गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे जलाए जाने के आरोप में 90 से अधिक लोग गिरफ़्तार हुए थे जिनमें से 63 को एक साल पहले रिहा कर दिया गया. बाक़ी 31 को दोषी क़रार दिया गया था.

इन 63 लोगों पर लगे आरोप तो सिद्ध नहीं हो पाए लेकिन इन लोगों के नौ साल बर्बाद ज़रुर हो गए.गोधरा शहर से थोड़ी दूर रहमतनगर की झुग्गियों से कई लोगों को पकड़ा गया था।

हबीब उन्हीं में से एक हैं। हबीब तो छूट गए लेकिन उनके दो भाई अभी भी जेल में हैं। हबीब के पिता मीडिया से बेहद नाराज़ दिखे और बार-बार आग्रह किए जाने का एक ही जवाब देते रहे, ''हमें मीडिया से कोई बात नहीं करनी। मेरी फोटो मत खींचना। बिल्कुल बात नहीं करनी.''

बड़ी मुश्किल से हबीब बातचीत के लिए तैयार हुए तो नाराज़गी फट पड़ी, ''अभी बताओ हम क्या करें। नौ साल बर्बाद हुए मेरे। कोई लौटाएगा। दो भाई अभी भी बंद हैं। गोधरा में गाड़ी जलाई। हम लोग इधर झुग्गियों में थे। पुलिस उठा के ले गई। बंद कर दिया तब बताया कि क्यों बंद किया। हम तो स्टेशन से बहुत दूर थे.'' शब्बीर भी इन्हीं झुग्गियों में रहते हैं। उन्हें बात करने से आपत्ति नहीं और उनका गुस्सा साफ़ था।

'निर्दोष लोग जेल में'

शब्बीर कहते हैं, ''अभी भी हम कहते हैं कि मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए। मैं रिहा हुआ लेकिन मामले की जांच ठीक से नहीं हुई। निर्दोष लोग अंदर बंद हैं। जांच होगी तभी मालूम चलेगा किसने किया था डिब्बा में आग लगाने का काम.''

शब्बीर जब गिरफ़्तार हुए तब उनकी पत्नी रेहाना आठ महीने के गर्भ से थीं। बेटी पैदा हुई लेकिन शब्बीर अपनी बेटी को नौ साल के बाद ही छू पाए।

रेहाना कहती हैं, ''जब ये पैदा हुई तो इसका बाप जेल में था। हमें छह महीने तक मिलने नहीं दिया गया। फिर जाते थे तो जाली के पार से बच्ची को दिखाया इन्हें। छू नहीं पाते थे अपनी बच्ची को। ये अपने बाप को पहचानती भी नहीं थी। एक साल पहले जब वापस आए तो पहली बार बच्ची को छुआ। तब ये साढ़े आठ साल की हो गई थी.''

रेहाना जैसी कई महिलाओं ने ये नौ साल मज़दूरी कर के गुज़ारे हैं। रेहाना बताती हैं कि बस्ती से गिरफ़्तार किए गए 11 लोग ग़रीब परिवार के हैं और सभी लोग मेहनत मज़दूरी कर के गुज़ारा चलाते हैं।

वो कहती हैं, ''हम बर्तन मांज मांज के घर चलाते रहे इतने दिन। दो बेटियां हैं.पति जेल में था। भूखे मर जाते हम लोग। हमारा पति तो लौटा लेकिन अभी भी बस्ती के तीन चार लोग जेल में हैं। ये तो अन्याय है.''

ग़रीब बस्तियों में लोग बात कर लेते हैं लेकिन कई सभ्रांत घरों के लोगों को भी षडयंत्र रचने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया। इन्हीं में से एक हैं रुहुल अमीन अठीला। पेशे से वकील। अठीला मिलने को तैयार हुए लेकिन पहली ही बात कही। न इंटरव्यू दूंगा न फोटो लेने दूंगा। आइए आपको चाय पिलाता हूं।

अठीला से आधे घंटे की मुलाक़ात में बार-बार इंटरव्यू के लिए ज़ोर देता रहा लेकिन अठीला तैयार नहीं हुए। उनकी आंखें मानो साफ़ कह रही हों- 'मैं मजबूर हूं तुम समझने की कोशिश करो.'

बातचीत के दौरान मोहम्मद हुसैन कलोटा से मुलाक़ात हुई। कलोटा पूर्व में गोधरा म्युनिसिपैलिटी के अध्यक्ष रह चुके हैं और गोधरा की घटना के बाद गिरफ़्तार किए गए थे। कलोटा पर भी षडयंत्र रचने का आरोप था लेकिन वो बरी किए गए हैं। कलोटा ने भी इंटरव्यू देने से इंकार कर दिया।

जो पेशे से वकील हों या फिर सम्मानित नागरिक, उनका गिरफ़्तार होना फिर उनका बाइज़्ज़त छूट जाना अजीब तो लगता है लेकिन सबसे अजीब लगा उनका आरोपों से बरी होने के बाद भी मीडिया से बात न करना। ये अजीब तो है लेकिन गोधरा का सच यही है।

Posted By: Inextlive