ब्रिटेन में गणित की समझ बेहतर करने के लिए बनाई गई संस्था के मुताबिक हिसाब-किताब में कम निपुण होने की वजह से ब्रितानी लोगों की जिन्दगी खराब हो रही है और अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है.

‘नैश्नल न्यूमरेसी’ नाम की इस संस्था के मुताबिक, ब्रिटेन में लाखों लोगों को अपने वेतन की पर्ची, घर के बिल और ट्रेन के टाइमटेबल समझने में मुश्किल होती है।

सरकार की ओर से जारी आंकड़ों से पता चलता है कि देश की कामकाजी जनता में से करीब आधी ने केवल प्राथमिक कक्षाओं तक ही गणित पढ़ी है। एक सरकारी प्रवक्ता के मुताबिक हिसाब-किताब में जनता का कमज़ोर होना एक राष्ट्रीय घोटाला है।

‘नैश्नल न्यूमरेसी’ के समर्थक और संचार की कंपनी ‘बीटी’ के चेयरमैन सर माइक रेक ने कहा, “ये वो छिपी मुसीबत है जिससे ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को नुकसान हो रहा है और जो जिन्दगी में बेहतर करने की चाह रखनेवाले लोगों के अवसर कम कर रहा है.” इससे पहले भी सर माइक रेक सार्वजनिक तौर पर ब्रितानी लोगों में शिक्षा के कम स्तर के बारे में अपनी निराशा जाहिर कर चुके हैं।

गरीबी और बेरोजगारीकई शोध का हवाला देते हुए, ‘नैश्नल न्यूमरेसी’ ने दावा किया कि हिसाब-किताब में कमजोरी का जिन्दगी के बुरे पहलुओं जैसे जेल, बेरोजगारी, स्कूल से निकाला जाना, गरीबी या लंबी बीमारी से ताल्लुक होता है।

संस्था ने चेताया है कि वो ऐसी जानी-मानी हस्तियों का नाम ऊजागर कर उन्हें शर्मसार करेंगे जो गणित में कमजोर हैं। इसका मकसद गणित के प्रति लोगों का रवैया बदलना है। आयोजकों का दावा है कि ‘नैश्नल न्यूमरेसी’ पहली ऐसी संस्था है जिसे सभी उम्र के लोगों में गणित की निपुणता को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है।

उनके मुताबिक इसमें ‘नैश्नल लिट्रेसी ट्रस्ट’ की तर्ज पर काम किया जाएगा। 20 वर्ष पहले ये ट्रस्ट ब्रिटेन में साक्षरता के विकास के लिए बनाई गई थी, और अब देश में पढ़ाई-लिखाई के स्तर को बढ़ाने का श्रेय इसे ही दिया जाता है।

‘ब्रितानी बीमारी’संस्था के अध्यक्ष क्रिस हम्फ्राइस ने कहा, “ये माफी के नाकाबिल होगा कि कोई कहे कि वो गणित नहीं समझता है, ये विशेष तौर पर एक ब्रितानी बीमारी है जिसे हम मिटाना चाहते हैं.” हम्फ्राइस ने कहा कि ऐसा अन्य देशों में नहीं होता और प्रोत्साहन और बेहतर शिक्षा से लोग हिसाब-किताब में निपुण हो सकते हैं।

उन्होंने बताया कि ज्यादातर विकसित देशों में 50 से 100 प्रतिशत लोगों के मुकाबले, ब्रिटेन में केवल 15 प्रतिशत लोग ही 16 वर्ष की आयु के बाद गणित की पढ़ाई जारी रखते हैं।

केपीएमजी के एक शोध का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि हिसाब-किताब की कमजोरी से सरकारी खजाने को करीब ढाई अरब पाउंड का वार्षिक नुकसान हो रहा है।

हम्फ्राइस ने कहा कि कई लोगों को नौकरी केवल इसलिए नहीं मिलती है क्योंकि उन्हें ग्राफ पढ़ने या दस्तावेज समझने में दिक्कत आती है। वहीं हिसाब-किताब में कमजोरी से काम करने की कुशलता पर भी असर पड़ता है जिससे वेतन कम होने का खतरा होता है।

Posted By: Inextlive