आईआईटी और मिलिट्री इंजीनियर सर्विसेज झांसी ने आर्मी स्टेशनंस को कार्बन-न्यूट्रल कैम्पस में परिवर्तित करने के लिए एक एमओयू किया है. यह पहल न केवल कार्बन उत्सर्जन को कम करने में बल्कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करेगी. सेना के जवानों के प्रशिक्षण से सस्टेनेबल प्रैक्टिस और उनके कार्यान्वयन के बारे में जागरूकता पैदा करने में भी मदद मिलेगी.


कानपुर (ब्यूरो) आईआईटी के डीन अनुसंधान एवं विकास प्रो। एआर हरीश ने कहा कि यह एमओयू पांच सैन्य स्टेशनों को कार्बन न्यूट्रल बनाने के लिए किया गया है। इसके तहत सेना के कर्मियों को ऑन-जाब प्रशिक्षण के माध्यम से उनके संसाधन पूल का निर्माण करेंगे। छावनी के परिसरों में संसाधनों का स्थायी रूप से उपयोग के लिए एक प्रूफ-आफ-कान्सेप्ट योजना दी जाएगी। उनका मूल्यांकन ऊर्जा स्रोतों, ऊर्जा खपत, कार्बन फुटङ्क्षप्रट, स्थायी विकल्पों को अपनाने, पौधारोपण के आधार पर किया जाएगा। यहां कमांडर वक्र्स इंजीनियर (सीडब्ल्यूई) व आईआईटी के पूर्व छात्र कर्नल अखिल ङ्क्षसह चाडक, गैरीसन इंजीनियर मेजर सनी अत्री, डीन अनुसंधान एवं विकास प्रो। एआर हरीश, सतत ऊर्जा इंजीनियङ्क्षरग विभाग के प्रो। आशीष गर्ग, प्रो। राजीव ङ्क्षजदल, और प्रो। आकाश सी राय मौजूद रहे।पांच कैम्पस सेलेक्ट किए गए


एमओयू के तहत एमईएस झांसी छावनी के तहत पांच कैम्पस को पहले चरण में चिह्नित किया गया। जिन्हें चरणबद्ध तरीके से नेट जीरो कार्बन, नेट जीरो एनर्जी, नेट जीरो वाटर और नेट जीरो वेस्ट परिसरों व स्टेशनों में परिवर्तित किया जाएगा। आईआईटी के डायरेक्टर प्रो। अभय करंदीकर ने बताया कि आर्मी स्टेशन को कार्बन-न्यूट्रल परिसरों में बदलने के लिए एमईएस, झांसी के साथ एमओयू हुआ है। संतुलन है जरूरी

कार्बन न्यूट्रल होने का मतलब एटमॉस्फियर में कार्बन उत्सर्जन और इसके अवशोषित होने के बीच संतुलन स्थापित करना है। संतुलन का यह उपाय किया जाना इसलिए अहम है क्योंकि कार्बन डाईआक्साइड सरीखी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।

Posted By: Inextlive