प्रक्रिया पूरी करने से रोक दिया गया था.


गोरखपुर ब्यूरो। स्टेट यूनिवर्सिटी के रिकॉर्ड के अनुसार तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रयागराज को एक और स्टेट यूनिवर्सिटी का तोहफा दिया था। इस यूनिवर्सिटी से प्रयागराज के अलावा कौशांबी और प्रतापगढ़ के कॉलेजेज को एफीलिएटेड किये गये थे। एफीलिएटेड किये गये ज्यादातर कॉलेज स्टेट यूनिवर्सिटी बनने से पहले कानपुर यूनिवर्सिटी से सम्बद्ध थे। गोरखपुर (ब्यूरो)। 17 जून 2016 को यूनिवर्सिटी के पहले वाइस चांसलर के रूप में प्रो। डा। राजेन्द्र प्रसाद यादव ने ज्वाइन किया था। तब इस यूनिवर्सिटी के पास अपनी बिल्डिंग भी नहीं थी। इसके लिए बिल्डिंग सरस्वती हाइटेक सिटी में बनाने का प्रस्ताव किया गया था। बिल्डिंग की नींव प्रो। यादव के कार्यकाल में ही रखी गयी थी।किताबों से शुरुआत नियुक्ति पर विराम
प्रो। राजेन्द्र यादव के खिलाफ स्टेट यूनिवर्सिटी का वीसी रहते हुए सबसे पहला आरोप लाइब्रेरी के लिए किताबों की खरीद पर लगा था। उन्होंने डेढ़ करोड़ रुपये की किताबें खरीदने का आर्डर दिया था। इस पर तमाम सवाल उठाये गये। शिकायत राजभवन तक पहुंचायी गयी थी। उन पर दूसरा आरोप परीक्षा केन्द्र बनाने और कालेज को सम्बद्धता देने से संबंधित लगा था। आरोप था कि इसमें लम्बा खेल खेला गया है। सूत्र कहते हैं कि प्रो। यादव की लाबिंग इतनी बेहतरीन थी कि इस शिकायत पर भी कोई फैसला नहीं लिया गया। उन पर तीसरा बड़ा आरोप नियुक्तियों में हेराफेरा का लगा था। उनके कार्यकाल में कई विषयों में नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला गया था। एक सब्जेक्ट में उन्होंने नियुक्तियां पूरी भी कर ली थीं। इसी दौरान इसकी शिकायत राजभवन तक पहुंच गयी तो वहां से आगे की भर्तियों का पर रोक लगा दी गयी थी। यह भर्तियां प्रो। संगीता श्रीवास्तव के वाइस चांसलर बनने के बाद ही पूरी की जा सकीं। बता दें कि प्रो। यादव स्टेट यूनिवर्सिटी के वीसी 25 जून 2019 तक रहे थे।

Posted By: Inextlive