- रोडवेज की ज्यादातर बसों के टायर हुए खराब, नियम को ताक पर रखकर बसों का संचालन

- गोरखपुर और राप्तीनगर बस स्टेशन से संचालित होने वाली बसों के टायर रिट्रेड

GORAKHPUR: गोरखपुर से लखनऊ जाने वाली जनरथ यूपी 53 डीटी 4785 नंबर की बस सवारी लेकर रवाना हुई। पिछला टायर फटा होने के बाद भी बेखबर ड्राइवर और कंडक्टर सवारी बैठाकर लखनऊ के लिए रवाना हो गए। वहीं एक दूसरी बस, जिसमें गोरखपुर स्टेशन से लखनऊ के लिए सवारी बैठ रही थी। इसके टायर रिट्रेड थे, वहीं काफी घिस भी चुके थे। इसके बाद भी न तो जिम्मेदारों को इसकी फिक्र थी और न ही इस पर बैठने वाले लोगों को यह परवाह कि बस की जो हाल है, उससे वह लखनऊ पहुंच सकेंगे या नहीं। यह दो केस तो एग्जामपल भर हैं। ऐसी दर्जनों बसें रोजाना फर्राटा भर रही हैं, लेकिन सब कुछ जानने के बाद भी जिम्मेदार अंजान हैं। आए दिन हादसे हो रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी इसे गंभीरता से न लेकर पैसेंजर्स की जान से खिलवाड़ किया जा रहा है।

रिमोल्ट और ट्रीट कर लगा दे रहे टायर

गोरखपुर और राप्तीनगर डिपो में नियमों को ताक पर रखकर बसों का संचालन किया जा रहा है। अधिकांश बसों में घिसकर सपाट हो चुके टायरों को रिमोल्ड करके दोबारा इस्तेमाल किया जा रहा है। ग्रिपिंग छोड़ चुके टायरों को रिमोल्डिंग के बाद फिर से लगा दिया जा रहा है। रेलवे बस स्टेशन से चलने वाली ज्यादातर बसों का टायर रिट्रेड हैं। अगर जल्द इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो ये जानलेवा भी साबित हो सकते हैं।

फिर से चढ़ाई जाती है रबर

नए टायरों की कीमत ज्यादा होने के कारण टायरों को रिट्रेड किया जाता है। यानी कि एक बार घिस जाने के बाद टायरों पर फिर से रबड़ चढ़ाई जाती है। ऐसे रिट्रेड टायर आमतौर पर ट्रक आदि में लगाए जा सकते हैं। लेकिन सवारी गाडि़यों में इसे लगाना जान जोखिम में डालना है। हालांकि बहुत जरूरी होने पर इन टायरों को पीछे तो लगाया जा सकता है, लेकिन अगले टायरों में खतरनाक साबित हो सकते हैं। टायर फटने से कई बार दुर्घटनाएं हो चुकी है। हादसे में कई लोग घायल भी हो गए हैं। आमतौर पर रोडवेज की बसों के टायर फटने से हादसे हो चुके हैं। लेकिन इसके बावजूद भी रोडवेज प्रशासन गंभीर नहीं है।

टायरों को कई बार किया जाता है रिट्रेड

- राप्तीनगर वर्कशॉप से मिली जानकारी के मुताबिक बसों के अगले टायरों के खराब होने पर उसे रिट्रेड किया जाता है।

- इसके बाद उन टायरों को पीछे लगा दिया जाता है।

- इसके अलावा कुछ टायरों को इमरजेंसी के समय इस्तेमाल किया जाता है।

- यहां रोडवेज की बसों में पीछे के टायर ही नहीं आगे के टायर भी रिट्रेड मिल जाएंगे।

- एक्सपर्ट के अनुसार रोडवेज की बसों में लगने वाले टायर की उम्र 65 से 70 हजारा किलोमीटर चलने के बाद खत्म हो जाती है।

- इसके बाद इन टायरों को नियमत: बदल दिया जाना चाहिए लेकिन यहा तो घिसने के बाद भी बदला नहीं जाता है।

- रिट्रेड टायर वैसे तो कहीं भी पैसेंजर्स की जान जोखिम में डाल सकते हैं।

- लंबी दूरी के सफर में ये ज्यादा खतरनाक होते हैं।

- कमजोर टायर के गर्म होकर फटने की ज्यादा संभावना रहती है।

ड्राइवर्स की लापरवाही

- एक्सपर्ट के अनुसार नियम से बसों में अगला टायर नया होना चाहिए।

- पिछले पहले पहिए में रिट्रेड टायर करीब 40 हजार किलोमीटर तक चल सकता है।

- ड्राइवर की लापरवाही के चलते ज्यादातर टायर खराब हो जाते हैं।

- वह सिर्फ बसों को चलाना जानते हैं।

- बस के टायर में हवा है या नहीं, इसके बारे में थोड़ा भी ध्यान नहीं देते।

- हवा न होने की वजह से टायर का किनारा फट जाता है।

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- बसों के टायरों की लाइफ - 65-70 हजार किलोमीटर

-पुराने टायरों का उतार कर तीन बार किया जाता है रिट्रेड

-रिट्रेड टायर को 40 हजार किलोमीटर चलाकर किया जाता है कंडम

-एक साल में गोरखपुर रीजन में इशु होता है नया टायर 1600 से 1700

-एक माह में रिट्रेड किया जाए जाते हैं टायर - 900 से 1000

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-गोरखपुर रीजन में बसों की संख्या --763

-गोरखपुर डिपो में निगम की बसें- 89

-अनुबंधित बसें--107

बसों के टायरों की लाइफ पूरी होने के बाद उन्हें बदल दिया जाता है। जो टायर ठीक होते हैं। उन्हीं का रिट्रेड कराया जाता है। वर्कशॉप में प्रॉपर टायरों की जांच की जाती है। खराब टायरों को तत्काल बदल दिया जाता है।

धनजी राम, एसएम रीजन, गोरखपुर

Posted By: Inextlive