देश भर की 500 से ज्यादा चीनी मिलों से निकलने वाली बायलरों की फ्लाई ऐश राख अब प्रदूषण नहीं बढ़ाएगी बल्कि उद्यमियों की आय का साधन बनेगी. नेशनल शुगर इंस्टीट््यूट एनएसआई के साइंटिस्ट ने दो साल तक रिसर्च के बाद नैनो सिलिका पार्टिकल्स बनाने की तकनीक विकसित की है. नैनो सिलिका पार्टिकल्स का उपयोग पेंट उद्योग लीथियम बैटरी प्रदूषण उपचार में सोखने वाले स्त्रोत जैव प्रौद्योगिकी व जैव चिकित्सा और फसल सुधार में नैनौ उर्वरक के रूप में प्रयोग किया जाता है. संस्थान ने इस तकनीक को पेटेंट कराने की तैयारी शुरू कर दी है.

कानपुर (ब्यूरो) एनएसआई के निदेशक प्रो। नरेंद्र मोहन और डा। विष्णु प्रभाकर श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में वरिष्ठ शोधार्थी शालिनी कुमारी ने चीनी उद्योग के कचरे से एक मूल्य वर्धित उत्पाद बनाने में सफलता हासिल की। निदेशक प्रो। नरेंद्र मोहन ने बताया कि चीनी कारखानों में बायलरों से निकलने वाली राख का उपयोग वर्तमान में भूमि को भरने के लिए किया जाता है। जबकि चीनी मिलों में इसे वायु प्रदूषण का बड़ा स्त्रोत मानते हैं। चीनी कारखानों में ईंधन के रूप में खोई का उपयोग करने वाले बायलरों से प्राप्त राख में सिलिका की मात्रा को देखते हुए नैनो सिलिका पार्टिकल्स तकनीक विकसित करने पर काम किया।

यहां है पार्टिकल्स की उपयोगिता
नैनो सिलिका पार्टिकल्स का उपयोग पेंट उद्योग, लीथियम बैटरी, प्रदूषण को सोखने वाले स्रोत, जैव-प्रौद्योगिकी और जैव-चिकित्सा और फसल सुधार के लिए नैनो उर्वरक के रूप में प्रयोग किया जाता हैं। पार्टिकल्स का बाजार भाव वर्तमान में 700-1000 रुपये प्रति किलो है। नई तकनीक आने से नैनो सिलिका पार्टिकल्स सौ रुपये से कम कीमत पर बाजार में उपलब्ध होगा। चीनी मिल मालिक प्लांट लगाकर इन तकनीक से इस पार्टिकल्स को तैयार कर बाजार में बेच सकेंगे।

आईआईटी दिल्ली में कराया गया परीक्षण
डा। विष्णु प्रभाकर श्रीवास्तव ने बताया कि इस तकनीक का एनएसआई के साथ आईआईटी दिल्ली में कराया गया परीक्षण सफल रहा। ईंधन के रूप में उपयोग होने वाली खोई की मात्रा को देखते हुए, चीनी मिलों से प्राप्त ऐसी राख की मात्रा 1.0-1.5 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष होने का अनुमान है। इस राख से नैनो सिलिका पार्टिकल्स के उत्पादन की क्षमता 0.2-0.3 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष तक हो सकती है। सिलिका खनिज का मुख्य अवयव है।

Posted By: Inextlive