- सावन के पहले सोमवार के लिए शिव मंदिरों में रविवार की रात से लगी लाइनें, मंदिरों में पुलिस सुरक्षा

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KANPUR। सावन का महीना शुरु होते ही शिव भक्तों ने माह भर की तैयारियां भी शुरु कर दी हैं। सावन के पहले सोमवार के लिए रविवार को पूरे दिन मंदिरों में तैयारियां होती रहीं और शिवालय परिसर हर-हर महादेव, बम-बम भोले के जयकारों से गूंजते रहे। सोमवार को शिवालयों में शिव भक्तों के हुजूम को संभालने के लिए रेलिंग-बैरिकेडिंग लगाने, साफ-सफाई, रंग-रोगन का काम होता रहा। प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों ने सुरक्षा व्यवस्था के लिए जायजा लिया।

शहर का प्राचीनतम शिवालय

परमट में मां गंगा के किनारे स्थित आनन्देश्वर मंदिर सिटी का सबसे प्रमुख शिव मंदिर है। महंत रमेश पुरी ने बताया कि ख्00 साल पहले यहां जंगल था। एक ग्वाला आता था। जिसकी आनन्दी नाम की गाय एक खोह में दूध गिरा देती थी। बाद में जब वहां खुदाई कराई गई। तो एक शिवलिंग निकला। जिसे स्थापित करके पूजन शुरु हो गया। एक मान्यता ये भी है कि आनन्देश्वर बाबा की स्थापना महाभारत काल में अंगराज कर्ण ने की थी। वो यहां पर एकांत में आकर पूजन करते थे। अजय सैनी ने बताया कि पहले सोमवार के लिए अंदर और बाहर बैरीकेटिंग लगावाई है। मंदिर में कुल क्म् कैमरे लगे हैं। नगर-निगम की टीमों ने मंदिर में साफ-सफाई कराई। रविवार को प्रशासनिक अधिकारियों ने निरीक्षण किया।

तीन बार रंग बदलता शिवलिंग

मैनावती मार्ग पर स्थित जागेश्वर मंदिर प्राचीन शिवालयों में से एक है। यहां की खासियत ये है कि शिवलिंग सुबह के समय ब्राउन, दोपहर में ग्रे और रात में ब्लैक कलर में दिखाई देती है। जागेश्वर महादेव प्रबंधन महासभा के महामंत्री प्राण श्रीवास्तव ने बताया कि ये मंदिर कम से कम तीन सौ वर्ष पुराना है। मंदिर में स्थित पीपल के पेड़ में नाग-नागिन का वास माना जाता है। जागे नाम के मल्लाह ने शिवलिंग खोजा था। जब खुदाई की गई तो शिवलिंग का अंत नहीं मिला। तभी से यहां बाबा की स्थापना कर पूजन शुरु हो गया। सावन के सोमवार को यहां पर दंगल का आयोजन किया जाता है।

अ‌र्द्धचंद्र और कबूतरों का जोड़ा

नयागंज स्थित नागेश्वर मंदिर के बारे में बताया जाता है कि पहले इसके शिवलिंग पर सूरज की रोशनी पड़ती थी तो अ‌र्द्धचंद्र की आकृति उभर आती थी। कुछ साल पहले मंदिर के बाहर टीन शेड पड़ने के बाद से यह आकृति बनना बंद हो गई। इसके अलावा यहां पर भी बाबा अमरनाथ की भांति कबूतरों का एक जोड़ा हमेशा मौजूद रहता है। इस जोड़े को देखना भी भक्तों को दिव्य अनुभव देता है।

वनखंडेश्वर मंदिर

पीरोड पर स्थित वनखंडेश्वर मंदिर के शिवलिंग की खोज की कहानी भी आनंदेश्वर मंदिर से मिलती-जुलती है। मंदिर के स्थान पर घना वन था। यहां एक गाय आकर अपना दूध छोड़ देती थी। इसे देख लोगों में कौतूहल जागा, खुदाई की गई। तब यहां एक शिवलिंग निकला। तभी से उस स्थान का नाम वनखंडेश्वर रखा गया। भोले बाबा के इस स्वरूप की पूजा करने सावन में हजारों भक्त आते हैं।

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तो काशी बन जाता सिद्धनाथ धाम

सिटी के जाजमऊ स्थित सिद्धनाथ धाम शिवालय को भक्त छोटी काशी भी कहते हैं। इस मंदिर के बारे में कहानी है कि राजा ययाति ने सिद्धनाथ धाम को काशी बनाने के लिए क्00 यज्ञों का आयोजन किया। लेकिन आखिरी यज्ञ के दौरान एक कौवे ने हवन कुंड में हड्डी गिरा दी जिससे हवन खंडित रह गया और सिद्धनाथ धाम काशी बनते रह गया। लेकिन यहां आने वाले भक्तों के लिए यह काशी से कम नहीं है।

-सेंटर बॉक्स-

सावन में कभी भी करें रुद्राभिषेक

ज्योतिषाचार्य पं.आदित्य पाण्डेय ने बताया कि सावन का माह ही भगवान शिव की पूजा का होता है। इस पूरे माह में किसी भी दिन भगवान की पूजा व रुद्राभिषेक कर सकते हैं। वैसे तो रुद्राभिषेक जब होता है, तब धरती पर अग्नि का वास होना चाहिए। सावन भगवान शिव का सबसे प्रिय माह है। इस मास में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है। भगवान को जल, बेलपत्र, शमी पत्र व दूध भक्त अर्पित करें। वैसे भोलेनाथ बहुत ही भोले हैं। वो तो सिर्फ भक्त की भक्ति भाव से ही प्रसन्न हो जाते हैं।

Posted By: Inextlive