World Handicapped Day : काहे का गम, इन्होंने तो दिव्यांगता से ही भरा दम
गोरखपुर (ब्यूरो)।गोरखपुर के कौवाबाग एरिया निवासी आदित्या यादव (12) जन्म से ही सुन व बोल नहीं सकती हैं, लेकिन उसने इतनी कम उम्र में देश को गोल्ड मेडल दिलाकर इतिहास रच दिया। ब्राजील में हुए डेफ ओलम्पिक में बैडमिंटन खिलाड़ी आदित्या यादव ने देश को गोल्ड दिलाया। डेफ ओलम्पिक में भारत ने पहली बार बैडमिंटन चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता है। आदित्या को आगे बढ़ाने में उनके पिता बैडमिंटन कोच दिग्विजय यादव का बहुत बड़ा हाथ है। आदित्या ने कभी अपनी दिव्यांगता को कमजोरी नहीं समझी। परिवार ने भी उनका साथ दिया और आज पूरे देश को आदित्या पर गर्व है। आदित्या यादव बैडमिंटन को लेकर जुनूनी हैं। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि आदित्या ने कभी संडे नहीं मनाया। कोरोना काल में भी घर में दीवार पर प्रैक्टिस करती थीं। उस दौरान फिटनेस पर पूरा ध्यान दिया। जब आदित्या का जन्म हुआ, उसके तीन साल बाद घर वाले ये जाने कि उनकी बेटी सुन बोल नहीं सकती है। इसके बाद एक पिता होने की वजह से दिग्विजय की मुसीबत कई गुना बढ़ गई थी। दिग्विजय यही सोचते थे कि अब अपनी इस बेटी के लिए क्या करें। दिग्विजय बताते हैं कि एक दिन जब आदित्या ने रैकेट पकड़ा। उसके पकडऩे के ढंग से ये लगा कि वो खेल सकती है। पांच साल की उम्र में आदित्या खेलने जाने लगी। फिर क्या एक साल बाद ही आदित्या अपने से अधिक एज के खिलाडिय़ों को मात देने लगी। इसलिए छोटी सी उम्र में आदित्या का नाम गोल्डन गर्ल पड़ गया था।नगर नगर निगम के आइडियल हैं राजेश