इनकी आर्थिक ताकत के चलते ब्राजील भारत रुस चीन और पिछले साल अप्रैल में 'ब्रिक्स' से जुड़ने वाले दक्षिण अफ्रीका के नेताओं की बैठक स्वयं ही दिलचस्पी जगाती है.

जब डिल्मा रुसेफ, दमित्री मेदवेदेव, मनमोहन सिंह, हू जिंताओ और जैकब जूमा ब्रिक्स सम्मेलन के लिए 29 मार्च को दिल्ली में मिलेंगे तो क्या वो अपने पिछले बयानों से आगे बढ़ेंगे?

दिल्ली-स्थित थिंकटैंक, विकासशील देशों की अनुसंधान एवं सूचना प्रणाली के महानिदेशक बिस्वजीत धर ने बीबीसी को बताया, ''ब्रिक्स से जी7 को कड़ी टक्कर मिल सकती है। जी7 की तरह यह नया समूह हर साल स्वेच्छा से मिलता है। ब्रिक्स ने कई गंभीर मुद्दे सामने रखे हैं.''

सम्मेलन की पिछली तीन बैठकों में इन 'इकनॉमिक फाइव' के नेताओं ने इस संगठन को मजबूती प्रदान करने के लिए हिचकिचाते हुए मामूली कदम उठाए हैं जिससे आर्थिक ताकत की दिशा को पश्चिम से पूर्व की ओर मोड़ा जा सकता है।

पिछले साल ब्रिक्स ने चीन में अपनी बैठक में कहा था कि अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों को ''दुनिया की अर्थव्यवस्था में बदलाव को दर्शाना चाहिए और आर्थिक तौर पर उभर रही अर्थव्यवस्थाओं और विकासशील देशों की आवाज और प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना चाहिए.''

इस तरह के बयान पहले भी सुने गए हैं। रुस में साल 2009 में ब्रिक ने कहा था, ''हम अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों के सुधार को बढ़ाने के प्रति वचनबद्ध हैं ताकि दुनिया की अर्थव्यवस्था के बदलाव को दर्शाया जा सके.''

बैठक पर नजरेंन सिर्फ ब्रिक्स के लोग बल्कि बाकी की दुनिया भी यह देख रही होगी कि क्या नई दिल्ली में होने वाली बैठक विश्व के अहम आर्थिक मुद्दो पर कार्रवाई करने की ओर कोई कदम उठा पाएगी।

उदाहरण के तौर पर ब्रिक्स के विद्वानों ने सुझाव दिया है कि दिल्ली में इन पांच देशों में तालमेल बढ़ाने के लिए विकास बैंक या निवेश फंड की स्थापना करने का मामला उठाया जाए। सम्मेलन से जुड़े एक वरिष्ठ भारतीय अधिकारी सुधीर व्यास ने सोमवार को कहा कि विकास बैंक का सुझाव 'कुछ देर से चर्चा में है.'

मतभेदभारत और चीन के बीच मतभेदों के चलते बयानों से आगे बढ़ना आसान नहीं होगा--दोनो देशों के बीच सीमा का अनसुलझा मुद्दा उठता रहता है। नाम न जाहिर करने की शर्त पर एक विश्लेषक ने कहा, "भारत और चीन के बीच मतभेद ब्रिक्स में विघन पैदा कर करते हैं.''

अपने हाल के एक लेख में 'जिंदल स्कूल ऑफ ग्लोबल अफेर्यस' के उप डीन स्रीराम चौलिया ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक मामलों पर ब्रिक्स के देशों के बीच ''आपसी सहयोग की बहुत जरूरत है। पिछले साल पश्चिमी देशों ने लीबिया के मामले पर ब्रिक्स के देश को ठीक से प्रतिक्रिया न दे पाने की हालत में पाया था।

इस साल, ब्रिक्स सीरिया में संकट के मामले पर अलग-थलग है। जहां रुस और चीन ने सुरक्षा परिषद में पश्चिमी प्रस्ताव को वीटो किया था वहीं दक्षिण अफ्रीका और भारत का मत इसके पक्ष में था.'' ऐसा लगता है कि अर्थशास्त्र, न कि राजनीति, ब्रिक्स का दिशा निर्देश करेगा।

बढ़ा है योगदानब्रिक्स के देशों ने 1990 के दशक से अब तक विश्व में अपने आर्थिक योगदान को दोगुना किया है और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानि आईएमएफ का कहना है कि इनकी जीडीपी वर्ष 2015 के पहले यूरो क्षेत्र से अधिक हो जाएगी।

ब्रिक्स के 'ट्रेड और इक्नॉमिक रिसर्च नेटवर्क' के अनुसार दुनिया की 43 प्रतिशत आबादी और 18 प्रतिशत वैश्विक व्यापार इन पांच देशों से आता है, और यह विश्व की 53 प्रतिशत आर्थिक पूंजी अपनी ओर खींचते हैं।

भारत के समाचार पत्र 'इक्नॉमिक टाइम्स' के मार्च 26 के एक संपादकीय के अनुसार ऐसी व्यापार प्रणाली की ओर बढ़ने की तरफ चर्चा होनी चाहिए जिसमें केवल इन पांच देशों की मुद्रा का इस्तेमाल किया जाए। समाचार पत्र का सुझाव था, ''इस प्रणाली में ब्रिक्स का व्यापार और निवेश रिएल, रूबल, रुपया, युआन और रैंड मुद्राओं में होगा.''

बिस्वजीत धर के मुताबिक, अब जबकि रुस विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बन चुका है, ब्रिक्स के देशों को इस संगठन के एजेंडे को चलाने में पहल करनी चाहिए। उन्होंने कहा, ''इन पांच देशों को बहुपक्षीय व्यापार एजेंडा चलाना चाहिए.'

मार्च 29 की मुख्य बैठक के अलावा बहुत सारी नजरें उन दोतरफा सत्रों की तरफ होंगी जो यह पाँच नेता आपस में करेंगे। जबकि चीनी राष्ट्रपति हू विदा हो रहे हैं, व्लादिमीर पुतिन ने रुस के राष्ट्रपति पद को वापिस पा लिया है। दोनों ब्रिक्स के आधे दिन के सम्मेलन के लिए दिल्ली में होंगे।

Posted By: Inextlive